एनसीआर में सांसों पर आफत से कमजोर हो रहे फेफड़े, युवा से बुजुर्ग तक परेशान; मास्क लगाकर ही निकलें घर से बाहर
गाजियाबाद में 10% लोग सीओपीडी से पीड़ित हैं, वायु प्रदूषण बढ़ने से मरीजों की संख्या में 25% की वृद्धि हुई है। धूम्रपान और प्रदूषण इसके मुख्य कारण हैं। प्रारंभिक पहचान और जीवनशैली में बदलाव से इसे बढ़ने से रोका जा सकता है। सांस की तकलीफ, खांसी और थकान इसके लक्षण हैं। बचाव के लिए धूम्रपान न करें, प्रदूषण से बचें और घरेलू उपाय आजमाएं।
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भारत मंडपम में प्रदूषण से बचने के लिए मुंह पर मास्क लगाकर जाते बच्चें। ध्रुव कुमार
जागरण संवाददाता,गाजियाबाद। जिले के 10 प्रतिशत लोग सीओपीडी से ग्रसित हैं। बुजुर्गों के बाद बच्चों पर सबसे अधिक असर दिख रहा है। वायु प्रदूषण बढ़ने से सीओपीडी के मरीज 25 प्रतिशत बढ़ गए हैं। आलम यह है कि हवा खराब होने से सांसों पर आ रही आफत से फेफड़े कमजोर हो रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार गाजियाबाद के 10 प्रतिशत लोग सीओपीडी से ग्रसित हैं। इनमें बुजुर्गों के बाद बच्चों की संख्या दूसरे नंबर पर है।
बुजुर्गों के बाद बच्चों पर दिख रहा सबसे अधिक असर
तीसरे स्थान पर युवा हैं। पिछले 10 साल से एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ने से क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीजों में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2025 की थीम है सांस फूल रही है, सीओपीडी के बारे में सोचो। प्रारंभिक पहचान से मरीज जल्दी इलाज शुरू कर सकते हैं, जीवनशैली में जरूरी बदलाव कर सीओपीडी को बढ़ने से रोक सकते हैं।
नवंबर 2024 में हुए सर्वे के अनुसार आकड़े
- विश्व में मरीजों की संख्या 21.33 करोड़
- भारत में कुल मरीजों की संख्या 4.37 करोड़
- उत्तर प्रदेश में कुल मरीजों की संख्या 98 लाख
- गाजियाबाद में कुल मरीजों की संख्या पांच लाख,जो वर्तामान में छह लाख हो गई है।
आइएमए द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार एनसीआर में सीओपीडी रोगियों का डेटा और स्थिति
समुदाय-आधारित अध्ययन में दिल्ली में 30 साल से ऊपर की आबादी में सीओपीडी की दर लगभग 10.1प्रतिशत पाई गई। इस अध्ययन में पाया गया कि धूमपान इसका सबसे बड़ा कारण है और इसके बाद धुएं का संपर्क, बढ़ता वायु प्रदूषण भी इसके जिम्मेदार हैं। सिर्फ लगभग 48 प्रतिशत मरीज इलाज ले रहे हैं, बाकी लोगों ने या तो इलाज शुरू नहीं किया या वे उसे जारी नहीं रख पा रहे हैं।
लंग फंक्शन और वायु प्रदूषण का असर
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 3.9 प्रतिशत निवासियों में सीओपीडी या लंग आब्स्ट्रक्शन पाया गया। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि अधिक कण प्रदूषण (जैसे पीएम 2.5) फेफड़ों की कार्यशीलता को प्रभावित करता है, और इससे फेफड़ों की बीमारी का जोखिम बढ़ता है।
बचाव के लिए आजमा सकते हैं कुछ घरेलू उपाय
प्रदूषण के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए गर्म और घर में बना भोजन ही खाएं
गुड़ का सेवन शरीर से दूषित पदार्थों को दूर करने में मदद करता है।
भाप लें, इससे शरीर को हानिकारक पदार्थों को हटाने में मदद मिलती है।
प्राणायाम एवं अनुलोम-विलोम करें।
इन बातों का रखें ख्याल
- बाहर निकलते समय मास्क का प्रयोग करें।
- पूरे दिन हाइड्रेटेड रखें और भरपूर मात्रा में पानी पीएं
- धुएं के संपर्क में न आएं
बढ़ता प्रदूषण किसी न किसी रूप में सभी को नुकसान पहुंचा रहा है. लेकिन सामान्य कामकाज के दौरान सांस की तकलीफ या घबराहट होती है, तो आप सीओपीडी का शिकार हो सकते हैं। इसके अलावा सीने में जकड़न, कफ के साथ लगातार खांसी आना, बार-बार श्वसन संबंधी संक्रमण होना, शरीर में ताकत की कमी महसूस होना, अनायास वजन कम होना, सूजे हुए टखने एवं थकान इस समस्या का लक्षण हो सकता है। तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिये। सावधानी बरतनी चाहिये।
- डॉ. आलोक रंजन, वरिष्ठ फिजिशियन जिला एमएमजी अस्पताल
सीओपीडी की समस्या से बचने के लिए बेहतर होगा कि आप तंबाकू, धूमपान व शराब का सेवन न करें। स्पाइरोमेट्री से अपने फेफड़ों की जांच जरूर कराएं। तेज सर्दी से बचे। अपने वजन की निगरानी करें। चिकित्सक की सलाह के अनुसार नियमित दवाइयां लें। मेडिकेशन, इंट्रावीनस अल्फा-1 ऐन्टीट्रिप्सिन अग्युमेंटेशन थेरेपी, फ्लू एवं न्यूमोकोकल वैक्सीन आदि के माध्यम से इसे नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।
- डॉ. आशीष अग्रवाल, पल्मोनालाजिस्ट

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