बायो स्लज मैनेजमेंट का हाईटेक मॉडल लागू होने पर बदलेगी शहरों को तस्वीर, जापानी तकनीक सीखकर लौटा प्रतिनिधिमंडल
गाजियाबाद के डॉ. गगनेश शर्मा ने सीवेज प्रबंधन पर जापान का दौरा किया। वहां अपशिष्ट प्रबंधन के आधुनिक तरीकों का प्रशिक्षण लिया जिसमें कचरे से सीमेंट बायोगैस और खाद बनाने की तकनीक शामिल है। जापान में जीपीएस से जुड़े सीवेज नेटवर्क और वर्षा जल के पुनर्चक्रण की प्रणाली भी देखी। उन्होंने बताया कि जापानी मॉडल को अपनाकर भारत में स्वच्छता और आर्थिक लाभ दोनों प्राप्त किए जा सकते हैं।

शाहनवाज अली, गाजियाबाद। टेक्निकल कोऑपरेशन प्रोजेक्ट (टीसीपी) ऑन कैपेसिटी एन्हांसमेंट फार सीवेज स्लज मैनेजमेंट के तहत भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ जापान का दौरा किया, जिसमें गाजियाबाद से राष्ट्रीय प्राकृतिक एवं जैविक केंद्र के निदेशक डा. गगनेश शर्मा भी शामिल रहे।
इस दौरान सीवेज स्लज प्रबंधन से जुड़ी आधुनिक तकनीकों और प्रबंधन क्षमता बढ़ाने के उपाय पर गहन चर्चा और प्रशिक्षण दिया गया। शहर में सीवेज प्रबंधन की दिशा में नई तकनीक और बेहतर कार्यप्रणालियां लागू करने को लेकर जानकारी हासिल की।
प्रतिनिधिमंडल में गए डॉ. गगनेश शर्मा के मुताबिक जापान का सीवेज सिस्टम वर्ष 1965 में स्थापित हुआ था। आज यह दुनिया के सबसे उन्नत और ऑटोमेटेड मॉडल के रूप में जाना जाता है। यहां के ट्रीटमेंट प्लांट्स में अपशिष्ट प्रबंधन तीन स्तरों पर किया जाता है। इसमें 50 प्रतिशत हार्ड स्लज से सीमेंट तैयार किया जाता है, जबकि 25-30 प्रतिशत स्लज से बायो गैस एनर्जी तैयार की जाती है।
शेष हिस्से का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद (एनएपी) बनाने में किया जाता है। इस प्रक्रिया से न केवल कचरे का निस्तारण होता है, बल्कि ऊर्जा और निर्माण सामग्री भी तैयार होती है। जापान ने सीवेज ट्रीटमेंट और अपशिष्ट प्रबंधन तकनीक से विकास और स्वच्छ पर्यावरण का उदाहरण है। प्रतिनिधिमंडल में नमामि गंगे परियोजना राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के विभागीय अधिकारी भी मौजूद रहे।
जीपीएस से जुड़ा सीवेज नेटवर्क
जापान के शहरों में करीब एक हजार करोड़ रुपये के आटोमेटेड सीवेज प्लांट लगे हैं। खास बात यह है कि यहां मैनहोल के ढक्कन तक जीपीएस से जुड़े होते हैं। जहां भी अधिक कचरा जमा होता है, उसकी सूचना तुरंत कंट्रोल रूम तक पहुंच जाती है और समय पर सफाई कर दी जाती है। इससे न तो गंदगी फैलती है और न ही पानी रुकता है।
वर्षा जल से पीने योग्य पानी तक
जापान में वर्षा के जल को रिसाइकल करके न केवल पीने योग्य पानी बनाया जाता है, बल्कि अतिरिक्त पानी नदियों में छोड़ा जाता है। इस तकनीक से जल संकट की समस्या काफी हद तक हल होती है। जापान के हर शहरी घर में दो अलग-अलग पाइपलाइन लगी होती हैं।
इनमें नीले रंग की पाइप पानी के लिए और लाल रंग की पाइप हार्ड कचरे के लिए होती है। इससे अपशिष्ट और जल प्रबंधन का काम व्यवस्थित ढंग से होता है।
शिक्षा और कानून में सफाई का महत्व
जापान के स्कूलों में बच्चों के लिए बेसिक सब्जेक्ट में साफ-सफाई और सामाजिक जिम्मेदारी को शामिल किया जाता है। वहां के बच्चों को नर्सरी से ही पढ़ाई के साथ सफाई, समाज और सामाजिक जिम्मेदारी की विशेष शिक्षा दी जाती है। उद्योगों से निकलने वाले दूषित पानी को लेकर वहां बहुत कड़े कानून लागू हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण रहता है।
इस दौरे से यह साफ हुआ है कि अगर जापान की तकनीक और नीतियों को भारत में अपनाया जाए तो न केवल शहरों की स्वच्छता व्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि अपशिष्ट से ऊर्जा और खाद बनाकर आर्थिक लाभ भी कमाया जा सकेगा। - गगनेश शर्मा, निदेशक राष्ट्रीय प्राकृतिक एवं जैविक खेती केंद्र
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