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    राजा अशरफ बख्श ने लमती-लोलपुर गांव के मैदान में अंग्रेजी सेना को चटाई थी धूल, जिंदा जल गए लेकिन झुके नहीं

    Updated: Wed, 26 Nov 2025 08:17 AM (IST)

    राजा अशरफ बख्श ने लमती-लोलपुर में अंग्रेजी सेना को परास्त किया। उन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अद्भुत साहस दिखाया। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए, वे जिंदा जल गए, पर झुके नहीं। उनका बलिदान आज भी लोगों को प्रेरित करता है और उनकी वीरता की कहानी अमर है।

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    लमती-लोलपुर गांव के मैदान में अंग्रेजी सेना के छुड़ा दिए थे छक्के।

    राहुल शुक्ल, बभनजोत (गोंडा)। देश को आजादी यूं ही नहीं मिली, बल्कि इसके पीछे हजारों सेनानियों का त्याग व बलिदान छिपा है। इन्हीं बलिदानियों में शामिल थे राजा अशरफ बख्श, जिन्होंने जिंदा जलकर मौत को गले लगा लिया लेकिन, अंग्रेजों की अधीनता नहीं स्वीकार की।

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    कुआनों नदी के किनारे जिले की बूढ़ापायर रियासत (राज्य) के राजा थे अशरफ बख्श। बभनजोत ब्लॉक की ग्राम पंचायत कस्बाखास उनका मुख्यालय था। 1857 में जब अवध में बेगम हजरत महल के नेतृत्व में विद्रोह की चिंगारी फूटी तो महाराजा देवीबख्श सिंह के नेतृत्व में राजा अशरफ बख्श समेत अन्य राजाओं ने अंग्रेजों से लड़कर प्राणों की आहुति दी।

    उन्होंने सरयू नदी के उत्तर दिशा में लमती-लोलपुर गांव के मैदान में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाला। यहां अपनी वीरता से अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए। जब अंग्रेजों को लगा कि देशी राजे-रजवाड़ों को पराजित करना असंभव है तो जनरल होप ग्रांट ने फूड डालो और राज करो की नीति अपनाकर कुछ लोगों को मिला लिया।

    इसके बाद सेनानियों से भीतरघात हुआ और तोपों में बारूद की जगह बालू भरकर सप्लाई करा दिया। तोपें ठंडी हो जाने के कारण नही चली फिर भी शूरवीर छह दिन तक लड़े। 27 दिसंबर 1857 तक चले युद्ध के बाद राजा अशरफ बख्श व उनके साथियों को पीछे हटना पड़ा।

    उन्होंने नवाबगंज के होलापुर तालिब में खुदाबक्स के यहां शरण ली। किसी देशद्रोही ने उनके यहां छिपे होने की मुखबिरी अंग्रेजों से कर दी। अंग्रेजों ने पूरे गांव को घेर लिया और घर-घर की तलाशी हुई, जिसके बाद जिस मकान में अशरफबख्श के छिपे होने की सूचना थी, उसमें आग लगा दिया गया।

    वे जलकर बलिदान हो गए। यहीं पर उनकी मजार बना दी गई। प्रत्येक वर्ष यहां कार्यक्रम का आयोजन कर ग्रामीण नमन करते हैं। पहले यहां 18 मार्च को बैंड बाजे के साथ सलामी की परंपरा थी लेकिन, 1992 के बाद यह बंद हो गई।

    अब सिर्फ स्थानीय लोग उनकी मजार पर चादर चढ़ा कर व चिराग जलाकर उन्हें नमन करते हैं। उनका पैतृक घर खड़हर में तब्दील हो चुका है।

    1959 में हुई थी बभनजोत ब्लाक की स्थापना

    बभनजोत ब्लाक की स्थापना 1959 में हुई थी। तत्कालीन विधायक रघुरन तेज बहादुर सिंह गौराचौकी में ब्लाक की स्थापना कराई थी। यहां 79 ग्राम पंचायतें हैं। ब्लाक प्रमुख मधुलिका पटेल व बीडीओ रामलगन वर्मा हैं।

    बीडीओ ने बताया कि नागरिकों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ ही मॉडल गांव विकसित किए गए हैं। अमृत सरोवर, ओपेन जिम, कूड़ा निस्तारण केंद्र के साथ ही अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। ब्लाक परिसर में सेल्फी प्वाइंट का निर्माण कराने के साथ ही भवनों का सुंदरीकरण कराया गया है।