बाल मजदूरी करने वाले नन्हें हाथ अब नहीं तोड़ेंगे पत्थर, कलम चलाकर उज्ज्वल करेंगे अपना भविष्य
बाल श्रमिक विद्या योजना अनाथ व दिव्यांग माता- पिता के बच्चों के लिए वरदान बनी है। श्रम विभाग की इस योजना के तहत चयनित छात्र को एक हजार व छात्रा को 12 ...और पढ़ें

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। माता-पिता दोनों या फिर दोनों में से किसी एक के गुजरने के बाद या दोनों के दिव्यांग होने पर बाल मजदूरी कर पेट पालने वाले नन्हें हाथ अब पत्थर नहीं तोड़ेंगे बल्कि कलम चलाएंगे। जिससे उनका आगे का भविष्य उज्ज्वल हो सकें। यह संभव हो रहा है श्रम विभाग की बाल श्रमिक विद्या योजना के जरिये। प्रथम चरण में गोरखपुर जिले के 27 कामकाजी बालक और 49 बालिकाओं का चयन हुआ है। जिनमें से बालकों को एक हजार व बालिकाओं को बारह सौ रुपये प्रतिमाह नकद दिए गए हैं।
इन बच्चियों को मिलेगा पढ़ने का मौका: सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली गुलरिहा क्षेत्र की दो बच्चियों के सिर से कुछ दिनों पहले पिता का साया उठ गया। इसके बाद उसकी मां को ससुराल वालों ने निकाल दिया। ऐसे में मां दोनों बेटियों को लेकर मेहनत मजदूरी करने लगी। मजदूरी से वे बेटियों का पेट तो भर सकती थी, लेकिन उन्हें पढ़ा नहीं सकती थी। मां के साथ ही बेटियां भी सब्जी की दुकान लगाती थीं। इसी दौरान उनका चयन श्रम विभाग की बाल श्रमिक योजना के तहत हो गया। अब दोनों को सरकार की तरफ से हर माह 12-12 सौ रुपये मिलेंगे। पहले माह का रुपये मिलने के बाद वह फिर स्कूल जाना शुरू कर दी हैं।
जिला बेसिक शिक्षाधिकारी रमेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि बाल श्रमिक योजना के तहत पहले चरण में जनपद के 76 बच्चों का चयन किया गया है। अब ये नियमित स्कूल आकर पढ़ाई कर रहे हैं। यह योजना बाल मजदूरी करने बच्चों को जोड़ने में सहायक होगी।
एक ही स्कूल से चयनित हुए हैं 44 बच्चे: योजना के अंतर्गत चयनित 76 बच्चों में से 44 बच्चे सिर्फ एक ही स्कूल चरगांवा स्थित कंपोजिट स्कूल सराय गुलरिया के हैं। स्कूल की प्रधानाध्यापक अनिता श्रीवास्तव बतातीं हैं कि स्कूल में कई बच्चे पढने में अच्छे थे, लेकिन वो रोज पढ़ाई करने नहीं आते थे। मैंने उनके बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वे बच्चे बाल मजदूरी में लगे थे। उनके सिर से पिता या फिर माता-पिता दोनों का ही साया उठ गया था। इसके बाद मैंने इस योजना के अंतर्गत इन बच्चों को जोड़ा तो एक बार फिर वे बच्चे बाल मजदूरी छोड़कर पढ़ाई में रुचि दिखाने लगे हैं।

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