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    Chhath Puja 2025: नहाय-खाय के साथ आज शुरू होगा छठ पर्व, खरना कल

    Updated: Sat, 25 Oct 2025 07:49 AM (IST)

    गोरखपुर में छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ हो गई है। व्रती सूर्य देव की उपासना करेंगे और खरना के बाद निर्जल व्रत रखेंगे। बाजार में पूजा सामग्री की दुकानें सज गई हैं। षष्ठी देवी की आराधना और घाटों की सफाई के साथ भक्त इस महापर्व की तैयारी में जुटे हैं।

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    राप्ती नदी के तट राजघाट पर परिवार के लिए छठ पूजा के लिए बेदी बनाती युवती व अन्य। पंकज श्रीवास्तव

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। भगवान सूर्य की उपासना का चार दिवसीय छठ पर्व शनिवार को ''''नहाय-खाय'''' के साथ शुरू होगा। रविवार को खरना है। खरना के बाद निर्जल व्रत शुरू हो जाएगा। सोमवार को अस्ताचलगामी व मंगलवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती मंगलकामना करेंगे। पूजा की तैयारी तेज हो गई है। भक्ति के साथ ही उत्सव-उल्लास का वातावरण है। बाजार में चहल-पहल बढ़ गई है। पूजा सामग्री की दुकानें सज गई हैं।

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    व्रती 'नहाय-खाय' के दिन नाखून काटने के बाद स्वच्छता से बाल धुलकर स्नान करेंगे। इसके बाद अपने लिए अलग चौके में कद्दू-चावल का भोजन बनाएंगे। इसमें शुद्ध घी का प्रयोग किया जाएगा। कई जगह व्रती भोजन में सेंधा नमक का भी प्रयोग करते हैं। परिवार के सदस्यों के साथ बाजार जाएंगे। 'खरना' के दिन आंशिक उपवास रहेंगे, यानी दिन में व्रत रहने के उपरांत शाम को स्वच्छता से धुले स्थान पर चूल्हे को स्थापित कर अक्षत, धूप, दीप व सिंदूर से उसकी पूजा करेंगे।

    तत्पश्चात प्रसाद के लिए रखे हुए आटे से 'रसियाव-रोटी' बनाएंगे। चौके में ही 'खरना' करेंगे। रोटियां बनाने के बाद बचे हुए आटे से एक छोटी रोटी बनाकर रखी जाएगी, जिसे ओठगन कहते हैं। प्रात:कालीन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद इस रोटी को खाकर व्रत की पूर्णाहुति करेंगे।

    सूर्य की लालिमा में वास करती हैं षष्ठी माता
    छठ पर्व पर भगवान सूर्य की उपासना की जाती है लेकिन पूजा छठ मइया की होती है, गीत भी छठ माता के गाए जाते हैं। इन दोनों में क्या संबंध है और दोनों का इस व्रत से क्या संबंध है? इस सवाल पर आचार्य पं. शरदचंद्र मिश्र ने कहा कि षष्ठी देवी सूर्य की अरुणिमा (लालिमा) में वास करती हैं, इसलिए अरुणोदय कालीन सूर्य को अर्घ्य देने से षष्ठी माता की भी पूजा हो जाती है।

    इस व्रत में गीत षष्ठी देवी के गाए जाते हैं लेकिन आराधना भगवान सूर्य की होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सूर्य व षष्ठी देवी भाई-बहन हैं तथा मान्यता है कि प्रात: व सायंकाल सूर्य की लालिमा में षष्ठी देवी निवास करती हैं। इसलिए भगवान सूर्य के साथ षष्ठी देवी की पूजा होती है।

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    छठ व्रत का माहात्म्य
    छठ व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। पहली कथा के अनुसार मगध के राजा बिंबसार ने छठ व्रत कर कुष्ठ रोग से मुक्ति पा ली। दूसरी कथा के अनुसार द्रौपदी व युधिष्ठिर ने यह व्रत किया तो पांडवों को खोया हुआ राज्य पुन: मिल गया। तृतीय कथा के अनुसार सुकन्या ने विधि पूर्वक इस व्रत को किया तो उनके पति की आंखों को रोशनी मिल गई और उन्होंने अपने जीवन की शेष आयु को संपन्नता में व्यतीत किया। चतुर्थ कथा के अनुसार इस व्रत को करने से राजा प्रियव्रत का मृत पुत्र जीवित हो गया।

    घाटों की हुई सफाई, वेदियों का निर्माण तेज
    छठ पूजा के लिए घाटों की सफाई कर श्रद्धालुओं ने वेदियों का निर्माण शुरू कर दिया है। तैयारी तेज हो गई है। वेदी निर्माण के लिए अब दो दिन का ही समय बचा है। व्रतियों ने पानी के किनारे अपने लिए जगह चिह्नित कर ली है। अब घाटों पर पानी के किनारे जगह खोजना मुश्किल है। राप्ती नदी, महेसरा व रामगढ़ताल के अलावा विभिन्न मोहल्लों, घरों और मंदिर परिसरों में छठ घाट बनाए गए हैं। अनेक जगहों पर छठ माता की मूर्तियां भी स्थापित की जाएंगी।