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    Gorakhpur Book Fair: महोत्सव में आए तीन लाख पाठक, खरीद लीं पांच करोड़ की किताबें

    Updated: Tue, 11 Nov 2025 01:40 PM (IST)

    गोरखपुर पुस्तक मेले ने पूरे पूर्वांचल में पुस्तक संस्कृति को पुनर्जीवित किया है। तीन लाख पाठकों ने भाग लिया और पांच करोड़ की किताबें खरीदीं। इस महोत्सव ने युवाओं को ज्ञान से जोड़ा और सामाजिक चेतना को बढ़ावा दिया। यह आयोजन गोरखपुर के लिए एक महत्वपूर्ण सफलता है।

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    शब्दों और विचारों की रोशनी से पूर्वांचल को जगा गया महोत्सव

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। पूर्वांचल की धरती शब्दों और विचारों की रोशनी से जगमगा गई। नौ दिनों तक चले गोरखपुर पुस्तक महोत्सव ने शहर ही नहीं, समूचे पूर्वांचल में ज्ञान और साहित्य का एक अद्भुत वातावरण रच दिया। तीन लाख से अधिक पाठकों की उपस्थिति ने यह सिद्ध कर दिया कि आज भी किताबों की महक लोगों के दिलों में रची-बसी है। पांच करोड़ रुपये की पुस्तकों की बिक्री इस बात का प्रमाण है कि डिजिटल युग में भी किताबों का आकर्षण अबाध है।

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    नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से आयोजित पुस्तक महोत्सव पूर्वांचल में अब तक का सबसे बड़ा पुस्तक पर्व साबित हुआ। इसमेंं न केवल किताबें खरीदी गईं बल्कि विचारों का आदान-प्रदान, संवाद और सृजन का उत्सव भी मनाया गया। हर आयु वर्ग के लोग बच्चे, युवा, वृद्ध, विद्यार्थी, शिक्षक और साहित्यप्रेम सभी पूरे उत्साह के साथ इसका हिस्सा बने।

    किसी के हाथ में बाल साहित्य था, तो कोई दर्शनशास्त्र के पन्नों में खोया था। कवियों की कविताएं, लेखकों के विमर्श और कलाकारों के कला ने मिलकर गोरखपुर को संस्कृति और साहित्य के शहर के रूप में स्थापित कर दिया।

    दरअसल, यह महोत्सव किताबों की बिक्री तक सीमित नहीं रहा बल्कि एक वैचारिक क्रांति का प्रतीक बन गया। इसके जरिये नेशनल बुक ट्रस्ट का हर हाथ में किताब का लक्ष्य साकार होता दिखा। महोत्सव में पहुंचे पुस्तक प्रेमियों के चेहरों पर संतोष और गर्व की चमक यह बता रही थी कि वह सांस्कृतिक पुनर्जागरण का हिस्सा बन रहे हैं। संगीत, कविता और साहित्यिक संवादों ने नौ दिनों की स्मृतियों को अमर बना दिया। यह पुस्तक महोत्सव केवल किताबों का मेला नहीं था। संवेदनाओं, संस्कारों और सृजनशीलता का संगम भी था। इसने इस विश्वास को मजबूत किया कि जब समाज किताबों से जुड़ता है तो वह अपने भविष्य से भी जुड़ता है।

    पुरानी किताबों का बाजार आज भी बरकरार
    जिस तरह से पुराने गानों का क्रेज अभी भी बरकार है, उसी तरह पुरानी पुस्तकाें का आज भी बाजार है। महोत्सव में कुछ मशहूर पुरानी पुस्तकों की बिक्री इस बात का प्रमाण है। मैला आंचल, रश्मिरथी, राग दरबारी, गोदान, गबन, सूरज का सातवां घोड़ा, गुनाहों का देवता, तमस, चंद्रकांता संतति, वैशाली की नगर वधु वह किताबें रहीं, जो प्रकाशकों के स्टाल से हाथों-हाथ बिक गईं। प्रकाशकों को उन्हें कई बार मंगाना पड़ा, फिर कुछ पाठकों को इन किताबों के न मिलने से निराश होकर लौटना पड़ा।

    मुख्यमंत्री का सपना हुआ साकार
    गोरखपुर पुस्तक महोत्सव के जरिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह सपना भी साकार हुआ कि गोरखपुर और पूर्वांचल में एक जीवंत पुस्तक संस्कृति विकसित हो। उनके संरक्षण में यह महोत्सव केवल एक आयोजन नहीं बल्कि एक आंदोलन बन गया। पढ़ने, सोचने और सीखने का। उनका यह संदेश भी महोत्सव की सफलता का आधार बना कि जो समाज पढ़ता है, समाज आगे बढ़ता है।

    गोरखपुर पुस्तक महोत्सव की सफलता से यह सिद्ध हो गया कि भारत के छोटे शहरों में भी पढ़ने की परंपरा अभी जीवंत है। हमारा सपना है कि हर हाथ में किताब हो और यह आयोजन उस दिशा में एक सशक्त कदम साबित हुआ है।

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    -युवराज मलिक, निदेशक, नेशनल बुक ट्रस्ट

    इस महोत्सव ने न सिर्फ गोरखपुर बल्कि पूरे पूर्वांचल में पुस्तक संस्कृति को नया जीवन दिया है। यह आयोजन युवाओं को ज्ञान से जोड़ने और समाज में बौद्धिक चेतना जगाने का अद्भुत माध्यम बना है। इसकी सफलता के लिए सभी को बधाई।

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    -प्रो. पूनम टंडन, कुलपति, दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय