जन्म के तुरंत बाद रो नहीं रहे जो नवजात, हो रहे बर्थ एसफिक्सिया के शिकार
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बर्थ एसफिक्सिया से पीड़ित नवजात शिशु आ रहे हैं जिनमें निजी अस्पतालों के बच्चे भी शामिल हैं। जन्म के समय न रोने से मस्तिष्क तक ऑक्सीजन नहीं पहुँच पाती जिससे शारीरिक समस्याएँ होती हैं। सीएचसी और निजी अस्पतालों में बाल रोग विशेषज्ञों की कमी है।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। बीआरडी मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग के विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई (एसएनसीयू) में प्रतिदिन सात-आठ नवजात बर्थ एसफिक्सिया के शिकार होकर पहुंच रहे हैं। इनमें निजी अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में जन्म लेने वाले बच्चे हैं।
जन्म के समय न रोने की वजह से इनके मस्तिष्क में आक्सीजन नहीं पहुंच पाता है और इससे शारीरिक दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। किसी को झटका आ रहा है तो किसी की शारीरिक सक्रियता कम हो गई है। हिस्ट्री जानने के क्रम में पता चला कि जहां बच्चों का जन्म हुआ, वहां बाल रोग विशेषज्ञ नहीं थे। उन्हें पता होता है कि बच्चों को कैसे रुलाया जाए।
अनेक सीएचसी-पीएचसी व निजी अस्पतालों में बाल रोग विशेषज्ञ न होने से यह दिक्कत आ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि एक मिनट के अंदर बच्चों के मस्तिष्क में पर्याप्त आक्सीजन नहीं पहुंचा तो स्थायी क्षति हो सकती है। एसएनसीयू में ऐसे बच्चों का लक्षणों के आधार पर ही उपचार किया जा रहा है।
ज्यादा आशंका इस बात की रहती है कि बड़े होने पर वे बोल-सुन न पाएं, चलने व बैठ पाने में दिक्कत हो या गर्दन न संभाल पाएं। ऐसे बच्चों के लिए विभाग में हर गुरुवार को न्यूरो डेवलपमेंटल क्लीनिक चलाई जा रही है। एसएनसीयू से डिस्चार्ज करते समय स्वजन को बता दिया जाता है कि यदि बच्चे में कुछ भी असामान्य लगे तो यथाशीघ्र न्यूरो डेवलपमेंटल क्लिनिक में लाकर दिखा दें। दवाओं व फिजियोथेरेपी से उन्हें राहत दी जाती है।
ट्रायल के लिए मंगाई गई हाइपोथर्मिया मशीन
माना जाता है कि बर्थ एसफिक्सिया का अभी तक एकमात्र कारगर उपचार हाइपोथर्मिया मशीन से होता है। इस मशीन की सहायता से बच्चों के शरीर का तापमान 34 डिग्री सेंटीग्रेट तक करके शरीर को ठंडा कर दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रक्रिया से जन्म के तुरंत बाद न रोने का दुष्प्रभाव कम हो जाता है।
यह भी पढ़ें- गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में मरीजों के लिए खुशखबरी, तैयार हुआ आधुनिक ICU
न रोने का सभी अंगों पर पड़ता है दुष्प्रभाव
विशेषज्ञों के अनुसार न रोना व सांस नहीं लेना, दोनों एक ही बातें हैं। यदि बच्चा जन्म के तुरंत बाद रोएगा नहीं तो सांस भी लेगा। इससे मस्तिष्क में पर्याप्त आक्सीजन नहीं पहुंच पाता है। मस्तिष्क, किडनी, फेफड़े, आंत समेत सभी अंगों को नुकसान पहुंच जाता है, जो दिव्यांगता का कारण बन सकता है।
बड़ी संख्या में बच्चे बर्थ एसफिक्सिया के शिकार हो रहे हैं। ओपीडी जितने बच्चे आ रहे हैं, उनमें से लगभग 30 प्रतिशत बर्थ एसफिक्सिया से ग्रसित होते हैं। लक्षणों के आधार पर उनका उपचार किया जा रहा है। डिस्चार्ज होने के समय यह बताया जाता है कि कोई दिक्कत होने पर वे पुन: अस्पताल लेकर आएं।
-डा. कुलदीप सिंह, नोडल अधिकारी एसएनसीयू, बीआरडी मेडिकल कालेज
बर्थ एसफिक्सिया के बच्चों का तत्काल उपचार तो कर दिया जाता है लेकिन आगे चलकर उन्हें दिक्कत होती है। इसलिए ऐसे बच्चों के लिए विभाग में न्यूरो डेवलपमेंटल क्लिनिक शुरू की गई है। हर गुरुवार को क्लिनिक चलती है। छह माह से एक साल के अंदर अनेक बच्चे उपचार के लिए पुन: आ जाते हैं।
-डा. भूपेंद्र शर्मा, नोडल अधिकारी न्यूरो डेवलपमेंटल क्लिनिक, बीआरडी मेडिकल कालेज
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।