हमारे आदर्श शिक्षक: बंद विद्यालय किया गुलजार, बने बच्चों के तारणहार
राज्य अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित यतेंद्र गुप्ता ने गोरखपुर के एक बंद पड़े विद्यालय को अपनी मेहनत से पुनर्जीवित किया। उन्होंने 15 वर्षों में छात्रों की संख्या शून्य से 175 तक पहुंचाई। विद्यालय में लाइब्रेरी खेल मैदान जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराईं। हाल ही में एक ही दिन में 54 बच्चों का नामांकन कराया। उनकी माँ के पेंशन के पैसे से स्कूल में फर्नीचर खरीदा गया।

प्रभात कुमार पाठक, जागरण गोरखपुर। राज्य पुरस्कार प्राप्त प्रधानाध्यापक यतेंद्र कुमार गुप्ता ने अपनी लगन और परिश्रम से विद्यालय की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है। जो विद्यालय कभी बंद पड़ा था, आज वहां रौनक लौट आई है। विद्यार्थियों की संख्या शून्य से बढ़कर 175 तक पहुंच गई है।
कायाकल्प के बाद विद्यालय में आज लाइब्रेरी, खेल मैदान, प्रयोगशाला और किचन गार्डन जैसी सुविधाएं मौजूद हैं। यहां के बच्चे हर साल शैक्षणिक भ्रमण पर भी जाते हैं। हाल ही में एक ही दिन में कक्षा छह में 54 बच्चों का नामांकन कर यह उन्होंने साबित कर दिया कि समर्पण और सही प्रयास से नामांकन कोई चुनौती नहीं, बल्कि अवसर है। उन्होंने ऐसे शिक्षकों के लिए नजीर पेश की है जो नामांकन बढ़ाने को कठिन मानते हैं।
वर्ष 2010 में जब यतेंद्र ने उरुवा विकास खंड के पूर्व माध्यमिक विद्यालय इन्नाडीह के प्रधानाध्यापक के रूप में विद्यालय में कार्यभार संभाला तो इनके अलावा एक सहायक अध्यापक थे। बंद विद्यालय मिला था लिहाजा यहां एक भी बच्चे नहीं थे। भवन के नाम पर बिना खिड़की व दरवाजे का कमरे थे।
बैठने के लिए न तो कुर्सी थी और न ही डेस्क बेंच। बुनियादी संसाधनों का पूरी तरह अभाव था। सामने सबसे बड़ी चुनौती स्कूल तक बच्चों का लाना था। यतींद्र ने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया और शुरुआती दौर में आसपास के गांवों में चौपाल लगानी शुरू की। 15 दिन में तीन बच्चों का नामांकन किया और फिर शुरू हुआ पठन-पाठन।
बच्चों को पर्यावरण का पाठ पढ़ाते प्रधानाध्यापक यतेंद्र कुमार गुप्ता।
छह माह तक बिना अवकाश के मेहनत की, गांव-गांव घूमें, अभिभावकों से संपर्क किया और बच्चों काे स्कूल भेजने के लिए उन्हें प्रेरित किया। देखते ही देखते छात्र संख्या 37 पहुंच गई। सत्र समाप्त हुआ तो कक्षा आठ में सात छात्राएं नामांकित थी। इनका निकट के ग्रामोदय इंटर कालेज में कक्षा नौ में नामांकन कराया।
फीस से लेकर कापी-किताब तक का खर्च खुद उठाया। दूसरे सत्र में फिर नामांकन का प्रयास किया, अभिभावकों को प्राेत्साहित किया और छात्र संख्या 67 पहुंचा दिया। शिक्षक यतेंद्र बताते हैं कि उस समय हमारे स्कूल के आसपास 18 गैर मान्यता प्राप्त विद्यालय संचालित होते थे। धीरे-धीरे मेहनत रंग लाई और उन स्कूलों के बच्चे भी धीरे-धीरे यहां आने लगे, जिससे संख्या 175 पहुंच गई।
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मां के पेंशन के पैसे से खरीदा स्कूल में फर्नीचर
वर्ष 2014 में जिला स्तर पर आदर्श शिक्षक का पुरस्कार प्राप्त कर चुके यतेंद्र बताते हैं कि उनकी मां मोनी देवी जो अपने पेंशन का 10 प्रतिशत हिस्सा कैंसर अस्पताल को दान करती थी। मेरे कहने पर वह शिक्षा के लिए मेरे स्कूल के देने लगी। उस पैसे से मैंने स्कूल के बच्चों के बैठने के लिए फर्नीचर, स्टेशनरी तथा छात्राओं की बुनियादी जरूरत के लिए सेनेटरी नैपकीन तथा उनके को-करिकुलर एक्टिविटी की भी व्यवस्था की।
इस वर्ष छात्रवृत्ति परीक्षा में नौ बच्चे हुए चयनित
प्रधानाध्यापक यतेंद्र ने बताया कि राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति परीक्षा (एनएमएमएस) में इस वर्ष नौ छात्र-छात्राएं विद्यालय के चयनित हुए हैं। जबकि एक छात्रा नवोदय प्रवेश परीक्षा व दो छात्राएं सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के लिए चयनित हुई है, जो एक बड़ी उपलब्धि है।
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