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    सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल बनी मीरा बाबा मजार, सबसे ज्यादा मन्नतें मांगने आते हैं नवविवाहित जोड़े

    Updated: Wed, 05 Nov 2025 04:38 PM (IST)

    हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में मीरा बाबा की मजार सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है। कार्तिक माह में गंगा मेले के दौरान यहां विशेष मेला लगता है, जिसमें सभी धर्मों के लोग मन्नतें मांगने आते हैं। नवविवाहित जोड़े संतान प्राप्ति के लिए यहां प्रार्थना करते हैं और मनोकामना पूरी होने पर प्रसाद चढ़ाते हैं। मजार पर गरीबों को प्रसाद बांटा जाता है और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है।

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    अशरफ चौधरी, गढ़मुक्तेश्वर (हापुड़)। हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में कचहरी के पास मीरा बाबा की मजार इस दौर में भी सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल बनी हुई है, जिस पर कार्तिक माह में पौराणिक गंगा मेले के दौरान आयोजित होने वाला मेले की आखिरी रात होती हैं। जहां हाजरी लगाने के बाद ही व्यापारी और पशु पालक गंगा मेले को रवानगी करने की परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।

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    महाभारत कालीन तीर्थनगरी में ऐसे अनेकों धर्मस्थल हैं, जो यहां के पौराणिक महत्व का आज भी जीवंत प्रमाण बने हुए हैं। लेकिन गढ़ के उत्तरी छोर पर स्थित मुस्लिम फकीर मीरा बाबा की मजार इस सबसे पूरी तरह अछूती रही थी।

    कार्तिक मास में पौराणिक गंगा मेले के दौरान मीरा मजार पर भी मेला भरता है। वैसे तो सभी धर्म-संप्रदाय के अनुयायी मजार पर आकर मन्नतें मांगते हैं, लेकिन इनमें सर्वाधिक संख्या देश के सबसे बड़े अश्वीय मेले में आने वाले प्रजापति समाज के लोगों की रहती है। जो मजार पर एक रात का पड़ाव डालकर मेले में पहुंचते हैं।

    नवविवाहित जोड़े संतान प्राप्ति के लिए जात लगाते हैं, जो मनोकामना पूरी होने पर अगले वर्ष यहां आकर नारियल, बताशे, लड्डू आदि का प्रसाद एवं चादर चढ़ाकर बाबा का आभार जताते हैं।

    पूनम मेरठ, सुमन दिल्ली, रिंकू प्रजापति का कहना है कि बाबा के दरबार पर आकर सभी मनोकामना पूरी होती हैं। मजार की देखरेख स्वर्गीय यामीन शेख के परिजन पुश्तैनी रूप में करते आ रहे हैं।

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    मजार के प्रबंधक मुस्तफा शेख ने बताया कि बाबा के दरबार में हाजरी लगाने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों से बड़ी संख्या में भक्त आ रहे हैं।

    गरीब और निराश्रितों को बंटता है प्रसाद

    मीरा मजार पर आने वाले श्रद्धालु मिट्टी की हांडी में गुड़ एवं चावल डालकर उसे उपले (कंडों) की आंच पर पकाते हैं। जिसे गरीब निराश्रितों को वितरित कर बाबा को प्रसन्न किया जाता है।

    गरीबों की हो जाती है मजदूरी

    मीरा मजार पर मेले के दौरान नगर के सैकड़ों लोग फूल प्रसाद, बताशे, मिट्टी की हांडी, उपले, चावल, चादरस नारियल आदि सामान बेचने को सैकड़ों दुकान लगाते हैं, जिनमें बाबा के भक्तों के रात्रि विश्राम के साथ ही अन्य जरूरी व्यवस्था भी की जाती हैं।