गांव की रूढ़िवादी परंपराएं तोड़ शिकोह ने हासिल किया 'अंतरराष्ट्रीय मंच', विरोध की आंधियों से नहीं मानी हार
शिकोह जैदी, एक छोटे गांव की बेटी, ने “चुप” पुस्तक पढ़कर मासिक धर्म पर चुप्पी तोड़ी। समाज की संकोचपूर्ण दीवारों को पार कर खुलकर बात की और विरोध के बावजूद हार नहीं मानी। कक्षा 11 में पढ़ते हुए उन्होंने गांव में मासिक धर्म स्वच्छता जागरूकता अभियान शुरू किया, जिससे अंधविश्वास का अंधेरा भरोसे की रोशनी में बदल गया।

महिलाओं की जागरूकता चौपाल में मौजूद महिलाएं एवं किशोरी।
पंकज मिश्र, हरदोई: एक छोटे से गांव की बेटी शिकोह जैदी ने “चुप” पुस्तक को पढ़कर वही किया जो बड़े-बड़े मंचों के लोग सोचकर भी नहीं कर पाते। उन्होंने चुप्पी तोड़ी। समाज की संकोच भरी दीवारों को लांघकर उन्होंने मासिक धर्म पर खुलकर बात करने की हिम्मत दिखाई। विरोध की आंधियों के बीच भी शिकोह ने हार नहीं मानी और जागरूकता की ऐसी लौ जलाई, जिसने अंधविश्वास के अंधेरे को भरोसे की रोशनी में बदल दिया। कक्षा 11 में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने अपने गांव में मासिक धर्म स्वच्छता को लेकर जागरूकता फैलाने का काम शुरू किया।
महिलाओं और लड़कियों को मिथकों से मुक्त करने के लिए संवाद किया, जोकि एक क्रांति की तरह फैला। गांव से शुरू की गई मुहिम ने शिकोह जैदी को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थान दिलाया। कतर में नौकरी कर रही शिकोह जैदी इस मुहिम को गांव के बाद क्षेत्र, जिला और प्रदेश और देश में फैलाने का प्रयास कर रही रही है। साथ ही ऐसा प्रयास कर रही है। पैड पर्यावरण को भी नुकसान न पहुंचाए।
कहां से मिली शुरुआती शिक्षा
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के पिहानी क्षेत्र में कुंवरपुर बघेल की शिकोह जैदी की शुरुआती शिक्षा कक्षा पांच तक गांव में ही हुई। पिता मोहम्मद मु्स्लिम जैदी किसान हैं तो मां तनवीर जैदी शिक्षिका। शिकोह जैदी बचपन से ही पढ़ने लिखने में अच्छी थी तो वर्ष 2013 में सीतापुर के कमलापुर में स्थित विद्या ज्ञान स्कूल में शिकोह जैदी को प्रवेश मिल गया। उसके बाद कक्षा छह से 12 तक वहीं पर पढ़ाई की। शिकोह जैदी कहती हैं कि बचपन से ही उन्हें पुस्तक पढ़ने में रुचि थी। कक्षा 11 की पढ़ाई कर रही थी तो मैंने सामाजिक वैज्ञानिक दीपा नारायण की चुप पुस्तक पढ़ी। उसमें कई मुद्दे थे। खासकर ऐसे मुद्दे जिसमें महिलाओं को चुप रहने के लिए कहा जाता है कि कम बोलें चुप रहे आदि। चुप रहने वाली बातों में महिलाओं का मासिक धर्म भी शामिल था। जबकि यह चुप रहने की नहीं, बल्कि चर्चा की बात थी।
मैं गांव आईं तो मां से इस बात का जिक्र किया और कहा कि यह चुप रहने वाली बात नहीं है। इसके लिए हम गांव में महिलाओं को जागरूक करेंगी, लेकिन मां ने मना कर दिया। कहा कि गांव में यह सब शोभा नहीं देता है। पिता के सामने मैंने बात रखी तो किसान होने के बाद भी उन्होंने हमारा हौसला बढ़ाया और कहा कि आगे बढ़ो, वह मदद करेंगे। शिकोह कहती हैं कि जब भी मैं गांव में किसी सहेली या महिला से बात करतीं तो वे संकोच में बात नहीं करती। सहेलियों से पूछा तो वे बतातीं कि कपड़ा प्रयोग करते हैं, जिससे समस्याएं हो जाती हैं। परेशान हो जाती है और घरवालों को नहीं बता पाती हैं।
लड़कियों और महिलाओं को समझाने का किया प्रयास
पिता से प्रोजेक्टर मंगाया और उससे गांव की लड़कियों व महिलाओं को समझाने का प्रयास किया, लेकिन बात सुनने के लिए कोई आता ही नहीं था। जब महिलाओं और लड़कियों को गांव में फिल्म दिखाने के बहाने बुलातीं। उन्हें समोसा-जलेबी खिलातीं तो कुछ उनकी बात सुनने को राजी हुईं। दिल्ली में एक संस्था ब्लाइंड रिलीफ आर्गनाइजेशन के साथ हमने काम किया।
वहां पैड बनाए जाते हैं। उनसे पैड खरीदे और उन्हें गांव में आकर बांटना शुरू किया। पढ़ाई के साथ ही यह काम भी जारी रहा और 2020 में 93 फीसद अंक से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। शिकोह के अनुसार पढ़ाई के दौरान ही वह विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रवेश के फार्म डालतीं रहतीं थीं। 2021 में उन्हें जार्जटाउन यूनिवर्सिटी कतर में प्रवेश मिल गया। 100 फीसद स्कालरशिप मिली और वहां से 2024 में फारेन सर्विस में बैचलर डिग्री पूरी की, लेकिन इस बीच भी उनकी मुहिम जारी रही और जिसमें पूरे गांव को जोड़ लिया, लेकिन जो पैड प्रयोग किए जाते हैं, उनके कुछ भाग ऐसे होते हैैं जोकि भूमि की उर्वरा शक्ति के लिए ठीक नहीं होते, कभी गलते नहीं। इसके विकल्प के रूप में कपड़े से बने पैड प्रयोग करना सिखाया, लेकिन उन पैडों को धोने के बाद सुखाकर प्रयोग किया जा सकता था, पर खुले में धूप में सुखाना जरूरी होता था, जिसे महिलाएं और लड़कियां असहज महसूस करती।
आगे का क्या है प्लान?
इसके लिए अब आगे का प्लान है कि प्लास्टिक के पैैड प्रयोग कर उन्हें खेतों में न फेंके। उन्हें तरीके सिखाएं कि उन्हें प्रकृृति के लिए नुकसान दायक न हों। 2023 में मैने दो और दोस्तों के साथ उनके साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर फिर से काम शुरू किया। वर्ल्ड फेडरेशन आफ यूनाइटेड नेशन एसोसिशएन (डब्लूएफयूएनए) के एक कार्यक्रम अंडर द स्ट्राई स्काई के तहत मैंने दो और साथियों के साथ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले पैड की जगह पर रीसाइकिल वाले पैड को प्रमोट किया। जो नार्वे में प्रस्तुत किया गया। यहां पर पूरे विश्व के युवा अपने अपने प्रोजेक्ट लेकर आए थे, लेकिन उनका प्रोजेक्ट ही सराहा गया।अंतराष्ट्रीय मंच पर उसे सराहना मिली।
शिकोह बताती हैं कि उनके गांव ही नहीं आसपास के गांवों में मुहिम फैल चुकी है। गांव की महिलाएं अब संकोच में चुप नहीं रहतीं, वे इस पर बात भी करना चाहती हैं। मेरा अभियान है कि मासिक धर्म पर कोई चुप न रहे। जनवरी 2025 में गांव के बाद क्षेत्र में काम शुरू किया और इसे और आगे ले जाने की मंशा है। साथ ही ऐसे पैड के बारे में सोच रही हूं जोकि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं। वर्तमान में राजनीति और सामाजिक मुद्दों में रुचि रखती हैं, और लिंक्डइन व इंस्टाग्राम पर सक्रिय हैं। गांव की किशोरियां अब खुलकर बात करती हैं और अब उन्हें मासिक धर्म की बात करने पर संकोच नहीं लगता।
कहानी के मुख्य बिंदु
- जागरूकता का मिशन: शिकोह ने ग्रामीण महिलाओं और किशोरियों को मासिक धर्म और स्वच्छता के महत्व के बारे में शिक्षित करने का मिशन शुरू किया।
- -प्रोजेक्टर के माध्यम से शिक्षा: उन्होंने गाँव में अपने घर पर एक प्रोजेक्टर लगाकर मासिक धर्म से जुड़े एनिमेटेड वीडियो दिखाए, ताकि लोग इस संवेदनशील विषय को बेहतर ढंग से समझ सकें।
- -चुनौतियों का सामना: अपने इस प्रयास में उन्हें कई सामाजिक बाधाओं और संकोच का सामना करना पड़ा। गांव के रूढ़िवादी माहौल में इस तरह के विषयों पर बात करना आसान नहीं था।
- प्रेरणा और समर्थन: शिकोह को विद्याज्ञान स्कूल में अपने शिक्षकों से प्रोत्साहन मिला, जहां वह पढ़ाई करती थीं। यह स्कूल मेधावी और वंचित छात्रों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करता है। चुप किताब पढ़ते समय मासिक धर्म के बिंदु पर सोचा कि यह चुप रहने वाली नहीं बल्कि सभी से साझा करने वाली बात है और उसी के बात से काम शुरू कर दिया।
- महिलाओं को सशक्त बनाना: शिकोह ने सैनिटरी नैपकिन के उपयोग की वकालत की और सुनिश्चित किया कि गांव की महिलाओं और लड़कियों को बुनियादी स्वच्छता उत्पादों तक आसान मिले।
- अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा: उन्होंने कतर में जार्जटाउन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फॉरेन सर्विस से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में डिग्री हासिल की है, जिससे उनके प्रयासों को एक नया आयाम मिला।

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