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    पंचायत चुनाव में भाजपा के लिए सहयोगी दलों को साथ रखना सबसे बड़ी चुनौती

    By SARVESH KUMAR MISHRAEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Tue, 14 Oct 2025 03:10 PM (IST)

    जौनपुर में पंचायत चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों में बेचैनी है। भाजपा के लिए सहयोगी दलों को साथ रखना एक चुनौती है, क्योंकि पिछले चुनावों में भाजपा और अपना दल के बीच तनाव देखा गया था। निषाद पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का एलान किया है। ऐसे में भाजपा के लिए गठबंधन को बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।

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    जागरण संवाददाता, जौनपुर। सत्ता में सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने वाली भाजपा के लिए पंचायत चुनाव में उनका साथ बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। पंचायत चुनाव के जरिए ग्रामीण मतदाताओं में अपनी पैठ बढ़ाने की महत्वाकांक्षा में सहयोगी दलों के स्थानीय नेताओं के हालिया बयान तो यही जता रहे हैं कि इस चुनाव में एनडीए की एका स्थानीय स्तर पर भी कायम रहे। इसके लिए भाजपा के लिए मजबूत रणनीति बनाए जाने की दरकार होगी।

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    सत्ता में साझीदार भाजपा के सहयोगी दल सुभासपा, निषाद पार्टी व अपना दल (एस) का अपना एक परंपरागत मतदाता वर्ग है। अपनी इस थाती पर किसी भी तरह से सेंध लगे इसे इन दलों के नेताओं को शायद ही स्वीकार हो। यही वह बड़ी वजह है कि पंचायत चुनाव में इन दलों के लोग अपना-झंडा बैनर खुद लहराने का मंसूबा बनाए बैठे हैं।

    क्षेत्रीय दलों के कुछ बड़े नेताओं ने इस चुनाव में स्वतंत्र रूप से अपने प्रत्याशी बनाने का एलान भी कर दिया है। इन परिस्थितियों में एनडीए के इन घटक दलों को भी भाजपा के साथ चुनावी सामंजस्य बनाए रखना बड़ी चुनौती मानी जा रही है। इस जिले में हुए पिछले पंचायत चुनाव में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के दौरान भाजपा और अपना दल के नेताओं-समर्थकों के बीच चुनावी तल्खी सार्वजनिक रूप से दिखी भी थी।

    कहीं न कहीं इन्हीं तल्खियों का भी तकाजा रहा कि प्रदेश व देश की सत्ता पर काबिज भाजपा यहां से जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर अपने प्रत्याशी की हार नहीं रोक सकी और इस प्रतिष्ठित पद पर पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर काबिज होकर जिले की प्रथम नागरिक बनीं।

    निषाद पार्टी अपने दम पर लड़ने का दम भर रही

    अभी कुछ दिनों पहले यहां दौरे पर आए निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने आगामी पंचायत चुनाव में अपने दम पर चुनाव लड़ने का एलान कर अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने का प्रयास भी किया था। कुछ इन्हीं परिस्थितियों के चलते इस चुनाव में सहयोगी दलों का भरपूर साथ बनाए रखने की चुनौती से भाजपा को दो-चार होना पड़ सकता है।