दिल्ली में क्यों नहीं हो पाई आर्टिफिशियल बारिश? IIT कानपुर के निदेशक ने दिया जवाब
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली में नमी कम होने से कृत्रिम वर्षा नहीं हो पाई। क्लाउड सीडिंग के बाद पीएम 2.5 और पीएम 10 के कणों में कमी आई है। उन्होंने कहा कि 28 अक्टूबर को दिल्ली में बादलों में नमी का स्तर कम था। क्लाउड सीडिंग से प्रदूषण के कणों में 6-10% की कमी आई। 29 अक्टूबर को दो और परीक्षण किए जाएंगे।
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जागरण संवाददाता, कानपुर। दिल्ली में आइआइटी, कानपुर की ओर से कराई गई क्लाउड सीडिंग के बाद कृत्रिम वर्षा न होने पर उठे सवालों का बुधवार को निदेशक प्रो. मणिंद्र अग्रवाल ने मीडिया बाइट जारी कर जवाब दिया। उन्होंने बताया कि नमी कम होने की वजह से बारिश नहीं हो सकी। फिर भी क्लाउड सीडिंग के बाद पीएम 2.5 व पीएम 10 के पार्टिकल्स में कमी आई है।
उन्होंने बताया कि 28 अक्टूबर को दिल्ली में बादलों में नमी का प्रतिशत काफी कम था, लगभग 15 प्रतिशत था। उसकी वजह से बारिश नहीं हो पाई। हालांकि क्लाउड सीडिंग से हमने बहुत अच्छी जानकारियां एकत्र की हैं। जो कि हमें आगे क्लाउड सीडिंग में मदद करेंगी।
दिल्ली के अलग अलग 15 स्थानों में मापक उपकरण लगाए हुए थे। जिनसे पता चला कि सीडिंग के बाद वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण पीएम 2.5 और पीएम 10 के पार्टिकल की मात्रा में 06-10 प्रतिशत की कमी आई है। इससे यह पता चला कि कम नमी होने के बाद भी हमने जिस मात्रा में सीडिंग की उस मात्रा में सीडिंग करते हैं तो उसका थोड़ा असर जमीन पर भी आता है।
दिल्ली से फ्लाइट उड़ेगी तो खर्च कम होगा
क्लाउड सीडिंग में हुए खर्च पर आइआइटी डायरेक्टर ने बताया कि कानपुर से दिल्ली फ्लाइट गई इस वजह से उसमें ईंधन की लागत अधिक हो गई। अगर हम नियमित इसे करें या दिल्ली के आसपास किसी एयरपोर्ट से करेंगे तो लागत कम हो जाएगी। उन्होंने बताया कि 300 वर्ग किलोमीटर में सीडिंग हुई, जिसकी लागत करीब 60 लाख रुपये रही।
प्रति वर्ग किलोमीटर लगभग 20,000 रुपये खर्च आया। अगर पूरे विंटर सीजन (चार महीने) 10 दिन में एक बार की जाए तो खर्च लगभग 25 से 30 करोड़ रुपये के बीच रहेगा। यह दिल्ली सरकार के प्रदूषण नियंत्रण बजट की तुलना में 100 गुना कम है।
29 अक्टूबर को दो और ट्रायल करेंगे
प्रो. अग्रवाल ने बताया कि 29 अक्टूबर को दो और क्लाउड सीडिंग ट्रायल किए जाएंगे। बादलों में नमी का स्तर कल की तुलना में ज्यादा होने की उम्मीद है, इसलिए परिणाम और बेहतर मिलने की संभावना है।
कृत्रिम बारिश प्रदूषण का स्थायी समाधान नहीं
प्रो. अग्रवाल ने कहा कि कृत्रिम बारिश प्रदूषण का स्थायी समाधान नहीं है। यह आदर्श हल नहीं है। आइडियल तब होगा जब हम प्रदूषण के स्त्रोत को कम कर दें। जब प्रदूषण नहीं आएगा तो क्लाउड सीडिंग की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। उम्मीद है कि हम दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के मूल स्रोतों पर काम करेंगे।
ऐसे होती है कृत्रिम बारिश
क्लाउड सीडिंग से कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया के बारे में उन्होंने बताया कि क्लाउड सीडिंग में हम एक मिक्चर जो बहुत फाइनली ग्राइंड होता है। उस मिक्चर में कामन साल्ट, राक साल्ट और सिल्वर हाइड्राइट के पार्टिकल्स होते हैं। इसको हम क्लाउड मे इंजेक्ट करते हैं। यह क्लाउड में जाकर वाटर कंडेंस करने लगता है जब वाटर कंडेंस अधिक मात्रा में हो जाता है तो बूंद बनकर नीचे गिरने लगती है। जब बहुत सारी बूंदे एकत्र हो जाती और वह नीचे गिरती हैं तो उसकी वजह से पानी बरसता है।

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