IIT Kanpur का Delhi में कृत्रिम वर्षा अभियान सफल, दो बार किया बादलों में प्रयोग
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा कराने के लिए आईआईटी कानपुर के विमान ने उड़ान भरी। आईआईटी कानपुर की टीम सुबह से ही तैयार थी, और मौसम अनुकूल रहने पर दोपहर 12:15 बजे सेसना विमान दिल्ली के लिए रवाना हो गया। आईआईटी निदेशक प्रोफेसर मणीन्द्र अग्रवाल ने कहा कि अभियान सफल रहा।
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आईआईटी कानपुर के रनवे से उड़ता विमान। सौजन्य: आईआईटी
जागरण संवाददाता, कानपुर। घातक प्रदूषण की मार झेल रही दिल्ली को राहत दिलाने के लिए क्लाउड सीडिंग से राहत देने का प्रयास सफल रहा। आईआईटी कानपुर ने इस ओर बड़ी सफलता हासिल की है। आइआइटी कानपुर के डायरेक्टर ने इसकी पुष्टि की है।
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा कराने के लिए आइआइटी कानपुर का क्लाउड सीडिंग कार्यक्रम पूरी तरह सफल रहा। मेरठ और दिल्ली के बीच खेकड़ा व बुराड़ी क्षेत्र में 25 नाटिकल मील लंबे और चार नाटिकल मील चौड़ी पट्टी में दो बार की उड़ान के दौरान विमान से रसायनों के 14 फ्लेयर्स दागे गए। आइआइटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल ने बताया कि तकनीकी तौर पर अभियान पूरी तरह सफल रहा है।

उन्होंने बताया कि दिल्ली में कृत्रिम वर्षा कराने के लिए आइआइटी की टीम लगातार काम कर रही थी। मंगलवार को जैसे ही मौसम में अनुकूलता के संकेत मिले। उसी के अनुरूप दोपहर सवा बारह बजे आइआइटी कानपुर की हवाई पट्टी से सेसना विमान ने दिल्ली के लिए उड़ान भरी। अभियान के दौरान एक बहुत बड़़े हिस्से में वर्षा कराने वाले रासायनिक मिश्रण का छिड़काव किया गया। जो लंबाई में 25 नाटिकल मील और चौड़ाई में चार नाटिकल मील रहा है।
पहले चरण में विमान ने लगभग चार हजार फुट की ऊंचाई पर आपरेशन को पूरा किया है। इसमें छह फ़्लेयर्स दागे गए हैं। लगभग 18.5 मिनट के इस अभियान के सफलता पूर्वक पूरा होने पर विमान नीचे उतर आया। दूसरा चरण शाम तीन बज कर 55 मिनअ पर शुरू हुआ। इस बार पांच से छह हजार फुट की ऊंचाई से बादलों में रासायनिक मिश्रण छोड़ा गया। दूसरे चरण के दौरान आठ फ्लेयर्स का प्रयोग किया गया है। इस सफल प्रयोग के बाद दिल्ली व आस - पास के क्षेत्रों में वर्षा की संभावना बढ़ गई है। आइआइटी के विज्ञानियों की टीम अब भी दिल्ली में मौजूद है और पूरे अभियान पर नजर रखे हुए है।
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— Anurag shukla (@Aanuragshukla) October 28, 2025
सुबह से टीम थी तैयार
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा करने के लिए आईआईटी कानपुर के लिए विमान ने मंगलवार दोपहर में उड़ान भरी है । दिल्ली का मौसम अनुकूल रहने पर कृत्रिम वर्षा का प्रयास आज सफल हो सकता है । दिल्ली में कृत्रिम वर्षा करने के लिए आईआईटी कानपुर की टीम आज सुबह से ही पूरी तरह से तैयार थी । दोपहर में मौसम का अनुकूल संकेत मिलते ही लगभग 12:15 बजे आइआइटी की हवाई पट्टी से कृत्रिम वर्षा कराने वाला सेसना विमान दिल्ली के लिए उड़ान भर गया।

आईआईटी निदेशक प्रोफेसर मणीन्द्र अग्रवाल।
23 को सफल नहीं हो पाया था प्रयास
23 अक्टूबर को आईआईटी (IIT) के विशेष विमान सेसना ने दिल्ली (Delhi) तक परीक्षण उड़ान भी भरी थी। लेकिन बादलों में नमी अधिक होने की वजह से यह प्रयास पूरा नहीं हो सका। अब 28 अक्टूबर यानी मंगलवार को आज आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur)के विमान ने फिर से दिल्ली के लिए सफल उड़ान भरी है।
बादलों में नमी कम होने से नहीं हुई थी कृत्रिम वर्षा
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा कराने की तैयारी में लगी आइआइटी विज्ञानियों की टीम ने अपने उपकरणों का सफल परीक्षण पूरा कर लिया था। निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल ने बताया कि 23 अक्टूबर को लगभग चार घंटे की उड़ान के दौरान आइआइटी के सेसना विमान ने बुराड़ी के ऊपर बादलों में केमिकल का छिड़काव किया। बादलों में नमी की मौजूदगी कम होने की वजह से वर्षा नहीं हो सकी थी। इसलिए अब अब नमी वाले बादलों के आने का इंतजार था।
जानें क्या थी पायलट की रिपोर्ट
पायलट की रिपोर्ट और विंडी प्रोफेशनल सिस्टम के डेटा के अनुसार, गुरुवार को दिल्ली के आसमान में अधिक बादल नहीं थे। केवल बुराड़ी के पास दो छोटे बादल के क्षेत्र परीक्षण के लिए पहचाने गए। इन क्षेत्रों में फ्लेयर्स सफलतापूर्वक फायर किए गए, जिससे विमान और सीडिंग उपकरण की संचालन क्षमता की पुष्टि हुई।
कैसे होती है आर्टिफिशयल रेन
उड़ान पाइरो विधि के जरिये संचालित की गई, जिसमें विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए फ्लेयर्स जिनमें सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड यौगिक होते हैं, विमान से छोड़े गए और वातावरण में उत्सर्जित किए गए। यह तकनीक पर्याप्त नमी होने पर बादल निर्माण को बढ़ावा देती है। दिल्ली के लगभग 100 किमी दायरे में वर्षा कराई जा सकती है। इससे वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकेगा। आइआइटी कानपुर के विशेष सेसना विमान के पंखों में विशेष मिश्रण भर दिया गया है। बादलों के बीच में विमान जब पहुंचता है तब नियंत्रित फायरिंग के जरिए मिश्रण का छिड़काव बादलों में किया जाता है। इससे बादलों में संघनन की प्रक्रिया तेज होती है और वर्षा शुरू हो जाती है।
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— Anurag shukla (@Aanuragshukla) October 28, 2025

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