सलाखों के पीछे नहीं जा सकी 'लुटेरी दुल्हन', बिना ठोस सबूत के पुलिस पहुंची कोर्ट....रिमांड नामंजूर
Kanpur Luteri Dulhan: पुलिस 'लुटेरी दुल्हन' को रिमांड पर लेने में विफल रही क्योंकि अदालत ने ठोस सबूतों के अभाव में रिमांड याचिका खारिज कर दी। पुलिस के पास दुल्हन के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे, जिसके चलते कोर्ट ने रिमांड नामंजूर कर दिया। अब पुलिस को मामले में आगे की कार्यवाही के लिए और अधिक प्रमाण जुटाने होंगे।
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जागरण संवाददाता, कानपुर। कोर्ट में पुलिसिया कहानी नहीं ठहर सकी। एसीजेएम 7 की कोर्ट ने तथाकथित दुल्हन का न्यायिक रिमांड लेने से इनकार कर दिया। उसे एक लाख रुपये के व्यक्तिगत बंधपत्र पर रिहा करने का आदेश दिया। वकौल बचाव पक्ष के अधिवक्ता कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा कि पुलिस रिमांड के समर्थन में कोई ठोस और विश्वसनीय सामग्री पेश नहीं की गई है। इसलिए केवल आरोपों के आधार पर रिमांड स्वीकार नहीं किया जा सकता है। पुलिस से नाराजगी जताते हुए कहा कि विवेचना में निष्पक्षता और सत्यापन अत्यंत आवश्यक है।
दरोगा से की थी शादी
बुलंदशहर के बीबीनगर में रहने वाले आदित्य कुमार लोचव 2019 बैच के दारोगा हैं। पिछले वर्ष 17 फरवरी को उनकी शादी मेरठ के मवाना थाने के पास रहने वाली दिव्यांशी चौधरी से हुई थी। ग्वालटोली थाने में तैनात रहे दारोगा आदित्य कुमार लोचव ने उसके खिलाफ ग्वालटोली थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसमें कहा था कि शादी के बाद से दिव्यांशी घर में नहीं रुकती थी। वह मायके में रहकर बीएड और सीटेटे की तैयारी की बात कहती थी।
पुलिस जांच में दावा
पुलिस ने प्रारंभिक जांच में दावा किया था कि दिव्यांशी ने दो बैंक मैनेजर व एक दारोगा से शादी कर दुष्कर्म के मुकदमे में फंसाया और रमक वसूली। उसके खातों में आठ करोड़ रुपये जमा होने का दावा किया गया था। पुलिस ने उसे लुटेरी दुल्हन बताया था। सोमवार को उसे ग्वालटोली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। मंगलवार को कोर्ट में पेश किया गया। विवेचक ने प्रार्थनापत्र देकर दिव्यांशी का 14 दिन का न्यायिक रिमांड मांगा।
उसी थाने में शिकायतकर्ता तैनात जहां रिपोर्ट दर्ज
बचाव पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता योगेश भसीन व अधिवक्ता वरुण भसीन ने बताया कि प्रार्थनापत्र पर सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने कोर्ट को बताया कि शिकायतकर्ता दरोगा उसी थाने में तैनात है, जहां महिला के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई है। इससे जांच की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है। शिकायतकर्ता और जांच अधिकारी की तस्वीरें भी कोर्ट में प्रस्तुत करते हुए कहा कि दोनों एक ही पुलिस थाने से जुड़े हुए हैं। पुलिस ने बीएनएस की 12 धाराओं में मुकदमा दर्ज करते हुए दिव्यांशी चौधरी को गिरफ्तार किया था। आठ धाराओं में रिमांड का आवेदन किया था, जिसे कोर्ट ने अपर्याप्त साक्ष्य बताते हुए नामंजूर कर दिया। अदालत ने कहा कि पुलिस रिमांड के लिए आवश्यक पुख्ता सामग्री प्रस्तुत नहीं कर सकी है। कोर्ट ने दिव्यांशी को एक लाख के व्यक्तिगत बंधपत्र पर रिहा करने का आदेश दिया। बंधपत्र जमा करने पर उसे रिहा कर दिया। निर्देश दिया कि वह जांच में सहयोग करेगी तथा किसी भी प्रकार का दबाव, धमकी या प्रभाव नहीं डालेगी।
सर्वोच्च न्यायालय की दलील अहम रही
बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने बताया कि रिमांड खारिज कराने के लिए कोर्ट में सर्वोच्च न्यायालय की हाल ही में दोबारा जारी गई गाइड लाइन की दलील अहम रही। तर्क दिया कि पुलिस ने गिरफ्तारी प्रक्रिया में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित गाइडलाइन का उल्लंघन किया है। बचाव पक्ष ने कहा कि गिरफ्तारी से पहले अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया और न ही कारणों को रिकार्ड किया गया। महिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है कि गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति को पुलिस लिखित रूप से गिरफ्तारी का कारण बताएगी। उस पर लगाई जा रही धाराओं के बारे में बताएगी। उसके रिश्तेदार की सूचना देगी। ऐसा न करना मानवाधिकार उल्लंघन माना जाएगा। कोर्ट ने इस दलील को गंभीरता से लिया। रिमांड खारिज करने की यह दलील भी कोर्ट में अहम साबित हुई।

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