Shri Prakash Jaiswal: जिस चुनाव को छोड़ने का मन बना लिया था, उसी ने बदल दिया श्रीप्रकाश जायसवाल का राजनीतिक कद
1999 के लोकसभा चुनाव में श्रीप्रकाश जायसवाल की उम्मीदें लगभग खत्म हो गई थीं, लेकिन उन्होंने अंतिम समय में प्रयास करके जीत हासिल की। उन्होंने भाजपा के जगतवीर सिंह द्रोण को हराया और कानपुर से लगातार 15 साल तक सांसद रहे। 2014 और 2019 में हार के बाद, उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली।
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राजीव सक्सेना, जागरण, कानपुर। बात 1999 के लोकसभा चुनाव की है। मतदान के तीन दिन बचे थे और श्रीप्रकाश जायसवाल हताश से थे। उन्हें लग रहा था कि चुनाव हाथ से निकल गया। इसके पीछे कारण भी था, सामने भाजपा के जगतवीर सिंह द्रोण थे जो 1991, 1996 और 1998 में लगातार जीत हासिल करते चले आ रहे थे और मात्र एक वर्ष पहले 1998 के चुनाव में श्रीप्रकाश जायसवाल तीसरे नंबर पर रहते हुए द्रोण से 2,45,722 वोटों से पीछे रहे थे।
दिनभर के प्रचार के बाद जब इस तरह की कुछ चर्चाएं हुईं तो उनके अति करीबियों ने अंतिम समय में कंधे न झुकाने की सलाह दी और तय हुआ कि लड़ेंगे पूरी ताकत से फिर चाहे जो हो। समय कम था लेकिन श्रीप्रकाश जायसवाल ने खुद को व्यवस्थित कर टीम को फिर प्रेरित किया और अंतिम तीन दिन कांग्रेसी पूरी ताकत से सड़कों और बूथों पर जुटे नजर आए। इस अंतिम तीन दिन के संघर्ष ने श्रीप्रकाश जायसवाल को न सिर्फ जिता दिया, वरन उन्होंने बाद में एक बड़ा रिकार्ड भी बनाया।
वह कानपुर संसदीय सीट पर राजनीतिक दल के सांसद के रूप में लगातार 15 वर्ष तक रहे। इतने लंबे समय तक कोई और राजनीतिक दल से सांसद नहीं रहा है। एसएम बनर्जी 20 वर्ष सांसद जरूर रहे लेकिन वह निर्दलीय थे। वहीं श्रीप्रकाश जायसवाल के बराबर तीन बार जगतवीर सिंह द्रोण भी जीते लेकिन वह मात्र आठ वर्ष ही सांसद रहे थे। 1999 में जगतवीर सिंह द्रोण को हराने के बाद 2004 के करीब चुनाव में उन्होंने सत्यदेव पचौरी को 5,638 वोटों से हराया। 2009 में सतीश महाना को 18,906 वोटों से पराजित किया।
वह कांग्रेस ही नहीं सभी राजनीतिक दलों में एक बड़ा नाम बन चुके थे। 2014 में जब भाजपा केंद्रीय सत्ता में आने की तैयारी कर रही थी तो उनके सामने भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डा. मुरली मनोहर जोशी को मैदान में उतारा गया और इस चुनाव में भाजपा ने वोटों को दोनों हाथों से बटोरा और श्रीप्रकाश 2,22,946 वोटों से पिछड़ गए। 2019 का चुनाव उनके लिए आखिरी चुनाव बना। इस चुनाव में उन्हें अपने जीवन के सबसे ज्यादा 3,13,003 वोट मिले लेकिन सत्यदेव पचौरी ने उन्हें 1,55,934 वोटों से हरा दिया। इसके बाद से वह राजनीतिक सक्रियता से धीरे-धीरे दूर होते चले गए।
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