कासगंज में बाढ़ का कहर: नाव न जमीन, श्मशान तक जाने का रास्ता बंद; अंतिम विदाई के लिए कंधाें की जगह हाथों पर अर्थी
गंजडुंडवारा कासगंज में गंगा में आई बाढ़ से नरदोली क्षेत्र के गांवों में जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। सबसे दुखद स्थिति यह है कि किसी परिजन की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के लिए भी सुरक्षित स्थान नहीं मिल रहा है। शवों को कंधों पर उठाने की जगह हाथों में उठाकर पानी से गुजरना पड़ रहा है। बाढ़ के कारण लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

गौरव गुप्ता, गंजडुंडवारा, कासगंज। गंगा का यह उफान केवल खेत-खलिहानों को नहीं डुबो रहा बल्कि मानवीय संवेदनाओं को भी झकझोर रहा है। बाढ़ ने नरदोली क्षेत्र के गांवों में जिंदगी का हर पहलू बदल दिया है। घर से बाहर निकलना हो या बीमार को अस्पताल ले जाना हो ग्रामीण हर कदम पर पानी और नाव पर निर्भर है।
चारों तरफ फैला गंगा का उफान से मानो जीवन ठहर सा गया हो। सबसे दर्दनाक स्थिति तब सामने आती है, जब कोई स्वजन दुनिया छोड़ देता है और अंतिम संस्कार के लिए भी सुरक्षित स्थान तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती बन जाता है। इन दिनों नरदोली क्षेत्र के कई गांवों में यही हकीकत है।
गांव डूबे, चिताएं बनाने के लिए भी नहीं मिल रही जमीन
मौत के बाद शवों को कंधों पर नहीं, बल्कि हाथों में उठाकर पानी से गुजरते स्वजनों का दृश्य किसी का भी दिल पिघला देगा। बाढ़ ने न केवल जीवन को संकट में डाला है बल्कि मरने के बाद सम्मानजनक विदाई को भी कठिन बना दिया है। वर्तमान में बाढ़ग्रस्त इलाकों में मृत्यु से बड़ी समस्या अंतिम संस्कार हो गया है। चारों ओर पानी होने से लकड़ी जुटाना कठिन है। शव को सुरक्षित स्थान तक ले जाना और भी मुश्किल।
पहला मामलाः टीले पर हुआ महेश का अंतिम संस्कार
नगला जयकिशन निवासी 40 वर्षीय महेश मुंबई से गांव लौटे ही थे। परिवार ने सोचा था कि अब लंबे समय बाद एक साथ बैठने का मौका मिलेगा। परंतु अचानक तेज बुखार और फिर पैरालाइसिस अटैक ने जिंदगी छीन ली। जब महेश का निधन हुआ तो स्वजन शव लेकर अंतिम संस्कार की तैयारी में जुटे। लेकिन गांव चारों ओर से बाढ़ के पानी में घिरा था। न कोई रास्ता, न कोई साधन। स्वजन शव को लेकर कई किलोमीटर तक बाढ के पानी में पैदल चले। रास्ते भर बच्चों और बुजुर्गों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। अंततः दूर एक टीला दिखाई दिया। वहीं लकड़ियां जुटाकर चिता सजाई गई और महेश का अंतिम संस्कार हुआ।
दूसरा मामलाः मासूम की मौत पर बेहाल परिवार
उसी गांव के 12 वर्षीय बालक की बुखार से मृत्यु हो गई। जयकिशन निवासी विवेक खेलने कूदने और सपनों का संसार बुनने के उम्र में बीमारी और लाचारी की भेंट चढ़ गया। स्वजन शव को लेकर इधर-उधर भटकते रहे। सुरक्षित स्थान मिलना मुश्किल था। नाव भी समय पर न मिली। अंततः जब ऊंचा स्थान मिला तो वहीं चिता सजाकर अंतिम संस्कार किया गया। बच्चे की मां फूट-फूटकर रो रही थी।
तीसरा मामलाः ओमवीर को कंधों पर नहीं, हाथों में उठाकर ले गए स्वजन
नगला जयकिशन निवासी 25 वर्षीय ओमवीर भी बीमारी के चलते चल बसे। चारों ओर पानी भरे होने से शव को कंधों पर उठाना संभव न था। स्वजन शव को हाथों में उठाकर करीब तीन किलोमीटर तक पानी में पैदल चले। रास्ते भर गांव के लोग साथ थे। कोई लकड़ी लेकर चला तो कोई चिता के लिए अन्य सामान। जब सूखा स्थान मिला, तब जाकर चिता जलाई जा सकी। यह दृश्य वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखों को नम कर गया।
चौथा मामलाः नाव के इंतजार में टूटी दक्ष की सांस
मूजखेड़ा गांव का छह वर्षीय दक्ष भी इस बाढ़ का शिकार हो गया। उसे बुखार हुआ। स्वजन इलाज के लिए घंटों नाव का इंतजार करते रहे। नाव देर से आई। जब तक अस्पताल पहुंचे और फिर वापस लौटे, तब तक मासूम की हालत बिगड़ चुकी थी। आखिरकार उसने दम तोड़ दिया। अंतिम संस्कार के लिए भी परिवार को नाव से पहले पले का नगला और फिर हंसी नगला बांध तक जाना पड़ा। ऊंचे स्थान पर सुरक्षित स्थान देख मासूम का अंतिम संस्कार किया गया घटना ने गांव को गहरे सदमे में डाल दिया।
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