नारायणी के तट पर आसमान से उतर रहे थे युवा वैज्ञानिकों के सपने, भविष्य की मंजिल को मिला नया आकार
कुशीनगर में नारायणी नदी के किनारे, युवा वैज्ञानिकों ने कैनसैट प्रतियोगिता में भाग लिया। रॉकेट से छोड़े गए छोटे उपग्रहों, कैनसैट, को पैराशूट से उतारा गया। छात्रों ने तापमान और जीपीएस डेटा एकत्र किया। सफल रिकवरी के बाद, वैज्ञानिकों और छात्रों ने खुशी मनाई। इस आयोजन ने कुशीनगर को विज्ञान के क्षेत्र में एक नई पहचान दी और युवा वैज्ञानिकों को नवाचार के लिए प्रेरित किया।
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अजय कुमार शुक्ल, कुशीनगर। नारायणी नदी के किनारे गुरुवार की दोपहर जब आसमान काले बादलों से भर रहा था, तभी अचानक एक आवाज़ गूंजी..थ्री.. टू.. वन... लांच..एक झटके के साथ राकेट ने आग और धुएं की रेखा छोड़ते हुए आकाश को चीर दिया। लोग सिर ऊपर उठाए खड़े थे, कुछ की निगाहें आसमान में तो कुछ मोबाइल स्क्रीन पर जूम किए हुए गड़ी थीं। और फिर कुछ ही मिनटों बाद, आसमान में एक बिंदु धीरे-धीरे खुला… सफेद पैराशूट।
उसके साथ नीचे उतर रहा था एक छोटा-सा कैनसैट। लेकिन उसके साथ उतर रही थीं सैकड़ों उम्मीदें और सपने। लांच साइट से करीब सवा किलोमीटर दूर रामजानकी मंदिर के पास बनी दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शक तालियां बजा उठीं। हवा में, जय विज्ञान, जय भारत के घोष गूंजने लगे। बच्चे खुशी से उछल पड़े। देखो, देखो, हमारा वाला नीचे आ रहा है। किसी ने इशारा किया।
वो वाला तो पानी की ओर जा रहा है। लोग हंसते हुए दौड़ पड़े, मानो किसी त्योहार की झांकी देख रहे हों। हर उड़ान के साथ छात्रों की धड़कनें तेज हो जातीं, और हर सफल रिकवरी के बाद एक नई कहानी जन्म लेती। रिकवरी टीम के सदस्य नदी किनारे तैनात थे। जैसे ही पैराशूट नीचे आता, उनकी नजरें उसका पीछा करतीं। कभी हवा का रुख बदलता, कभी पेलोड ज़मीन से दूर जा गिरता, तो कभी सीधा नारायणी के बीचोंबीच उतर जाता।
कुछ कैनसैट पेलोड पानी में गिरे, जिन्हें रिकवरी टीम ने रबर बोट से जाकर निकाल लिया। वापसी पर जब उन्होंने गीला लेकिन सुरक्षित पेलोड जूरी टेबल पर रखा, तो वहां मौजूद वैज्ञानिकों और छात्रों की तालियां गूंज उठीं। आम लोग बने मिशन के गवाह लांच साइट से दूर बैठे गांवों के लोग भी इस नजारे को देख रहे थे। पास के स्कूल के बच्चे हाथ हिलाते हुए चिल्ला रहे थे।
वो देखों रॉकेट। देखो…कैसे धीरे उतर रहा है! बुजुर्गों के चेहरों पर विस्मय था। पहले यहां बाढ़ आती थी, अब आसमान से राकेट गिर रहे हैं। कुशीनगर की धरती, जिसे अब तक बौद्ध संस्कृति और कृषि के लिए जाना जाता था, चार दिनों में विज्ञान की नई संस्कृति का साक्षी बन गई। जमीं से आसमान और फिर वापसी की कहानी कैनसैट एक छोटा शैक्षिक उपग्रह माडल होता है, जिसका आकार लगभग एक सोडा कैन जितना होता है।
इसे राकेट के जरिये लगभग एक किलोमीटर की ऊंचाई पर भेजा जाता है, जहां से यह पैराशूट की मदद से धीरे-धीरे नीचे उतरता है। इस दौरान यह तापमान, दबाव, जीपीएस लोकेशन जैसी जानकारियां ग्राउंड स्टेशन तक भेजता है। जैसे ही पैराशूट खुलता है, छात्रों के चेहरों पर तनाव की जगह राहत आ जाती है।
हर टीम अपने पेलोड के नंबर से पहचान करती है। देखो, 12 नंबर खुल गया, 13 नंबर वाली हमारी टीम है! नीचे उतरते पेलोड के साथ उनकी मेहनत, रातों की कोडिंग, और महीनों का अभ्यास उतर रहा होता है। उनकी नजरें पैराशूट के साथ नीचे जाती हैं, और दिल में सिर्फ एक दुआ होती है।
बस सही-सलामत लैंड कर जाए। हर पैराशूट के साथ उतरता है एक सबक इस आयोजन की खास बात यह रही कि हर लांच के बाद छात्रों को रिकवरी डेटा के विश्लेषण का मौका दिया गया। उन्होंने पैराशूट के खुलने का समय, हवा की दिशा, और पेलोड की गति जैसी सूचनाएं मापीं। कई छात्रों ने कहा कि उन्हें पहली बार यह समझ आया कि, ज्ञान केवल किताबों में नहीं, अनुभव में है।
कुशीनगर में भारत के युवा वैज्ञानिकों का अंतरिक्ष में नवाचार का परचम
जासं, कुशीनगर: इन स्पेस माडल राकेट्री और कैनसैट इंडिया स्टूडेंट कंपटीशन 2024–25 का गुरुवार को समापन हुआ। तमकुहीराज के जंगली पट्टी के समीप नारायणी नदी के तट पर आयोजित इस प्रतियोगिता में भारत के युवा वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में नवाचार की चमक दिखाई।
इसका आयोजन भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (इन–स्पेस), इसरो व एस्ट्रोनाटिकल सोसाइटी आफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में, उत्तर प्रदेश सरकार और कुशीनगर जिला प्रशासन के सहयोग से किया गया था।
इस राष्ट्रीय प्रतियोगिता में देशभर के 67 छात्र दलों (31 माडल राकेट्री और 36 कैनसेट श्रेणी) ने भाग लिया। सभी टीमों ने अपने मिशन डिज़ाइन, संरचना, रिकवरी और टेलीमेट्री संचालन में उत्कृष्ट तकनीकी दक्षता प्रदर्शित की। इसरो और इन स्पेस के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की जूरी ने मिशन की सटीकता, नवाचार और निष्पादन के आधार पर प्रतिभागियों का मूल्यांकन किया।
इन–स्पेस के प्रमोशन निदेशक डॉ. विनोद कुमार ने कहा कि, भारत का वैज्ञानिक भविष्य हर क्षेत्र में अंकुरित हो रहा है। इस आयोजन का उद्देश्य युवा मस्तिष्क को कक्षा से बाहर लाकर उन्हें प्रायोगिक सीख और नवाचार का अनुभव कराना है। उन्होंने कहा कि तमकुहीराज का यह आयोजन दिखाता है कि भारत का वैज्ञानिक भविष्य अब हर क्षेत्र और हर विद्यालय में अंकुरित हो रहा है।

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