आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे मुआवजा घोटाले में फंसेंगे कई अधिकारी, DM को सौंपी गई मामले की जांच
आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे मुआवजा घोटाले में कई अधिकारियों के फंसने की आशंका है। जिलाधिकारी को जांच सौंपी गई है, जिसके बाद हड़कंप मच गया है। एक्सप्रेसवे निर्माण के दौरान किसानों को दिए गए मुआवजे में अनियमितताओं की शिकायतें मिली थीं, जिसके आधार पर यह जांच शुरू की गई है। दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे मुआवजा घोटाले में फंसेंगे कई अधिकारी।
मनोज त्रिपाठी, लखनऊ। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के निर्माण में अधिग्रहित भूमि के मुआवजे में बड़े पैमाने पर धांधली हुई थी, जिसमें अब कई अधिकारियों की गर्दन फंसेगी। राजस्व परिषद के अध्यक्ष अनिल कुमार ने मामले में लखनऊ के जिलाधिकारी विशाख जी को घोटाले की जांच सौंपी है। परिषद अध्यक्ष ने इस घोटाले में तत्कालीन एसडीएम, तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक व लेखपाल की भूमिका संदिग्ध पाई है।
उन्होंने जिलाधिकारी को मुआवजे से जुड़े सभी प्रकरणों की जांच कर दो सप्ताह में रिपोर्ट तलब की है। आरोपित अधिकारियों, कर्मचारियों व लाभार्थियों से गलत ढंग से जारी मुआवजा राशि की वसूली का निर्देश भी दिया है।
आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे परियोजना को लेकर तत्कालीन मुख्य सचिव ने 13 मई 2013 को लखनऊ, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर नगर, उन्नाव व हरदोई के जिलाधिकारियों को उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) को भूमि उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे।
उसी समय 302 किलोमीटर के एक्सप्रेसवे की संरेखण (एलाइनमेंट) भी जारी कर दिया गया था। राजस्व अधिकारियों ने लखनऊ के सरोसा-भरोसा गांव की भूमि के गाटा संख्या-तीन की 68 बीघा से अधिक भूमि के करीब दो बीघा हिस्से पर अनुसूचित जाति के भाई लाल व बनवारी लाल को वर्ष 2007 से पहले से काबिज दिखा कर 1,09,86,415 रुपये का मुआवजा जारी कर दिया था।
तत्कालीन लेखपाल ने लाभार्थी और उसके पड़ोसी के बयान के आधार पर अपनी रिपोर्ट में उक्त भूमि पर वर्ष 2007 से पहले से अनुसूचित जाति के लाभार्थियों को कास्तकार दर्शाया था। उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम-1950 की धारा 122 बी (4 एफ) के तहत तत्कालीन राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार और एसडीएम ने भी उसी रिपोर्ट के आधार पर लाभार्थी को मुआवजे का हकदार मान लिया और मुआवजा की राशि जारी कर दी।
दो नवंबर 2022 को अपर आयुक्त प्रशासन लखनऊ मंडल को पुनरीक्षण के लिए दिए गए एक आवेदन में दावा किया गया था कि लाभार्थी को जिस भूमि के लिए मुआवजा दिया गया है, उसमें चौहद्दी का उल्लेख नहीं है। इसके बाद 18 मार्च, 2024 को लाभार्थी के वकील ने राजस्व परिषद में पुनरीक्षण को चुनौती दी।
परिषद के अध्यक्ष अनिल कुमार की अदालत ने इस मामले को लेकर यूपीडा से भूमि अधिग्रहण का सारा रिकार्ड तलब किया गया, तब घोटाले की परतें खुलीं।
सामने आया कि भू-अभिलेखों में हेराफेरी कर ग्राम समाज की जमीन पर अनूसचित जाति के व्यक्तियों का कब्जा दर्शाया गया और उन्हें मुआवजा राशि का भुगतान भी कर दिया गया। लखनऊ के सरोसा-भरोसा के अलावा नटकौरा, दोना व तीन अन्य गांवों सहित एक्सप्रेसवे से जुड़े आठ अन्य जिलों में भी इस प्रकार की गड़बड़ी की आशंका है।

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