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Jagran Samvad 2023: इंडिया-इंडिया और भारत माता की जय भारतीयता के संवाहक

संवादी के मंच पर इंडिया को भौगोलिक पहचान तो भारत को ज्ञान और प्राचीन परंपरा का द्योतक बताया गया। कुमार हर्ष ने पूछा कि संविधान में जब दोनों नाम हैं तो विवाद कैसा? शीर्ष कोर्ट के प्रख्यात अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि संविधान तब लिखा गया जब द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ देश के विभाजन की पीड़ा थी इसीलिए दो नामों को अंगीकार किया गया।

By Jagran NewsEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Mon, 04 Dec 2023 04:19 PM (IST)
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संवादी में इंडिया दैट इज भारत में (बाएं से) हर्ष सिन्हा,प्रफुल्ल केतकर, अभिजीत मित्रा अय्यर और संजय हेगड़े। जागरण

 धर्मेश अवस्थी, लखनऊ। 74 साल पहले 17 सितंबर 1949 को संविधान सभा के सामने देश का नाम तय करने के लिए संवाद हुआ था। भारत, भारत वर्ष और इंडिया को लेकर दो पक्षों ने एक से बढ़कर एक तर्क रखे, संविधान सभा ने आपसी सहमति से इंडिया दैट इज भारत कहते हुए दोनों को स्वीकार किया।

रविवार को संवादी के मंच पर इंडिया को भौगोलिक पहचान तो भारत को ज्ञान और प्राचीन परंपरा का द्योतक बताया गया।

कुमार हर्ष ने पूछा कि संविधान में जब दोनों नाम हैं तो विवाद कैसा? शीर्ष कोर्ट के प्रख्यात अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि संविधान तब लिखा गया, जब द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ, देश के विभाजन की पीड़ा थी इसीलिए दो नामों को अंगीकार किया गया, आज भी खेल के मैदान पर इंडिया-इंडिया और उत्साह पर भारत माता की जय का नारा लगाते हैं।

इंटरनेट मीडिया के सितारे अभिजीत मित्रा अय्यर बोले, देश में तमिल, तेलगू, अंग्रेजी और हिंदी प्रेस की अलग-अलग धाराएं हैं, गांव व शहर में अंतर साफ दिखता है। मिस्र, जापान, चीन सहित कई देशों के दो-दो नाम हैं, तब अपने देश में दो नाम पर विवाद क्यों?

आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि विविधता में संवाद भारत की परंपरा रही है। इंडिया से देश की भौगोलिक पहचान और भारत से ज्ञान व प्राचीन परंपरा की अनुभूति होती है।

नाम का अनुवाद करना ठीक नहीं होगा, विवाद, तर्क-वितर्क होते रहे हैं लेकिन, हमारे यहां भाषाओं की विविधता में संघर्ष की परंपरा नहीं रही। जब हम अपने ईश्वर को चुन सकते हैं तब देश का नाम चुनने की सभी को आजादी है, बस यह देखना होगा कि किस नाम में संस्कृति के तत्व मौजूद हैं।

देश के नाम का संवाद भाषा की तरफ बढ़ाते हुए अधिवक्ता संजय बोले, ब्रांड इंडिया ज्यादा मुखर है, आज की पीढ़ी कैसे सोचती है इसका ध्यान रखने की जरूरत है। इंटरनेट की लैंग्वेज इंग्लिश है और नई पीढ़ी को छोड़िए उनके माता-पिता से पूछिए कि वो अपने बच्चों को कहां पढ़ाना चाहते हैं?

इंग्लैंड व अमेरिका से ज्यादा भारतीय अंग्रेजी बोलते हैं। भाषा को नकारने से कनेक्ट नहीं आता उसे स्वीकारने से ही कनेक्ट आता है।

यह भी कहा कि पाकिस्तान ने ढाका में बंगाली भाषा पढ़ने से रोका तो बांग्लादेश बना। अभिजीत ने कहा, भारत में विविधताओं का सम्मान होना चाहिए, इसे समझने के लिए स्वामी विवेकानंद व महात्मा गांधी ने जिस तरह से भारतीयता प्रकट की है उसी राह पर बढ़ने की जरूरत है।

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