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    पॉलीथीन बटोरते-बटोरते सफाई व्यवस्था पर हावी हो गए कथित बांग्लादेशी, सरकारी जमीनों पर बना ली बस्तियां

    Updated: Sat, 25 Oct 2025 10:43 AM (IST)

    लखनऊ में कथित बांग्लादेशी नागरिकों का मुद्दा फिर से चर्चा में है। पिछले साल नगर निगम की टीम पर हमले के बाद महापौर ने अवैध बस्तियों पर बुलडोजर चलवाया था। लगभग 25 साल पहले प्लास्टिक बटोरने आए ये लोग धीरे-धीरे शहर की सफाई व्यवस्था पर हावी हो गए। सफाई कर्मियों की कमी के कारण इनकी संख्या बढ़ती गई। इस मुद्दे पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हो गया है।

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    जागरण संवाददाता, लखनऊ। पिछले साल 29 दिसंबर को खुद को असमी बताने वाले कथित बांग्लादेशियों ने नगर निगम की टीम पर हमला बोल किया था। यह हमला उस समय हुआ जब नगर निगम की टीम इंदिरानगर के मानस एन्क्लेव से अवैध रूप से कूड़ा उठाने वालों का ठेला जब्त करने गई थी।

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    200 से अधिक की संख्या में एकजुट असमियों ने लाठी डंडों से नगर निगम अधिकारियों और कर्मचारियों को दौड़ा लिया था। इतना ही नहीं कूड़ा प्रबंधन का काम देख रही मेसर्स लखनऊ स्वच्छता अभियान की महिला कर्मी मीनाक्षी को भी पीटा था। सफाई निरीक्षक विजेता द्विवेदी भी हमले में बच नहीं पाई थीं। उनकी कार तोड़ने के साथ ही मोबाइल भी छीन लिए गए थे। तब पीएसी को बुलाना पड़ा था।

    मौके पर पहुंचीं महापौर सुषमा खर्कवाल और विधायक ओपी श्रीवास्तव ने मौके पर पहुंचकर असमियों की अवैध बस्ती पर बुलडोजर चलवा दिया था। तब महापौर ने कहा था कि लखनऊ में दो लाख से अधिक बांग्लादेशी अपने को असम का नागरिक बताकर रह रहे हैं, जिन्हें चिंह्नित कर पुलिस को हटाना चाहिए।

    पास के ही रहने वाल चांद बाबू की जमीन पर यह बस्ती बसाई गई थी और झोपड़ी से पांच सौ रुपये प्रति माह किराया वसूला जाता था। सौ झोपड़ियों वाली इस बस्ती में एसी और फ्रिज तक लगे थे।

    यह पहला मामला नहीं था, जब कथित बांग्लादेशियों ने अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश की हो। करीब छह साल पहले जानकीपुरम विस्तार में आंशिक विवाद के बाद इन लोगों ने तलवारे लहराते हुए कालोनी के निवासियों को ललकारते हुए पीछे खदेड़ दिया था। महापौर आज भी कह रही हैं कि संदिग्ध लोगों को बाहर किया जाएगा।

    शहर के कुछ लोगों ने पहले दी थी पनाह

    करीब पचीस साल पहले कथित बांग्लादेशी सड़कों से पालीथीन और प्लास्टिक बटोरते दिखते थे। शहर के उन लोगों ने इन्हें लाकर यहां बसाया था, जो पालीथीन और प्लास्टिक को री-साइकिल कर उनसे कच्चा माल तैयार करते थे। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई और नगर निगम में सफाई कार्य से जुड़ गए।

    नियमित सफाई कर्मचारियों की संख्या कम होने के कारण कथित बांग्लादेशियों ने सफाई कार्य में अपना पैर जमाना शुरू कर दिया। आज यह शहरवासियों के लिए मजबूरी बन गए हैं। अगर ये मतदान करने असम जाते हैं तो शहर की सफाई व्यवस्था चरमरा जाती है। नगर निगम ने ठेकेदार को सफाई का काम दिया है, जो इन असमियों से कूड़ा उठाने से लेकर सड़क व नालियों की सफाई कराते हैं।

    सफाई कर्मियों की भर्ती न होने का कारण

    लंबे समय से नगर निगम में सफाई कर्मियों की नियमित भर्ती न होने से ही कथित बांग्लादेशियों को शहर में पैर जमाने का मौका मिला। सफाई कर्मी नेता नरेश वाल्मीकि व कमल वाल्मीकि कहते हैं कि नियमित भर्तियां न होने और सेवानिवृत्त होने से सफाई कर्मचारियों की संख्या घटती गई, जिसका लाभ कथित बांग्लादेशियों ने उठाया और पूरे शहर में आज उनका ही वर्चस्व है।

    भाजपा राज्यसभा सदस्य ने पुराने मामले को किया ताजा

    राज्यसभा सदस्य और पूर्व डीजीपी बृजलाल ने लखनऊ में रह रहे बांग्लादेशियों का मामला उठाकर तीन दशक से चल रही बहस को ताजा कर दिया है, जिसमें कहा जा रहा है शहर में बांग्लादेशी और रोहिंग्या रह रहे हैं, लेकिन जांच एजेंसियां किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई हैं।

    हाल यह है कि 'सरकारी जमीन है हमारी' की तर्ज पर कथित बांग्लादेशी सरकारी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। कुछ दिन पहले ही डालीबाग बहुखंडीय भवन के सामने से अवैध बस्ती को हटाया गया था, जो एलडीए की थी। सरकारी जमीनों पर यह कब्जा भी मिलीभगत से ही होता है और विभाग के कर्मचारी किराया वसूलकर अपनी जेब गर्म करते हैं।

    कांग्रेस पार्षद ने बृजलाल पर साधा निशाना

    कथित बांग्लादेशियों को बसाने में नगर निगम की भूमिका पर सवाल उठाने और इन विदेशियों की भारत में पनाह देने में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर आरोप जड़ने वाले भाजपा के राज्यसभा सदस्य व पूर्व डीजीपी बृजलाल पर कांग्रेस पार्षद व संगठन में प्रदेश सचिव मुकेश सिंह चौहान ने प्रहार किया है।

    कहा, नगर निगम को जिम्मेदार बताने वाले बृजलाल जब डीजीपी थे तो उन्हें कथित बांग्लादेशियों पर कार्रवाई करने की याद क्यों नहीं आई। अब अपनी ही सरकार में बांग्लादेशियों की याद आई है। चौहान ने कहा कि देश इंदिरा गांधी के बलिदान को जानता है और अब यह शरण देने का आरोप लगाना गलत है।

    दरअसल सांसद बृजलाल ने इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट कर कहा था कि गोमतीनगर विस्तार में जब वह सुबह वाक करने निकलते हैं तो उन्हें बांग्लादेशी सफाई करते मिलते है। ये अपने को असम के बोंगाई गांव का निवासी बताते हैं और कुछ नलबाड़ी, बरपेटा और नौगांव का।

    यह वही स्थान है जहां कांग्रेसी सरकारों में इन्हें वोट-बैंक के तौर पर योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया था। इंदिरा गांधी इन्हीं बांग्लादेशियों के सहारे 1983 का असम चुनाव जीतना चाहती थीं, जिनकी संख्या उस समय लगभग 40 लाख थी। नगर निगम के जोनल सेनेटरी अफसर पंकज शुक्ला का कहना है कि राज्यसभा सदस्य ने जिन कर्मचारियों के बारे में कहा है, उनकी जानकारी जुटाई जा रही है।