मुख्यमंत्री से शिकायत पर तीन शिक्षकों को नोटिस, लखनऊ विश्वविद्यालय ने तीन दिन में मांगा जवाब
लखनऊ विश्वविद्यालय ने तीन शिक्षकों को मुख्यमंत्री से शिकायत करने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया है। शिक्षकों पर वित्तीय अनियमितताओं और शोधार्थियों के पुरस्कारों को लेकर गलत शिकायत करने का आरोप है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे संस्थान की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाला कदम बताया है और तीन दिन में स्पष्टीकरण मांगा है, अन्यथा कार्रवाई की चेतावनी दी है।

जागरण संवाददाता, लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय ने अपने तीन शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस जारी की है। इनमें अरबी फारसी विभाग के शिक्षक डा. अरशद अली जाफरी, भौतिक विज्ञान विभाग के डा. चांदकी राम गौतम और जंतु विज्ञान विभाग की प्रो. मोनिशा बनर्जी का नाम शामिल है। आरोप है कि तीनों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर वित्तीय प्रक्रिया, शोधार्थियों को दिए जाने वाले पुरस्कारों से संबंधित गलत शिकायत की है। तीनों शिक्षकों से तीन दिन में जवाब मांगा गया है।
विश्वविद्यालय के प्रवक्ता प्रो. मुकुल श्रीवास्तव के मुताबिक जारी नोटिस में कहा गया है कि शिक्षकों ने मुख्यमंत्री को जो पत्र भेजा है, उसमें आरोप है कि विश्वविद्यालय में शोधार्थियों को ₹1100 के एकमुश्त मानदेय/सम्मान राशि प्रदान करने की योजना में अनियमितताएं हुईं।
इस योजना के क्रियान्वयन का श्रेय लेने और पुरस्कार वितरण समिति में शामिल अधिकारियों कुलपति, रजिस्ट्रार, वित्त अधिकारी और अन्य को 75 हजार से डेढ़ लाख तक का मानदेय दिया गया है। साथ ही छात्रों को दी गई कथित सम्मान राशि में भी वित्तीय अनियमितता भी हुई।
इन आरोपों पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे संस्थान की साख को ठेस पहुंचाने वाला कदम बताया है। तथ्य यह भी है कि बूस्ट अवार्ड वितरण कार्यक्रम की शुरुआत प्रो. मोनिशा बनर्जी के डीन रिसर्च रहते हुए शुरू हुआ था।
इसके अलावा वित्त अधिकारी कार्यालय से प्राप्त दस्तावेजी सूचना के अनुसार अधिकारियों कुलपति, रजिस्ट्रार, वित्त अधिकारी और अन्य को मानदेय राशि का भुगतान किए जाने का कहीं कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। प्रशासन ने इस बिंदु को बेहद गंभीर मानते हुए कहा है कि बिना भुगतान के आरोप लगाया जाना ‘भ्रामक सूचना प्रसारित करने’ की श्रेणी में आता है।
संतोषजनक उत्तर न देने पर कार्यवाई
नोटिस में स्पष्ट कहा गया है कि संबंधित शिक्षकों द्वारा लगाए गए आरोप तथ्यों पर आधारित न होने के साथ-साथ वरिष्ठ अधिकारियों की छवि खराब करने वाले प्रतीत होते हैं। इससे विश्वविद्यालय की सार्वजनिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है।
कुलपति कार्यालय के निर्देशानुसार शिक्षकों को तीन दिन में स्पष्टीकरण देना है। निर्धारित समय में संतोषजनक उत्तर न दिए जाने पर उनके विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

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