शिक्षामित्रों के मानदेय वृद्धि पर फैसला सरकार के हाथ, समिति ने तैयार की रिपोर्ट, कैबिनेट से निर्णय की सिफारिश
शिक्षामित्रों के मानदेय वृद्धि को लेकर गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, जिसमें मानदेय बढ़ाने की सिफारिश की गई है। अब इस पर अंतिम निर्णय कैबिनेट को लेना है। शिक्षामित्रों को सरकार से सकारात्मक फैसले की उम्मीद है।

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। शिक्षामित्रों के मानदेय में वृद्धि के मामले में अब सरकार ही निर्णय लेगी। वृद्धि पर विचार को गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर शासन को भेज दी है।
समिति ने रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाने का निर्णय, उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, इसलिए इस पर फैसला कैबिनेट या शासन के किसी सक्षम स्तर से ही लिया जाना उचित होगा। इस तरह यह मामला एक बार फिर शासन के पाले में चला गया है।
प्रदेश के 1.32 लाख परिषदीय विद्यालयों में करीब 1.46 लाख शिक्षामित्र तैनात हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2017 से ये शिक्षामित्र 10 हजार रुपये मानदेय पर कार्य कर रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, सात फरवरी 2000 के शासनादेश के तहत शिक्षामित्रों को प्रारंभ में 700 प्रतिमाह मानदेय दिया गया था। इसके बाद मानदेय में छह बार वृद्धि की गई और वर्तमान में यह 10 हजार रुपये प्रति माह मानदेय मिल रहा है। योजना प्रारंभ होने के समय के 1,450 रुपये मानदेय की तुलना में अब तक लगभग दस गुना वृद्धि की जा चुकी है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 25 जुलाई 2017 को पारित आदेश के समय शिक्षामित्रों का मानदेय 3,500 रुपये प्रतिमाह था, जिसे बाद में बढ़ाया गया। यह वृद्धि मंत्रिपरिषद के निर्णय के आधार पर शासनादेश द्वारा लागू की गई थी।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छह सितंबर 2025 को शिक्षामित्रों को कैशलेस चिकित्सा सुविधा प्रदान करने की घोषणा की थी। इसका पूरा वित्तीय भार राज्य सरकार वहन कर रही है, जिससे शिक्षामित्रों और उनके परिवारों को राहत मिली है।
वर्तमान में 1,42,450 शिक्षामित्रों के मानदेय पर राज्य सरकार का मासिक व्यय लगभग 1,577.35 रूपये करोड़ आता है। यदि प्रत्येक शिक्षामित्र का मानदेय एक हजार रुपये बढ़ाया जाता है तो सरकार पर वार्षिक रूप से लगभग 107.79 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि यह मामला व्यापक वित्तीय प्रभाव वाला है, इसलिए इस पर निर्णय किसी अधिकारी या समिति के स्तर पर नहीं, बल्कि मंत्री परिषद या अन्य सक्षम प्राधिकारी स्तर से ही लिया जा सकता है। समिति ने सिफारिश की है कि 12 जनवरी 2024 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में शासन, मंत्री परिषद या सक्षम प्राधिकारी से आवश्यक विचार करने का अनुरोध किया जाए।
शासन की ओर से गठित इस चार सदस्यीय समिति में बेसिक शिक्षा निदेशक प्रताप सिंह बघेल, एससीईआरटी निदेशक गणेश कुमार, परीक्षा नियामक प्राधिकारी के सचिव अनिल भूषण चतुर्वेदी और मध्याह्न भोजन प्राधिकरण के वित्त नियंत्रक राकेश सिंह शामिल थे। समिति ने अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी है और अब अगले निर्णय का इंतजार है।
विभागीय अधिकारियों के मुताबिक शिक्षामित्रों की उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है। समिति का दायरा सीमित था और उसके पास वित्तीय निर्णय लेने का अधिकार नहीं था। अब मुख्यमंत्री या कैबिनेट के स्तर से शिक्षामित्रों के मानदेय में वृद्धि का फैसला लिया जा सकता है।

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