पटाखों से नहीं... बल्कि इस वजह से खराब होती हवा की गुणवत्ता; विभाग के आंकड़ों ने बताई सच्चाई
दिवाली पर पटाखों के प्रतिबंध के बावजूद दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, प्रदूषण के लिए केवल पटाखे ही जिम्मेदार नहीं हैं। सड़कों पर धूल, निर्माण कार्य, वाहनों का उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियाँ और कृषि अपशिष्ट का जलाना भी वायु प्रदूषण के मुख्य कारण हैं।

मथुरा: छाता क्षेत्र में पराली जलने की घटना को देखते राजस्व व पुलिसकर्मी। फोटो जागरण आर्काइव
राकेश शर्मा, मथुरा। वायु प्रदूषण का जितना शोर दीपावली पर चलाए जाने वाले पटाखों का मचाया जाता है, उतना किसी और किसी अवसर पर नहीं। लेकिन, दिल्ली या एनसीआर के प्रदूषण को मानक मानकर जो शोर मचाया जाता है, वह अर्द्धसत्य पर आधारित है।
वास्तविकता यह है कि इन्हीं दिनों मथुरा ही नहीं, अधिकांश एनसीआर या समीपवर्ती क्षेत्र में पराली जलाने की घटनाएं होती हैं, जिनके कारण वायु प्रदूषण बढ़ता दिखता है। इसके अलावा बदलते मौसम में वातावरण में उत्पन्न होने वाली स्वाभाविक धुंध को भी वायु प्रदूषण ही मान लिया जाता है।
पिछले कई वर्षों में दीपावली के त्योहार के हर्ष उल्लास में चलने वाले पटाखों को लेकर एक नकारात्मक अवधारणा चलती रही है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि केवल दीपावली पर ही यकायक वायु प्रदूषण बढ़ने की बात गलत है। ऐसे में प्रदूषण विभाग के समीर एप के 10 से 22 अक्टूबर तक के आंकड़ों पर गौर करना आवश्यक है।
एक से नौ अक्टूबर तक 50-6्र0 वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) था, वहीं 10 अक्टूबर को यह 100 एक्यूआइ हो गया, जबकि अगले दिन 11 अक्टूबर को 115 एक्यूआइ हो गया। इसके कुछ दिन तक ग्राफ कम रहा, जिसके बाद 18 अक्टूबर को वायु प्रदूषण 129 एक्यूआइ तक पहुंच गया।
19 अक्टूबर को वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ा, जब 156 एक्यूआइ हो गया, जबकि दीपावली के दिन 20 अक्टूबर को वायु प्रदूषण कम होकर 135 एक्यूआइ तक हो गया। इसके अगले दिन मंगलवार को 137 एक्यूआइ हो गया, जबकि 22 अक्टूबर को 121 एक्यूआइ हो गया। इससे साबित होता है कि दीपावली पर ही वायु प्रदूषण बढ़ता हो, ऐसा नहीं है।
दरअसल वायु प्रदूषण बढ़ने का असली कारण एनसीआर या समीपवर्ती स्थानों पर पराली जलना है। हर वर्ष एक अक्टूबर से 15 नवंबर तक पराली जलाए जाने की घटनाएं बहुतायत में होती है। तथ्य है कि इसी समय धान की पैदावार का अंतिम चरण चलता है, जहां धान की कटाई होती है। इसी फसल अवशेष के जलने से वायु प्रदूषण बढ़ता है।
पराली जलने से न रोकने पर प्राविधिक सहायक निलंबित
जासं, मथुरा: उप संभागीय कृषि प्रसार अधिकारी छाता कार्यालय में कार्यरत प्राविधिक सहायक नरेंद्र पाल सिंह को अपनी आवंटित ग्राम पंचायत भरनाखुर्द में पराली जलने की घटनाओं की रोकथाम न करने के कारण राजकीय सेवा से निलंबित कर दिया गया है। उनको डीडीए कार्यालय से संबद्ध कर दिया गया है। उप कृषि निदेशक वसंत कुमार दुबे ने इसके आदेश जारी कर दिए हैं।
तीन वर्ष से पराली दहन में मथुरा नंबर वन
विगत तीन वर्ष से 15 सितंबर से 30 अक्टूबर के बीच पराली जलाने के मामले में प्रदेश भर में मथुरा पहले और अलीगढ़ दूसरे नंबर पर रहते हैं। इस बार भी मथुरा-अलीगढ़ पराली जलाने के मामले में शीर्ष पांच में हैं। धान कटाई तक सामान्यत: 15 नवंबर तक पराली जलाने की घटनाएं सामने आती हैं।
पराली न जलाने के लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है। पराली को गोशालाओं को बेचा जा सकता है और खाद बनाकर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। - वसंत कुमार दुबे, उप निदेशक कृषि
एक माह में प्रदेश में पराली दहन की घटनाएं
- 52-मथुरा
- 42-बाराबंकी
- 39-सहारनपुर
- 35-पीलीभीत
- 36-अलीगढ़
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