हापुड़ हाईवे से दून बाईपास तक बनेगा रिंग रोड... बिजली बंबा बाईपास का चौड़ीकरण भी, यह है योजना
बुलंदशहर-हापुड़ हाईवे को दून बाईपास से जोड़ने वाली एक नई रिंग रोड बनेगी। इससे शहर में यातायात का दबाव कम होगा। साथ ही, दून बाईपास का चौड़ीकरण भी किया ...और पढ़ें

दिल्ली-दून बाईपास। जागरण आर्काइव
जागरण संवाददाता, मेरठ। हमेशा की तरह फिर रिंग रोड निर्माण और बिजली बंबा बाईपास चौड़ीकरण की परियोजना उलझती नजर आ रही है। कभी प्रस्ताव तो कभी सर्वे के नाम पर उलझाया जाता रहा है। अब जब शासन स्तर तक वार्ता हो चुकी है और एलाइनमेंट सर्वे भी हो चुका है तब भी अब फिर से सर्वे शुरू हुआ है। मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) ने दोनों के लिए टीम लगाई है। इस सर्वे में दोनों सड़कों को नए रूप में बनाने और दोनों को पब्लिक- प्राइवेट पार्टनरशिप माडल के तहत बनाने की संभावना तलाशी जाएगी। यानी अब फिर कुछ महीने प्रस्तावों की प्रक्रिया में बीतेंगे।
दरअसल, दोनों मार्ग का निर्माण करने के पीछे मूल कारण बाधा बनकर आई है धन की कमी। बुलंदशहर-हापुड़ हाईवे से जुर्रानपुर रेलवे लाइन, दिल्ली रोड होते हुए दून बाईपास तक रिंग रोड बनाने के लिए लगभग 15 हेक्टेयर भूमि खरीदी जाएगी। इसमें 162 करोड़ रुपये खर्च होंगे। रिंग रोड के निर्माण में 300 करोड़ रुपये अलग से खर्च होंगे, उसमें लगभग 10 अंडरपास, तीन-चार फ्लाइओवर, नाला, विद्युतीकरण आदि कार्य शामिल हैं। जमीन खरीदने के लिए 100 करोड़ रुपये की व्यवस्था मेडा ने अपने कोष से ही है। 62 करोड़ रुपये शासन से मिलने हैं।
वहीं निर्माण कार्य के लिए भी 300 करोड़ रुपये शासन से मिलेंगे। यानी 362 करोड़ रुपये शासन से मिलेंगे। ये सब बातें भले ही हो रही हैं लेकिन शासन से अभी कोई पत्र नहीं आया है। उधर, बिजली बंबा बाईपास के चौड़ीकरण पर भी लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च हो जाएंगे। स्पष्ट है कि शासन से इतनी धनराशि नहीं मिल पाएगी, इसीलिए कुछ समय पहले ही शासन स्तर से इन दोनों मार्गों को पीपीपी माडल पर बनाने की संभावना तलाशने का निर्देश मिला था। उसी क्रम में कमिश्नर ने नए सिरे से सर्वे का आदेश दिया है।
खूब बने प्रस्ताव लेकिन 12 साल से हवा में लटका ही रहा ओवरब्रिज
2011 में जब इसके निर्माण के लिए शिलान्यास हुआ था तब समझौता हुआ था कि इस हिस्से के लिए जमीन मेरठ विकास प्राधिकरण खरीद कर देगा। उसका खर्च मेडा को वहन करना था। जमीन खरीद के बाद पीडब्ल्यूडी को सड़क बनानी थी। सड़क निर्माण का खर्च पीडब्ल्यूडी को वहन करनी था। रेलवे को ओवरब्रिज बनाना था। रेलवे ने ओवरब्रिज बनाकर दे दिया लेकिन मेडा ने जमीन नहीं खरीदी। इस कारण ओवरब्रिज के लिए एप्रोच रोड भी नहीं बन सकी। तब से ओवरब्रिज हवा में लटका हुआ है।
जमीन नहीं मिली तो पीडब्ल्यूडी ने भी सड़क नहीं बनाई। काफी समय तक यह गतिरोध बना रहा। फिर अधिकारियों ने इसको बनाने के लिए एनएचएआइ से संपर्क किया। एनएचएआइ ने शर्त रखी कि जमीन खरीदकर दे दी जाए तो वह बना सकता है, कुछ समय बाद एनएचएआइ ने इस शर्त के आधार पर भी इसे बनाने से इन्कार कर दिया। उसके बाद पीडब्ल्यूडी से 300 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार कराकर शासन को भेजा गया लेकिन शासन ने धनराशि देने से मना कर दिया। इसके बाद बिजली बंबा बाईपास के चौड़ीकरण का प्रस्ताव पीडब्ल्यूडी से बनवाकर भिजवाया गया, उसे भी शासन ने निरस्त कर दिया। कुछ समय बाद फिर पीडब्ल्यूडी से 291 करोड़ रुपये का प्रस्ताव बनवाकर शासन को भेजा गया।
इसमें शासन को यह बताया गया कि यदि जमीन पीडब्ल्यूडी खरीद देगा तो उसके बाद मेडा अपने कोष से सड़क बनाकर देगा। जनप्रतिनिधियों ने प्रस्ताव स्वीकृत होने की जैसे ही खुशखबर दी उसके कुछ समय बाद ही शासन ने उस प्रस्ताव को निरस्त कर दिया। इसके बाद फिर फार्मूला निकाला गया कि यदि 24 मीटर चौड़ी सड़क दो टुकड़ों में बना दी जाए तो उसके लिए जमीन खरीदने पर खर्च 162 करोड़ रुपये आएगा। इसको लेकर शासन स्तर पर बैठक हुई।
शासन में तय हुआ कि 100 करोड़ रुपये मेडा देगा जबकि 62 करोड़ रुपये शासन स्तर से पीडब्ल्यूडी को दिया जाएगा। सड़क बनाने का खर्च भी शासन ने देने की सहमति दी। शासन से 62 करोड़ नहीं आए न ही कोई पत्र। फिर पीडब्ल्यूडी और मेडा ने एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टाली। हालांकि अब फिर नए सिरे से सर्वे हो रहा है।

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