DM के इस आदेश को NHAI के अधिकारियों ने कर दिया इग्नोर, अब जिला प्रशासन उठा सकता है सख्त कदम
मेरठ में एनएचएआइ अधिकारियों द्वारा अनुबंध की प्रति मांगने पर भी अनसुनी की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्टाम्प शुल्क वसूली के लिए अनुबंध की प्रति मांगी जा रही है लेकिन एनएचएआइ अधिकारी कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। जिला प्रशासन अब सख्त कार्रवाई की तैयारी में है। आरटीआई एक्ट भी विफल हो गया है।
जागरण संवाददाता, मेरठ। निबंधन विभाग और जिला प्रशासन की हनक किसी से छिपी नहीं है लेकिन एनएचएआइ के अधिकारी दोनों को कुछ नहीं मानते। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर देशभर के टोल प्लाजा पर टोल वसूली के अनुबंध में स्टांप शुल्क संबंधी जांच की जा रही है।
कोर्ट ने इन अनुबंध को लीज मानते हुए 4 प्रतिशत स्टांप शुल्क की वसूली सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। इसके लिए मेरठ में भी एनएचएआइ अधिकारियों से टोल वसूली के अनुबंध की प्रति एक साल से मांगी जा रही है लेकिन एनएचएआइ अधिकारी एक नहीं सुन रहे हैं।
एआइजी निबंधन के कई पत्रों के बाद डीएम ने भी पत्र भेजा लेकिन अनुबंध नहीं मिला। निबंधन अफसरों ने आरटीआइ एक्ट के तहत भी मांग की लेकिन उसका भी समय बीत गया। अब जिला प्रशासन इस मामले में कड़ी कार्रवाई की तैयारी में है।
जनपद में मेरठ-करनाल हाईवे पर गांव भूनी में टोल प्लाजा स्थापित है। जिसपर वसूली लगभग तीन साल से चल रही है। इसी प्रकार डेढ़ साल से अधिक समय से मेरठ-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग 119 पर भैंसा गांव के पास टोल प्लाजा संचालित है।
निबंधन विभाग के तत्कालीन एआइजी ज्ञानेंद्र कुमार ने दोनों टोल प्लाजा को एक एक करके कई बार पत्र भेजकर अनुबंध की प्रति की मांग की। अधिकारियों ने नहीं सुनी।
दिसंबर महीने में उन्होंने जिलाधिकारी को मामले की जानकारी दी तो तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक मीणा ने भी दोनों टोल एजेंंसियों और एनएचएआइ अधिकारियों को पत्र भेजकर अनुबंध की प्रति उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। लेकिन केंद्र सरकार से संबद्ध एनएचएआइ अधिकारी शायद जिला प्रसासन को नहीं मानते हैं। तभी तो उन्होंने पत्र का जवाब तक देना उचित नहीं समझा।
आरटीआइ अधिनियम भी हो गया फेल
कहा जाता है कि प्रशासन और निबंधन विभाग की बिना अनुमति जनपद में पत्ता भी नहीं हिलता है। इसके बावजूद एनएचएआइ अधिकारी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है। जबकि जिला प्रशासन की सहमति के बिना जिले मे टोल वसूली कर पाना संभव नहीं है।
कहा जा रहा है कि अधिकारियों ने इसे लेकर सख्त रूख अपनाया ही नहीं। यही कारण है कि उनके पत्रों को अधिकारी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। एआइजी निबंधन ने आरटीआइ एक्ट के तहत भी उक्त अनुबंधों की मांग एनएचएआइ अध्यक्ष से की।
साथ में फोटोस्टेट कराने के लिए 1500 रुपये का शुल्क भी भेजा। इस आवेदन को भी 45 दिन से अधिक समय बीित गया है। लेकिन न तो कोई कार्य हुआ और न ही कोई जवाब मिला। हालांकि अब इस आवेदन की अपील करने का दावा किया जा रहा है लेकिन ये हालात अच्छे नहीं माने जा रहे हैं।
सिवाया टोल का चल रहा मुकदमा
पुराना एनएच 58 देहरादून हाईवे पर सिवाया में टोल प्लाजा है। इसका स्टांप वाद दर्ज है। जिसकी सुनवाई एडीएम वित्त के न्यायालय में चल रही है। वहीं दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे के अनुबंध की प्रति निबंधन विभाग के हापुड़ कार्यालय ने प्राप्त करके 234 करोड़ के स्टांप शुल्क का मांगपत्र भेजा था। जिसके विरुद्ध एनएचएआइ ने न्यायालय में वाद दायर किया है। इन दोनों से अनुबंध नहीं मांगे गए हैं।
हम अभी तक पत्र व्यवहार के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना चाहते थे। लेकिन एनएचएआइ अधिकारी नहीं सुन रहे हैं। अब हम खुद एनएचएआइ के कार्यालय जाकर अनुबंध की प्रति लाएंगे। जिलाधिकारी अभी अवकाश पर हैं। उन्हें वापस आने पर इस मनमानी की जानकारी देकर कार्रवाई की मांग की जाएगी। -शर्मा नवीन कुमार एस, एआइजी निबंधन
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