तुलसीपीठ पर कतई प्रश्न न उठाएं, मेरे पास सबकी कुंडली है, खोलकर रख दूंगा, मेरठ में बोले- स्वामी रामभद्राचार्य
Meerut News मेरठ के भामाशाह पार्क में स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने श्रीराम कथा में तुलसी पीठ की महिमा बताई। उन्होंने कहा कि तुलसी पीठ 24वें त्रेता युग में बना था। भगवान राम ने भरत जी को पादुका देकर इस परंपरा की शुरुआत की। स्वामी जी ने सत्संग के महत्व पर भी प्रकाश डाला और मेरठ को क्रांति की नगरी बताया।

जागरण संवाददाता, मेरठ। भामाशाह पार्क में पद्म विभूषण स्वामी श्री रामभद्राचार्य महाराज की श्रीराम कथा का बुधवार को तृतीय सत्र आयोजित हुआ। सीताराम जय सीताराम पंक्तियों के साथ कथा की शुरुआत हुई।
स्वामी श्री रामभद्राचार्य ने बुधवार की श्रीराम कथा से पहले कहा कि तुलसी पीठ पर प्रश्न उठाने वालों को जवाब देना बहुत जरूरी है। कहा कि तुलसी पीठ 24वें त्रेता में बना था। पादुका पूजन की परंपरा जहां से चले, वह पीठ होती है। भगवान राम ने सर्वप्रथम भरत जी को पादुका प्रदान की थी। पादुका देकर भगवान रामचंद्र जी ने यह परंपरा शुरू की।
श्री रामभद्राचार्य ने कहा कि मैं उच्च कोटि का ब्राह्मण हूं, साधु, सन्यासी, एक विशिष्ट संप्रदाय रामानंदाचार्य से हूं। इस संप्रदाय में 70 लाख साधु हैं। कथावाचक की बात को हल्के में नहीं लेना चाहिए। मेरे वक्तव्य से लाखों लोग रामभक्त बन गए।
भगवान श्रीराम को जगद्गुरु कहा गया है। राम जी ने पादुका परंपरा चलाई। उसी रामानंदाचर्या पीठ से जगद्गुरु हैं, उसी पीठ के उत्तराधिकारी अपने परम और प्रिय भक्त आचार्य श्री रामचंद्र जी को घोषित किया। स्वामी रामभद्राचार्य ने कड़े शब्दों में कहा कि तुलसीपीठ पर कतई प्रश्न न उठाएं, मेरे पास सबकी कुंडली है, खोलकर रख दूंगा। तुलसी पीठ का परंपरागत जगद्गुरु रामानंदाचार्य हूं। जो भी शास्त्रार्थ करना चाहेगा, मैं अपने उत्तराधिकारी से ही शास्त्रार्थ करा दूंगा।
सत्संग में लो एडमिशन, तभी जुड़ेगा भगवान से इंटरनल कनेक्शन
स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि कथावाचन आनंदमय होने के लिए होती है। भगवान के प्रति अटेंशन होगा, तब इंटरनल कनेक्शन होगा। यह तब होगा जब आपके ऐसे सत्संग में एडमिशन होगा। हमें श्रीराम कथा जरूर सुननी चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान के मुख्य दस अवतार हैं - इनमें प्रभु श्रीराम अवतार और अवतारी दोनों हैं। भगवान राम प्रभाव का कम, स्वभाव का अधिक प्रयोग करते हैं। श्रीराम जी जैसा स्वभाव न कहीं देखा है और न सुना है। तुलसीदास जी संस्कृत के ज्ञाता थे
मेरठ क्रांति की नगरी
पद्म विभूषण स्वामी श्री रामभद्राचार्य महाराज ने कहा कि मेरठ की कथा उन्हें बहुत प्रिय है। मेरठ के लोग जब जब बुलाएंगे मैं आऊंगा, यह ऐतिहासिक और क्रांति की नगरी है। मुझे यहां आकर ऐसी विशेष अनुभूति हो रही है, जो कहीं और नहीं होती। यह मेरी 1406वीं कथा है।
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