जागरण संवाददाता, मुरादाबाद । रविवार (आज) से पितृपक्ष का शुभारंभ हो रहा है। 16 दिन तक पितरों का तर्पण करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं। इस बार 122 साल बाद पितृपक्ष में ग्रहण का संयोग भी बन रहा है। रविवार रात खग्रास चंद्र ग्रहण लगेगा।
यह ग्रहण शतभिषा नक्षत्र और कुंभ राशि पर होगा, जो भारत के सभी हिस्सों में दिखाई देगा। इस बार का चंद्र ग्रहण पूर्ण रूप से संपूर्ण भारत में आरंभ से लेकर अंत तक देखा जा सकेगा।
रविवार रात्रि नौ बजकर 57 मिनट, मध्य रात्रि 11 बजकर 41 मिनट तथा आठ सितंबर मोक्ष रात्रि में एक बजकर 27 मिनट पर होगा। ग्रहण का स्पर्श, मध्य,मोक्ष पूरे भारतमें दिखाई देगा चंद्र ग्रहण में सूतक काल 9 घंटा पूर्व लगता है। पितृपक्ष के विश्राम पर 21 सितंबर को भी सूर्य ग्रहण लगेगा।
पितृपक्ष की कुछ खास तिथियां पितृपक्ष की प्रत्येक तिथि का अपना महत्व है। लेकिन, भरणी श्राद्ध, नवमी श्राद्ध और सर्व पितृ अमावस्या विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
भरणी श्राद्ध
किसी परिजन की मृत्यु के एक वर्ष बाद अनिवार्य रूप से किया जाता है।
न वमी श्राद्ध
यह मातृश्राद्ध के रूप में प्रसिद्ध है। इस दिन मां, दादी, नानी समेत अन्य के लिए तर्पण, पिंडदान व श्राद्ध किया जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या
यह पितृपक्ष की अंतिम तिथि है। जिन पितरों की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो, उनके लिए इस दिन श्राद्ध किया जाता है।
सूतक काल दोपहर 12:57 से ग्रहण के नौ घंटे पहले सूतक काल प्रारंभ हो जाएगा। सात सितंबर को दोपहर 12 बजकर 57 मिनट से ही सूतक लागू हो जाएगा, जो ग्रहण की समाप्ति तक रहेगा। मान्यताओं के अनुसार सूतक काल के दौरान भोजन, पूजन और शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। हालांकि, बालक, वृद्ध और रोगियों पर सूतक का प्रभाव नहीं होता।
ज्योतिषाचार्य ऋषिकेश शुक्ला ने बताया कि चंद्र ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस दौरान मंत्र जाप, दान और जप-तप का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। ग्रहण के बाद स्नान और दान करना शुभ माना गया है। खग्रास चंद्र ग्रहण होने के कारण इसका वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दोनों दृष्टिकोणों से महत्व रहेगा।
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