Air Pollution: दिल्ली ही नहीं पूरा देश झेल रहा प्रदूषण की मार, हवा में दिख रही धुंधली परत
आजकल, दिल्ली समेत पूरा देश वायु प्रदूषण से त्रस्त है। हवा में छाई धुंधली परत प्रदूषण के खतरनाक स्तर को दर्शाती है। यह समस्या अब देश के कई शहरों में फैल चुकी है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रदूषण से सांस लेने में तकलीफ और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
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जागरण संवाददाता, नोएडा। सर्द मौसम की शुरुआत है। हवा की गति कम है लेकिन, नमी भी है। पहली किरण जब आपके घर की खिड़की से झांकती है, तो हवा में धुंधली परत नजर आने लगी है। यह अब राजधानी ही नहीं देशभर की हकीकत है। हर वर्ष की तरह प्रदूषण अपने पूरे रंग दिखा रहा है।
इन दिनों हवा भारी हो जाती है। वह ऊपर नहीं जाती और प्रदूषक तत्वों को भी नीचे ही रोके रखती है। प्रदूषण तेजी से बढ़ता है। सोमवार को दैनिक जागरण विमर्श में सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की महानिदेशक पद्मश्री सुनीता नारायण ने प्रदूषण को एक सवाल राजनीतिक सवाल से अलग इसे जीवन का सवाल बनाने के लिए कहा।
उन्होंने इस सवाल को हल करने को घर की चारदीवारी में नागरिक और बाहर सरकारें सालभर जंग की स्पष्ट रेखा तय करने बात कही। सरकार के प्रयासों पर सख्त राय दी। उन्होंने कहा कि सरकारों के एजेंडे में प्रदूषण नहीं है। प्रयासों से दो महीने का नाटक नजर आता है। अपनी-अपनी उपलब्धियां गिना राजनीतिक दल तू-तू, मैं-मैं करते रहते हैं।
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खूब चर्चा में रही दिल्ली में क्लाउड सीडिंग
सुनीता नारायण ने दिल्ली नहीं देशभर में प्रदूषण के स्त्रोत और इससे लड़ने के लिए बनी नीतियों पर विचार व्यक्ति किए। बीते दिनों दिल्ली में क्लाउड सीडिंग खूब चर्चा में रही। मोटा खर्च किया गया। माहौल ऐसा बनाया जैसे दिल्ली का प्रदूषण अब जड से खत्म हो जाएगा। क्लाउड सीडिंग के लिए हवा चाहिए होगी। हवा होगी तो प्रदूषण ही नहीं बढेगा। लेकिन यह प्रयोग और परीक्षण तकनीकी रूप से ठीक नहीं था। सिर्फ धूल प्रदूषण की कारक नहीं है।
धूल में मिला वाहनों से उत्सर्जित धुआं प्रदूषण की मुख्य वजह है। हर शहर की प्रदूषण नियंत्रण की अलग नीति हैं। यह धुआं वाहन, फैक्ट्री या कचरा जलाने का भी हो सकता है। स्थानीय निकाय 60 प्रतिशत पैसा सिर्फ धूल को रोकने के लिए खर्च कर रहीं हैं। प्रदूषण नियंत्रण की बनी नीतियों का कार्यान्वयन ठीक से नहीं हुआ। 10 वर्ष पूर्व हुआ सर्वे अभी की जमीनी हकीकत से कोसों दूर है। पराली का अब प्रदूषण में योगदान एक से दो प्रतिशत ही है। वाहन, फैक्टि्यां, सुलगते कूडे के ढेर अब इसकी जगह ले रहे हैं।
कैसे करें प्रदूषण के खिलाफ वार की शुरुआत?
बकौल सुनीता, सिर्फ दीपावली और पराली को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं। कम धुएं वाले हाइब्रिड वाहन और जीरो प्रदूषण के इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर तो आए। इसके विपरीत अन्य वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ी। नेचुरल गैस कोयले से दो से तीन गुना महंगी है। कूड़ा उठ भी गया तो लैंडफिल साइट पर जलता दिखेगा। प्रदूषण के स्त्रोतों तक यहां विशेषज्ञ पूरी तरह पहुंच नहीं सके हैं। अब वक्त है सरकार और नागरिकों को एक साथ अपने हाथ में ब्रश थाम कर प्रदूषण की सफाई के लिए कार्य करें।
चिंता इस बात की है कि हम सभी प्रदूषण बढ़ने पर जागते हैं। हमें घर से शुरुआत कर सूखा और गीला कूड़ा अलग कर करनी चाहिए, क्योंकि हर नागरिक घर में प्रदूषण का छोटा कारखाना चलाता है। हर कालोनी में कंपोस्ट बनाने की व्यवस्था होनी चाहिए। कचरे में गीले कचरे की 60 और 40 प्रतिशत सूखे की हिस्सेदारी है। इसे घरों में पृथक करने के साथ स्थानीय स्तर पर ही इसका निष्पादन होगा तो बड़ी राहत मिलेगी। यह प्रयास आधे कचरे को खत्म करने का कार्य करेगा। सरकारें पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर बनाएं।
मेट्रो स्टेशन या दफ्तर तक लोगों को जाममुक्त रास्ते मिलेंगे तो पब्लिक ट्रांसपार्ट में राइडरशिप बढ़ेगी। जाम में फंसा व्यक्ति निजी वाहन के उपयोग की ओर बढ़ता है। सरकार और लोग नीतियां कागज पर नहीं, जमीन पर उतारें, दिखाएं कि हम कर सकते हैं। सरकारें फैक्ट्रियों में क्लीन फ्यूल सस्ती सस्ती दरों पर उपलब्ध कराएं। विज्ञान को हथियार सबसे पहले बनाया जाए। सामूहिक प्रयासों होंगे तो नीले आसमान के नीचे हर कोई साफ हवा में सांस ले सकेगा।
ईवी अधिक उपयोगी, चलने का अधिकार भी करें सुनिश्चित
मेट्रो शहर और महानगरों में प्रदूषण को ईवी (इलेक्ट्रिकल व्हीकल) के इंफ्रा को और विकसित कर सुधार किया जा सकता है। सब्सिडी और छूट को और बढ़ाकर तकनीकी रूप से और बेहतर बनाने की आवश्यकता है। ईवी का उपयोग सिर्फ शहर में ही नहीं लोग लंबी दूरी के लिए कर सकें। शहर में लोगों को पैदल चलते फुटपाथों को बेहतर करने की आवश्कता है। इंफ्रा इस तरह से विकसित हो कि पैदल ही बस या मेट्रो तक पहुंचा जा सके।
पीएम 2.5 पर है क्लीन एयर प्रोग्राम
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत 113 जिलों में करोड़ों का फंड मिला। इस फंड का उपयोग पीएम 10 (पार्टिकुलेट मैटर) धूल के कणों को नियंत्रित करने में सबसे अधिक है। जबकि, प्रोग्राम के तहत पीएम 2.5 (धुएं के अति सूक्ष्म कण) को नियंत्रित करना उद्देश्य है। इस पर कार्य नहीं हुआ।
निगरानी हो तो सीपीसीबी के आंकडों पर करें अधिक भरोसा
प्रदूषण बढ़ने पर सीपीसीबी (सेंट्रल पालूशल कंट्रोल बोर्ड) की ओर से प्रदूषण कम करने के बजाए एक्यूआइ (एयर क्वालिटी इंडेक्स) को कम दर्शाने के प्रयास शुरू कर दिए जाते हैं। यह बीते दिनों देखा भी गया। पूर्व में तीन एजेंसियां इसकी निगरानी करतीं थीं तो रिकॉर्ड को क्रॉस चेक किया जाता है।
तीनों जगह यह अलग नहीं हो सकता है। अब ही जगह से इसकी निगरानी हो रही है। जबकि, स्विस आक्यू एयर ऐप रिमोट से आंकडे प्रदर्शित करता है। निगरानी ठीक हो तो सीपीसीबी पर अधिक भरोसा किया जा सकता है।
वृक्ष आधारित हो अर्थव्यवस्था
सुनीता नारायण ने कहा कि देश में वृक्ष आधारित अर्थव्यवस्था होनी चाहिए। इससे लोग अधिक से अधिक पेड लगा सकेंगे और उनको काटकर आय भी होगी।

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