World COPD Day: 70 वर्ष में होने वाली सीओपीडी, 40 की उम्र में फुला रही सांस; क्या है डॉक्टरों की सलाह
नोएडा में प्रदूषण बढ़ने से सीओपीडी अब युवाओं को भी हो रहा है। पहले यह बीमारी 60 वर्ष के लोगों में होती थी, पर अब 40 वर्ष के युवाओं में भी इसके लक्षण दिख रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि प्रदूषण, धूल और धुएं के कारण फेफड़े कमजोर हो रहे हैं। खांसी, सांस फूलना जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।

जागरण संवाददाता, नोएडा। धूम्रपान और बढ़ते प्रदूषण से 60 वर्ष की उम्र में होने वाली क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग्स डिजीज (सीओपीडी) अब 40 वर्ष के युवाओं में भी देखने को मिल रही है।
विशेषज्ञों का मानना है इस बीमारी के बढ़ते प्रभाव के लिए पर्यावरणीय कारक और बिगड़ती दिनचर्या जिम्मेदार हैं। आज बुधवार को वर्ल्ड सीओपीडी दिवस पर हम वरिष्ठ चिकित्सकों के माध्यम से इस बीमारी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर रहे हैं।
क्या होता है सीओपीडी?
मैक्स सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के वरिष्ठ निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र अग्रवाल के अनुसार, सीओपीडी में फेफड़ों की ताकत धीरे-धीरे कम होती है, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है। प्रदूषण व सर्दी से रोजाना ओपीडी में 30-40 मरीज आते हैं। दूषित हवा, वाहनों का धुआं व फैक्ट्री के रसायन फेफड़ों को कमजोर करते हैं। खांसी, बलगम, सांस फूलना और बार-बार संक्रमण की समस्या बढ़ती है। गंभीर स्थिति में 20-30 प्रतिशत मरीजों को तुरंत अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है।
ओपीडी में बढ़े 20 प्रतिशत मरीज
मेदांता अस्पताल के डॉ. बिलाल बिन आसफ के अनुसार पिछले दो सप्ताह में ओपीडी में 20 प्रतिशत मरीजों की वृद्धि हुई है, जिनमें खांसी, सांस फूलना, सीने में जकड़न और एलर्जी के लक्षण हैं। पीएम 2.5 और पीएम 10 के कण फेफड़ों की पुरानी बीमारियों को बिगाड़ देते हैं और बच्चों तथा बुजुर्गों में संक्रमण का खतरा बढ़ाते हैं। लंबे समय तक ऐसे प्रदूषण में रहने से फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ता है।
फेफड़े कमजोर होने पर पकड़ में आती है बीमारी
यथार्थ अस्पताल के डॉ. अरुणाचलम एम का कहना है सीओपीडी सांस की बीमारी बढ़ाता है। बीमारी फेफड़े कमजोर होने पर पकड़ में आती है।
फेफड़ों की नियमित जांच है जरूरी
फोर्टिस नोएडा के अतिरिक्त निदेशक पल्मोनोलॉजी डॉ. राहुल शर्मा फेफड़ों की नियमित जांच को अनिवार्य मानते हैं। सांस फूलने को नजरअंदाज करने से बीमारी बढ़ती है। कहा साफ ईंधन, प्रदूषण नियंत्रण, स्पाइरोमेट्री, धूम्रपान मुक्त वातावरण, टीकाकरण व जनजागरूकता से कम कर सकते हैं।

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