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    नाबालिग पत्नी से यौन संबंध 'दुष्कर्म', इलाहाबाद HC ने कहा- पति को राहत नहीं मिलेगी; पॉक्सो लगेगा

    Updated: Sat, 18 Oct 2025 10:20 PM (IST)

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग माँ को बच्चे के साथ आश्रय गृह से रिहा करने से मना कर दिया। न्यायालय ने कहा कि वह 2026 तक वहीं रहेगी। अदालत ने स्वास्थ्य निगरानी के लिए डॉक्टर भेजने का निर्देश दिया। न्यायालय ने यह भी कहा कि नाबालिग पत्नी के साथ रहने पर बालिग पति पर भी पॉक्सो के तहत मामला दर्ज हो सकता है। नाबालिग ने माता-पिता के साथ रहने से इनकार कर दिया था।

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    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नाबालिग मां को बच्चे सहित राजकीय आश्रय गृह से रिहा करने से इन्कार कर दिया है। कोर्ट ने उसकी सास की याचिका खारिज करते हुए कहा है कि पांच अक्टूबर, 2026 को वयस्क होने तक उसे वहीं रहना होगा। कोर्ट ने स्वास्थ्य की निगरानी के लिए सीएमओ कानपुर को हर महीने कम से कम दो बार डाक्टर भेजने का निर्देश दिया है।

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    यह निर्देश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर तथा न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए दिया है। कहा कि नाबालिग पत्नी के साथ रहने से वयस्क पति भी पाक्सो अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों के लिए उत्तरदायी होगा। ट्रायल कोर्ट ने अनुमति देने से इन्कार कर दिया था।

    याचिका में सास ने बहू को राजकीय बाल गृह (बालिका)/बाल गृह से रिहा करने की मांग की थी, जहां उसे बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के आदेश से रखा गया है। शादी तीन जुलाई 2025 को हुई और 11 दिन बाद 14 जुलाई, 2025 को उसने बेटे को जन्म दिया। हाई स्कूल की मार्कशीट के अनुसार याची की बहू की जन्मतिथि पांच अक्टूबर 2008 है। यानी शादी के समय उम्र 17 साल से तीन महीने कम थी।

    लड़की के पिता ने बीएनएस की धारा 137(2) (अपहरण) के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई। इसमें लड़की के पति को 22 जुलाई, 2025 को गिरफ्तार कर लिया गया। लड़की भी हिरासत में ले ली गई। उसे सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश किया गया। यहां उसने कहा कि वह पति के घर में रहेगी।

    उसने जान को खतरा बताते हुए माता-पिता संग रहने से इन्कार कर दिया। इसलिए सीडब्ल्यूसी ने उसे बाल गृह में रखने का आदेश दिया। याची के अधिवक्ता ने केपी. थिम्मप्पा गौड़ा बनाम कर्नाटक राज्य (2011) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते कहा कि लड़की की सहमति से ही रिश्ता वैध हो गया।

    इस पर खंडपीठ ने कहा कि उस फैसले के बाद से सहमति की उम्र से संबंधित कानून में बड़ा बदलाव आया है। जब 2011 का फैसला सुनाया गया था तब भारतीय दंड संहिता की धारा 375 की धारा छह के तहत सहमति की उम्र 16 वर्ष थी। यह 2013 में 18 वर्ष कर दी गई और बीएनएस में भी यही है।

    पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में विवाह भारतीय दंड संहिता (बीएनएस) लागू होने के बाद हुआ था, जिसके अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के साथ सहमति से या बिना सहमति, कोई भी यौन क्रिया धारा 63(vi) के तहत दुष्कर्म के रूप में दंडनीय है।

    कोर्ट ने कहा, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि बालिग पति के आजाद होते ही कोई शारीरिक संबंध नहीं बनेंगे और कानून अलगाव को सुनिश्चित नहीं कर सकता। नाबालिग मां ने चूंकि माता-पिता के घर लौटने से इन्कार कर दिया, इसलिए राजकीय बाल गृह (बालिका) में रहना ही एकमात्र वैध विकल्प है।