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    सतेंद्र अंतिल मामले की गलत व्याख्या से जमानत कार्रवाई में भ्रमः हाई कोर्ट

    Updated: Thu, 13 Nov 2025 10:50 AM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सतेंद्र कुमार अंतिल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या पर चिंता जताई है, जिससे जमानत प्रक्रिया में भ्रम पैदा हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद ही निर्देश लागू होते हैं। कोर्ट ने एक आरोपी को जमानत दी क्योंकि आरोप पत्र दाखिल हो चुका था और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं था। कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट में हेराफेरी पर भी चिंता जताई।

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    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कभी- कभी अदालतों और अधिवक्ता द्वारा सतेंद्र कुमार अंतिल केस में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की गलत व्याख्या की जाती है और इससे जमानत की कार्रवाई में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। सभी जजों को जमानत पर विचार करते समय इस निर्णय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

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    न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकलपीठ ने यह चिंता जताते हुए फिरोजाबाद निवासी याची कृष्णा उर्फ किशन को इसलिए जमानत दे दी है कि आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है और याची का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। साथ ही आगे हिरासत में लेकर पूछताछ की आवश्यकता नहीं है।

    कोर्ट ने कहा, सतेंद्र कुमार अंतिल मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश केवल आरोपपत्र दाखिल होने के बाद ही लागू होते हैं न कि जांच के दौरान जमानत आवेदनों पर। न्यायमूर्ति देशवाल का कहना था- ‘सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायालयों को निर्देश दिया है कि वे सभी चार श्रेणियों के मामलों में जिनमें सात साल तक की सजा वाले मामले भी शामिल हैं, अभियुक्तों की जमानत अर्जी पर अंतिम पुलिस रिपोर्ट (आरोपपत्र) दाखिल करने के बाद निर्णय लें न कि जांच के दौरान जमानत अर्जियों पर।’

    सतेंद्र कुमार अंतिल मामले में शीर्ष न्यायालय ने निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों को यह निर्देश दिया था कि उन अभियुक्तों को जमानत दी जा सकती है जिन्हें विवेचना के दौरान आरोप पत्र दाखिल होने पर गिरफ्तार नहीं किया गया था।

    एकलपीठ ने यह भी निर्देश दिया है कि उसके आदेश की प्रति ज्युडीशियल ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (जेटीआरआइ) निदेशक लखनऊ को भेजी जाए ताकि न्यायिक अधिकारियों को 2022 के फैसले के संबंध में सूचित किया जा सके। याची के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के प्रयास का अपराध करने का आरोप है।

    मामले की सुनवाई के दौरान, न्यायालय को मेडिकल और पुलिस रिपोर्ट में हेराफेरी के संकेत मिले। याची के खिलाफ बीएनएस की विभिन्न धाराओं में थाना शिकोहाबाद में एफआइआर है। कोर्ट ने पाया कि फिजीशियन डाक्टर अश्वनी कुमार पचौरी ने पीड़ित की चिकित्सा जांच की थी और सीटी स्कैन व एक्स-रे कराने की सलाह दी।

    सीटी स्कैन में सिर में फ्रैक्चर मिला। आरोप गंभीर धारा 307 भारतीय दंड संहिता में है। लगभग एक माह बाद हुए एक्स-रे रिपोर्ट में फ्रैक्चर नहीं माना गया। डाक्टर की लापरवाही भरी रिपोर्ट के कारण विवेचना अधिकारी ने धारा 308 (सात साल से कम सजा) के आरोप में चार्जशीट दाखिल की।

    हालांकि, सत्र अदालत ने अभियुक्त को जमानत देने से इन्कार करने का साहस किया। डाक्टर ने पूरक मेडिकल रिपोर्ट देने से इन्कार कर दिया था। कोर्ट ने कहा, विवेचना अधिकारी का दायित्व था कि वह इसकी जानकारी सीएमओ व अन्य उच्च अधिकारियों को देते, किंतु उन्होंने लापरवाही की और एक्स-रे रिपोर्ट पर चार्जशीट दाखिल कर दी।

    पुलिस करती है साक्ष्य से छेड़छाड़ इससे मजिस्ट्रेट के लिए कठिनाई न्यायालय ने कहा

    आपराधिक न्याय प्रशासन, पुलिस अधिकारियों व डाक्टर सहित सभी लोकसेवकों को चाहिए कि वे अपनी ड्यूटी सही ढंग से निभायें, लापरवाही लोगों का विश्वास कम कर सकती है। इससे संविधान का उद्देश्य विफल हो जाएगा। उच्च अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे अकर्मण्य अधिकारियों को सिस्टम से हटाएं, सत्यनिष्ठ व उचित कार्य करने वालों को बढ़ावा दें।

    पुलिस सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का दुरुपयोग करती है। साक्ष्य से छेड़छाड़ करती है। इससे मजिस्ट्रेट की जवाबदेही कठिन हो जाती है।