UP के इस जिले में पराली जलाने के हॉटस्पाॅट होंगे चिह्नित, लगेगा 15 हजार तक का जुर्माना
प्रयागराज में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को लेकर शासन सख्त है। पराली प्रबंधन के लिए हॉटस्पॉट चिह्नित किए जाएंगे और नोडल अधिकारी तैनात होंगे। फसल अवशेष जलाने पर 15000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। किसानों को जागरूक करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, क्योंकि किसानों का कहना है कि विकल्प न होने पर पराली जलाना मजबूरी है।

तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। धान की फसल कटाई शुरू होने वाली है। इसके जलाने से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को लेकर शासन गंभीर है। शासन स्तर पर पराली (फसल अवशेष) प्रबंधन के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं।
अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि पराली जलाने की घटनाओं को ‘शून्य’ किया जाए। इसके लिए हाटस्पाट चिह्नित कर वहां नोडल अधिकारियों की तैनाती की जाएगी।
पराली प्रबंधन के लिए जारी निर्देशों के अनुसार फसल अवशेष जलाने पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति लगाई जाएगी। दो एकड़ से कम क्षेत्र पर 2500 रुपये, दो से पांच एकड़ तक 5000 और पांच एकड़ से अधिक पर 15000 का जुर्माना निर्धारित किया गया है। प्रत्येक 50 से 100 किसानों पर एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी, जो पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम सुनिश्चित करेंगे।
शासन की ओर से डीएम से कहा गया है कि किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के वैकल्पिक उपायों के प्रति जागरूक किया जाए और पराली जलाने की घटनाओं की लगातार निगरानी कराई जाए। जनप्रतिनिधियों से भी इस अभियान में सहयोग की अपील करते हुए कहा कि संयुक्त प्रयासों से ही स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूषण मुक्त प्रदेश का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।
उप निदेशक कृषि पवन कुमार शर्मा ने बताया कि पराली न जलाई जाए, इसके लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है। न्याय पंचायत स्तर, ब्लाक व तहसील स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम शुरू हो गए हैं। मंगलवार को जिला पंचायत में बड़े स्तर पर किसान गोष्ठी होगी। इसके अलावा होर्डिंग्स व वाल पेंटिंग कराकर किसानों को जागरूक किया जाएगा।
यह भी पढ़ें- रेलवे को अभी से कोहरे का डर... 1 दिसंबर से ग्वालियर-झांसी तक रद रहेगी ताज एक्सप्रेस
विकल्प न होने पर पराली जलाना मजबूरी
करछना के किसान रणविजय सिंह यादव, बस्तर के देवी प्रसाद कुशवाहा और मेजा के भइंया गांव के किसान गोविंद मिश्रा, कोरांव के बिंदराम पटेल ने बताया कि पराली प्रबंधन का कोई विकल्प न होने के कारण मजबूरी में जलाना पड़ता है।
हंडिया के किसान रमेश चंद्र मौर्य कहते हैं कि पराली प्रबंधन में समय ज्यादा लगता है, जिसके कारण ज्यादातर किसान इसे खेतों में ही जला देते हैं। सोरांव के पड़रैया गांव के प्रधान कमलेश पटेल ने बताया कि धान के जो पौधे गिर जाते हैं, उन्हें ही जलाया जाता है। वैसे चारा में पराली का उपयोग कर लिया जाता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।