गुरु पूर्णिमा 2022 : काशी में कोई शिष्य नहीं, सब के सब गुरु हैं... अनोखी मान्यताओं वाले अलबेले शहर की दास्तान
काशी में ....का गुरु? का भाव आपको विभोर भी करेगा और आश्चर्य में डुबा भी देता है। मान्यताओं के साथ चलने वाली काशी गुरु पूर्णिमा से पूर्व ही चर्चा में आ जाती है क्योंकि यहां गुरुओं से आशीष लेने वालों की कतार बहुत लंबी है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। वैसे तो गुरुपूर्णिमा का पर्व 13 जुलाई को है लेकिन गुरु चरणों की वंदना और गुरु चरणों की धूलि लेनी हो तो काशी अपने आप में गुरुतर भाव में है। यहां कंकर कंकर शंकर की मान्यता है लिहाजा निकल जाइए घाट से लेकर गलियों तक जहां जहां आपकी नजर पड़ेगी हर कोई गुरु के भाव में मिलेगा आपस में 'का गुरु- का गुरु' कहकर बतकही करते। यह अनोखी और अलबेली काशी का रंग ढ़ंग और अल्हड़ता भी अलबेली और अनोखी है। यहां शिष्य कोई नहीं, सबके सब गुरु हैं। यहां गुरु का भाव गुरुत्वाकर्षण सरीखा है जो एक दिशा में बोली भाषा को खींच ले जाता है।
सर्व विद्या की राजधानी काशी में साहित्स संगीत और कला के दिग्गजों की कमी नहीं। पद्म पुरस्कारों की श्रृंखला हो या भारत के रत्नों की खान। सब कुछ मिलेगा आपको काशी में एक स्थान। राग विराग की नगरी काशी में एक ओर चिताओं की आंच है तो दूसरी ओर मशान नाथ का उल्लास। एक ओर आस्था है तो दूसरी ओर औघड़दानी की अनोखी मान्यता। आपको शायद ही कोई रस हो जो बनारस में न मिले। सुबह से ही गुरु पूर्णिमा का स्नान करते लोग गुरु चरणों की धूलि माथे लगाकर ही लौटना चाहते हैं।
'ई हौ रजा बनारस' के भावों से सराबोर होकर बनारसी ठाठ और गंगा के घाट पर गौर करें तो हर घाट की कहानी गुरुओं से जुड़ी मिलेगी। कोई शिक्षा से जुड़ा, कोई आध्यात्म से तो कोई संगीत घराने से। सब घाटों के अपने अपने गुरुतर ठाट है। कभी इन्हीं घाटों पर गुरु के भाव में शहनाई बजाते उस्ताद बिस्मिल्लाह खां सीखने वालों को रियाज कराते थे। आज भी घाट पर पेंटिंग से लेकर गायन बादन और नृत्य के साथ संगीत के सुरों की साधना आपको सहज मिल जाएगी। गंगा यहां नदी और मां ही नहीं बल्कि पूरी जीती जागती बनारसी संस्कृति और संस्कार है।
बनारसीपने और गुरुओं की नगरी काशी में गुरु पूर्णिमा का पर्व वैसे तो धूम धाम से मनाया जाता है। यहां लाखों की संख्या में बाहर से आने वाले लोग गुरु चरणों की वंदना करने खिंचे चले आते हैं। वैसे काशी में 'का गुरु' शब्द की मान्यता यूं ही नहीं है, यहां हर व्यक्ति गुरु है। आप चाय की अड़ियों पर आएं तो पता चलेगा कि वहां कितने गुरु की बैठकी होती है। कब कहां और कैसे गुरु मिल जाएं यह काशी में ही संभव है।
गुरु से शुरू बतकही और गुरुतर भाव ही नहीं बल्कि अड़ियों पर चलने वाली अनंत बतकही तक में गुरु का भाव ज्ञान से परिपूर्ण नजर आता है। यहां कोई शिष्य नहीं है। अपितु गुरु के भाव से गुरुत्वाकर्षण यहां कुछ ऐसा है कि गुरु पूर्णिमा पर लोग खिंचे चले आते हैं गुरु की नगरी काशी में अशेष आशीष की कामना संग। ...तो मौका मिले तो काशी जरूर आइए, और जानिए कि आखिर काशी गुरुओं की नगरी क्यों है।
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