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    भदोही के किसान को जड़ी-बूटी की खेती ने दिलाई पहचान, लेमन ग्रास व खस की किसानी कर रहे गुलाब चंद्र

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Fri, 19 Mar 2021 05:38 PM (IST)

    भदोही जिले के औराई ब्लाक क्षेत्र के रामापुर लालानगर जीटी रोड निवासी गुलाबचंद्र त्रिपाठी। परंपरागत गेहूं व धान की खेती करने में लगे थे। कभी मौसम की मार तो कभी खाद-बीज व सिंचाई को लेकर उत्पन्न संकट। लिहाजा उन्होंने औषधीय (जड़ी-बूटी) की खेती शुरू की।

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    किसान गुलाबचंद्र त्रिपाठी औषधीय (जड़ी-बूटी) की खेती शुरू की।

    भदोही [मुहम्मद इब्राहिम]। भदोही जिले के औराई ब्लाक क्षेत्र के रामापुर, लालानगर जीटी रोड निवासी गुलाबचंद्र त्रिपाठी। परंपरागत गेहूं व धान की खेती करने में लगे थे। कभी मौसम की मार तो कभी खाद-बीज व सिंचाई को लेकर उत्पन्न संकट। खेती कब चौपट हो जाय कहा नहीं जा सकता था। किसी तरह फसल तैयार हुई, तो उत्पादन में लागत काटने के बाद 10,000 रुपये की बचत भी मुश्किल। लिहाजा उन्होंने औषधीय (जड़ी-बूटी) की खेती शुरू की। पूरे जिले में सिर्फ पहचान कायम करते हुए किसानों के प्रेरणास्रोत बन गए तो उत्पादन से वर्ष भर में ही प्रति एकड़ 70,000 रुपये की मिली बचत से खुशहाली लौट आई है।

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    औषधीय खेती के जरिए किसानों की आय बढ़ाने को लेकर शासन ने नमामि गंगे योजना शुरू की है। वन विभाग के अंतर्गत संचालित योजना में औराई ब्लाक क्षेत्र के लालानगर निवासी गुलाबचंद्र त्रिपाठी ने इसकी महत्ता को समझते हुए आवेदन किया। वन विभाग से अनुदान के रूप में पौधे उपलब्ध कराए गए। मई 2020 में 15 एकड़ भूमि में लेमन ग्रास व खस की खेती कर न सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत की है बल्कि अन्य किसानों को भी प्रेरित कर इससे जोडऩे का काम किया है। बताया कि लेमन ग्रास, पामारोजा व खस की खेती का लाभ यह है कि एक बार लगाने पर पांच वर्ष तक लाभ हासिल होगा। प्रति वर्ष तीन से चार बार कटाई होती है। खर्च के नाम पर मात्र निराई-गुड़ाई व ङ्क्षसचाई भर है। रसायनिक उर्वरक व कीटनाशक की कोई जरूरत नहीं पड़ती। इससे लागत खर्च काफी कम लगता है।

    बीएचयू के पूर्व डीन बने प्रेरणास्रोत

    बीएचयू के पूर्व डीन एवं गिलोय औषधीय परियोजना के समन्वयक डा. यामिनीभूषण त्रिपाठी की प्रेरणा से उन्होंने औषधीय खेती शुरू की। सबसे अहम भूमिका इन्होंने कोरोना संक्रमण के दौर में गिलोय की महत्ता को समझते हुए 20,000 गिलोय पौधे तैयार कर उसका निश्शुल्क वितरण भी किया। उनकी इस पहल की जहां तत्कालीन जिलाधिकारी राजेंद्र प्रसाद ने खुले दिल से सराहना करते हुए सम्मानित किया तो कृषि विभाग से उप कृषि निदेशक अरविंद कुमार सिंह से प्रशस्ति पत्र भी हासिल हो चुका है।

    सीमैप ने डिस्टलेशन प्लांट स्थापित कर किया प्रोत्साहित

    औषधीय खेती को लेकर उनकी रूचि व प्रयास को देखते हुए सीमैप लखनऊ की ओर से उनकी संस्था वैदिक एग्रो प्रोडयूसर कंपनी लिमिटेड को डिस्टलेशन प्लांट (आसवन इकाई) भेंट कर प्रोत्साहित किया है। इससे अब खेती करने वाले अन्य किसानों को भी उत्पादन की बिक्री व तेल निकालने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ेगा।

    तैयार की नर्सरी, देंगे और विस्तार

    इन्होंने पामारोजा, बच, तुलसी, ब्राह्मी, भूमि आंवला, अश्वगंधा, जेरेनियम, मेंथा जैसे औषधीय पौधों की भी नर्सरी तैयार कर ली है। औषधीय खेती को और विस्तार देने की योजना है।