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    भगोड़े और दुष्‍कर्म के आरोपित नित्यानंद की जड़ें काशी में हो रहीं मजबूत, देखें चौंकाने वाले सुबूत

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Wed, 10 Dec 2025 04:51 PM (IST)

    दुष्कर्म का आरोपित नित्यानंद 2019 में भारत से भाग गया था, लेकिन काशी में उसके 'कैलास' का प्रचार जारी है। पोस्टर, होर्ड‍िंंग खुलेआम लगे हैं, पर कोई रोक ...और पढ़ें

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    वाराणसी में स्‍वामी न‍ित्‍यानंद के कैलास नाम से गंगा घाट क‍िनारे प्रचार प्रसार का क्रम जारी है।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। दुष्कर्म का आरोपित स्‍वामी नित्यानंद वैसे तो 2019 में भारत से भाग चुका है ले‍क‍िन काशी में न‍ित्‍यानंद के कैलास का प्रचार- प्रसार आज भी जारी है। प्रचार प्रसार करने के ल‍िए पोस्‍टर बैनर होर्ड‍िंंग सरेआम है और लोगों की नजर में भी हे लेकि‍न इस पर कोई रोक टोक या जांच जैसा कुछ भी नहीं। त्रि‍पुरा भैरवी मोहल्‍ले से गुजरेंगे तो सब कुछ सामान्‍य ही लगेगा हालांक‍ि कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं। 

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    स्वामी नित्यानंद विवादों में घिरे एक आध्यात्मिक गुरु हैं, उनका वाराणसी में कोई स्थायी या ज्ञात निवास नहीं होने के बाद भी उनका अस्‍त‍ित्‍व मौजूद है। वैसे तो न‍ित्‍यानंद का जन्म तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में हुआ था, और उनके ठिकाने अक्सर बदलते रहे हैं। वर्तमान में, उनका मुख्य केंद्र भारत के बाहर इक्वाडोर में है, जिसे उन्होंने 'हिंदुस्तानी रिपब्लिक ऑफ कैलासा' के नाम से स्थापित किया है। 

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    कारीडोर बनने के समय मणिकर्णिका घाट के समीप स्थित भिखारी धर्मशाला के भूतल में कब्जा कर तबेला चलाने वालों को 20 लाख रुपये का ऑफर दिया गया है। इस धर्मशाला के अन्य हिस्से में नित्यानंद के समर्थकों ने भी कब्जा किया हुआ था। इन समर्थकों ने धर्मशाला को छोड़ने के एवज में मणिकर्णिका घाट स्थित अमेठी स्टेट के त्रिपुर सुंदरी मंदिर को जिला प्रशासन को सौंपने की मांग की थी। दरअसल, विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए भिखारी धर्मशाला का महत्व बहुत अधिक था।

    अधिकारियों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए अतिक्रमणकारियों ने कुछ सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से दोबारा कब्जा कर लिया था। वे समझौते के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से धर्मशाला पर अपना हक जताते हुए कूटरचित दस्तावेज के आधार पर मामले को कोर्ट में ले गए थे। नित्यानंद और उनके समर्थक हर हाल में मणिकर्णिका घाट के आसपास अपना ठिकाना बनाना चाहते थे, क्योंकि स्वयंभू बाबा नित्यानंद का संबंध भी इसी महाश्मशान के नाम से रहा है।

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    नित्यानंद के अनुयायियों के अनुसार उन्होंने 11 वर्ष की अवस्था में परिवार का त्याग कर दिया था और काशी आ गए थे।

    काशी में मणिकर्णिका घाट पर उन्होंने आठ साल तक तप किया और सिद्धि हासिल की। हालांकि, घाट के आसपास रहने वाले लोग दावा करते हैं कि नित्यानंद ने मणिकर्णिका घाट पर कभी तप किया ही नहीं था। अपने को काशी और महाश्मशान से जोड़े रखने के लिए नित्यानंद और उनके समर्थक लगातार घाट के आसपास अवैध तरीके से मठ, मंदिर और धर्मशाला पर कब्जा करते रहे हैं।

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    महामंडलेश्वर बनने के बाद, 13 वर्ष पहले नित्यानंद ने अपने स्कैंडल पर वाराणसी पहुंचकर सफाई दी थी। चर्चित स्वामी नित्यानंद महानिर्वाणी अखाड़े से महंत की पदवी मिलने के बाद बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने पहुंचे थे।

    उन्होंने कहा था कि वह काशी में देवी अन्नपूर्णा और काल भैरव का आशीर्वाद लेने आए हैं। जब उनसे स्कैंडल में फंसने के बारे में पूछा गया, तो स्वामी नित्यानंद ने कहा कि उनके लाखों भक्त हैं और वह धार्मिक यात्रा पर हैं, इसलिए इस संबंध में कुछ नहीं बोलेंगे।

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    स्वामी नित्यानंद ने यह भी कहा कि भारत के अलावा विदेशों में भी उनके भक्तों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि हमारा धर्म केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पूजा जाता है। उनके भक्तों की बढ़ती संख्या इस बात का सबूत है कि उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है। उस समय स्वामी नित्यानंद काशी के महातीर्थ मणिकर्णिका घाट पर काफी देर तक रुके रहे। उन्होंने नाव से गंगा में भ्रमण किया और भक्तों को दीक्षा देने के बाद ललिता घाट के आश्रम में चले गए।

    स्वामी नित्यानंद का विवादित जीवन और उनके समर्थकों की गतिविधियाँ वाराणसी में चर्चा का विषय बनी हुई हैं। उनके ठिकाने और गतिविधियों को लेकर स्थानीय प्रशासन और समाज में चिंता बनी हुई है। स्वामी नित्यानंद का जीवन और उनके समर्थकों की गतिविधियाँ न केवल वाराणसी बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई हैं।