Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वर्दी वाला : पुलिस विभाग में एक मैडम की खूब चर्चा है, मगर भूल गईं क‍ि ‘मंत्री’ जी के कार्यकर्ता देवतुल्‍य

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Wed, 26 Nov 2025 11:52 AM (IST)

    पुलिस विभाग में एक महिला अधिकारी की नेता के प्रति निष्ठा के कारण कुर्सी छिन गई। एक आईपीएस अधिकारी अपने अनोखे अनुशासन के लिए चर्चा में हैं, जिससे दारोगा परेशान हैं। एक पीआरओ साहब अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं, और एक अधिकारी के करीबी लोग अपने फायदे के लिए उनका दुरुपयोग कर रहे हैं। पुलिसकर्मी कहते हैं कि साहब तो अच्छे हैं, लेकिन उनके आस्तीन में विषधर हैं।

    Hero Image

    राकेश श्रीवास्‍तव का वर्दी वाला कालम।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। वर्दी वाला की कहान‍ियां रोचक होती हैं और वार्दी वाले का पेशा भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होता। इन्‍हीं चुनौत‍ियों के बीच भी पुल‍िस काम मध्‍यमार्गी वाला हो जाता है। शासन सत्‍ता के साथ तालमेल ब‍िठाने और गुणा-गण‍ि‍त के बीच जन ह‍ित को साधना भी कम चुनौती नहीं। पेश है राकेश श्रीवास्‍तव की एक डायरी - 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मैडम भूल गईं, कार्यकर्ता ही देवतुल्य

    पुलिस विभाग में एक मैडम की खूब चर्चा हो रही है। इसलिए नहीं कि उन्होंने किसी गुंडे को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है। चर्चा के पीछे उनकी एक नेताजी के प्रति सत्यनिष्ठा है। चूंकि मैडम नेता जी की बिरादरी की हैं, इसलिए चौकी इंचार्ज बन गईं। कुर्सी मिली तो उसका ‘तेज’ बर्दाश्त नहीं कर पाईं। कार्यकर्ता किसी काम के लिए पहुंचते तो अपनी निष्ठा भी नेताजी में होने की बात कहकर फोन मिलातीं और आशीर्वाद मांग लेतीं। कार्यकर्ता बेचारा बना सिर नीचा किए लौट आता, लेकिन यह बात नेताजी तक पहुंचते देर नहीं लगी और मैडम की कुर्सी छिन गई। अब मैडम परेशान हैं। मंथन करते गुनगुना रहीं कि भगवान ने किस कसूर की दी है मुझे सजा। मैडम यह समझना भूल गईं कि नेताजी जिस पार्टी में ‘मंत्री’ हैं, उसके राजा की नजर में संगठन का छोटा से छोटा कार्यकर्ता भी देवतुल्य होता है।

    पेट पर लात न मारो साहब

    पुलिस विभाग में इन दिनों एक आइपीएस साहब की दारोगाओं में खूब धमक है। आप समझ रहे होंगे कि वर्दी का मामला है, साहब का कड़क अनुशासन जरूर लापरवाहों के लिए मुश्किल बन रहा होगा। लेकिन साहब न तो कड़क हैं और न ही खुद अपने काम की मिसाल पेश करने वाले। यह जरूर चाहते हैं कि दारोगा-इंस्पेक्टर इतना काम करें कि उनके लिए कुर्सी पर बैठने का काम ही शेष रहे। इसलिए साहब दारोगाओं की समीक्षा में डांटने-फटकारने से ज्यादा वेतन रोकने पर विश्वास करते हैं। इससे पानी सिर से ऊपर जाने लगा है। वैसे फोर्स के अनुशासन में बंधे दारोगा करें भी क्या? आइपीएस की शिकायत करें भी तो किससे? टू स्टार की सुनेगा भी कौन? इसलिए बिलखते हुए बार-बार एक ही बात दोहराते कि पेट पर लात न मारो साहब। यह स्थित तब है, जब बड़के साहब मोटीवेशन के लिए लंच कराना शुरू किए हैं।

    जिनके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते

    पुलिस विभाग में एक पीआरओ साहब को सेटिंग करने में महारत हासिल है। ऐसी सेटिंग कि इंस्पेक्टर, दारोगा, सिपाही सब उन्हें गुरु बनाने को लालायित हैं। कमिश्नरेट में एक दशक से ज्यादा समय तक जमे रहे, जिससे उनका तबादला हो गया। जिम्मेदारी से मुक्त भी कर दिए गए, लेकिन दुबारा लौटे तो पुरानी कुर्सी फिर हासिल कर ली। बात यही खत्म होती तो कोई बात नहीं, क्योंकि कोई कहीं नौकरी करे महकमे के लोगों से क्या लेना-देना? लेकिन पीआरओ साहब तो कुर्सी की धौंस देकर सबके ऊपर हावी होने लगे हैं। मनमाने तरीके से बेगारी के लिए रोजाना आदेश जारी कर रहे। सिपाही, दारोगा, इंस्पेक्टर दुखी हुए तो पीआरओ साहब की करतूत भी चौका से चौकी पर पहुंचने लगी है। पीआरओ को समझना चाहिए कि जिनके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते।

    साहब तो अच्छे मगर उनकी आस्तीन में विषधर

    पुलिस महकमे में एक साहब के प्रति मातहतों में खूब स्नेह है। इसके पीछे उनका काम करने का तरीका ही सबसे महत्वपूर्ण कारण है। साहब कभी किसी को लंच पर बुलाकर खुद को करीब होने का एहसास कराते तो कभी उनकी सुविधाओं की चिंता करने का सार्वजनिक आदेश जारी करते। आदेश जमीन पर उतरने की फिक्र भी करते रहते, लेेकिन उनकी निगाहें अपनी आस्तीन पर नहीं जातीं। इस कारण विषधर बने उनके करीबी मनमाना फायदा उठाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते। होटलों में ठौर दिलाने, काशी जोन के एक प्रसिद्ध रेस्टोरेंट में दावत सरीखे ढेरों बेगारी के आदेश की पूर्ति में सिपाही, दारोगा, इंस्पेक्टर कराह उठते हैं। चूंकि फोर्स अनुशासित है, इसलिए साहब दुश्वारियों से अनभिज्ञ हैं। कहावत है न कि चोरी, हत्या और पाप छिपाए नहीं छिपता, उसी तरह पीड़ितों की संख्या बढ़ते ही बाहर भी पहुंचने लगी। पुलिसकर्मी एक ही राग अलापते हैं कि साहब तो अच्छे हैं, लेकिन उनके आस्तीन में विषधर।