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    आज की पीढ़ी को संवारने के लिए विद्यालयों में 40 मिनट की नैतिक मूल्यों पर पढ़ाई आवश्यक

    वाराणसी में स्कूलों में बढ़ती हिंसा पर दैनिक जागरण द्वारा आयोजित एक संवाद कार्यक्रम में जिला विद्यालय निरीक्षक भोलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि छात्रों में हिंसक प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं जिसके लिए सभी जिम्मेदार हैं। उन्होंने अभिभावकों और शिक्षकों को छात्रों संग बेहतर व्यवहार करने और विद्यालयों में नैतिक मूल्यों की शिक्षा पर जोर देने की आवश्यकता बताई।

    By Mukesh Chandra Srivastava Edited By: Abhishek sharma Updated: Thu, 28 Aug 2025 04:38 PM (IST)
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    स्कूलों में बढ़ी हिंसा को लेकर दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। स्कूलों में बढ़ी हिंसा व बच्चों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति के प्रति जागरूक करने के लिए दैनिक जागरण ने समाचारीय अभियान ‘जागरण संवाद’ की शुरूआत की है।

    इसके तहत तीसरे दिन मंगलवार को दैनिक जागरण कार्यालय में जिला विद्यालय निरीक्षक-जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी भोलेंद्र प्रताप सिंह के साथ ही कई अधिकारियों, प्रमुख प्रधानाचार्यों, व्यापारियों, महिलाओं ने बेबाकी से अपनी बात रखी।

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    डीआइओएस ने कहा, यह सही है कि स्कूली छात्रों में भी हिंसक प्रवृत्तियां बढ़ रही है। इसके लिए कोई एक कारण नहीं, बल्कि हम सभी जिम्मेदार है। अभिभावकों व शिक्षकों को छात्रों के साथ कुशल व्यवहार करना पड़ेगा। सिर्फ एक-दूसरे पर दोषारोपण करने से काम नहीं चलेगा। सभी को सामूहिक जिम्मेदारी लेनी होगी। हम सिर्फ आविष्कार व विकास को दोषी मानकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकते। हां, विकास संस्कारिक होना चाहिए। जब हम व हमारा समाज आवश्यकताओं पर नियंत्रण करना सीख जाएंगे तो अधिकतर समस्याएं काफी हद तक समाप्त हो जाएगी।

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    अब के बच्चे इडिएट बाक्स से सीख रहे हैं। पहले हमें दादा-दादा, बुआ, चाचा-चाची, माता-पिता से सीख मिलती थी, जिसमें संस्कार समाहित था। चाणक्य ने कहा था, पांच साल तक के बच्चों को माता-पिता का दुलार बहुत जरूरी है। इसके बाद 14 वर्ष तक कठोर अनुशासन करना होगा। इसके बाद बच्चा पूरी दुनिया में सफलता हासिल कर सकता है। डीआइओएस ने कहा कि साथ ही अब समय आ गया है कि सभी विद्यालयों में कम से कम 40 मिनट नैतिक मूल्यों पर पढ़ाई की जाए। ताकि बच्चों में संस्कार का भी विस्तार हो सके। जब बच्चे संस्कारवान बनेंगे तो हिंसक घटनाओं पर अपने आप रुकावट आएगी।

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    इनकी भी रही उपस्थिति

    माध्यमिक शिक्षा परिषद क्षेत्रीय कार्यालय वाराणसी के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रवि शंकर दुबे, वाराणसी व्यापार मंडल काशी प्रांत के महासचिव सनी जौहर, सुमन सिंह, आदर्श पब्लिक स्कूल पलहीपट्टी की प्रबंधक ममता प्रजापति, केएलएम इंग्लिश स्कूल के निदेशक हीरालाल बिंद, सेंट्रल माडल स्कूल के कौशल कुमार मौर्या, आरएस पब्लिक स्कूल के निदेशक अनिल कुमार पटेल, आरएस शिक्षण संस्थान के निदेशक रघुबर दास, प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के प्रदेश सचिव अभिषेक यादव।

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    मोबाइल व टीवी के अधिक उपयोग से भी बच्चों में इस तरह की समस्या बढ़ रही है। इसमें सुधार की जरूरत है। विद्यालय स्तर पर भी इसकी पहल करनी होगी। ताकि स्थिति सुधरे। - डा. हरेंद्र कुमार राय, सदस्य, उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा आयोग

    अब विद्यालय की भूमिका शून्य हो गई है। शिक्षक हाथ की छड़ी खोज चुका है। पहले बच्चे अनुशासन में रहते थे। अब तो किसी भी बात पर स्कूल में पुलिस बुलानी पड़ जा रही है। - डा. विश्वनाथ दुबे, निदेशक, एजुकेशनल क्लिनिक व पूर्व प्रधानाचार्य

    गुरुकुल में बच्चों की सारी जिम्मेदारी गुरु की होती थी। वहां से बच्चा संस्कारवान बनकर निकलता था। स्कूलों में दीक्षा संस्कार की शुरूआत होनी चाहिए। दीक्षा से संस्कार व शिक्षा से ज्ञान बढ़ता है। - डा. रामअवतार सिंह यादव, पूर्व उप सचिव, माध्यमिक शिक्षा परिषद

    मोबाइल व इंटरनेट के कारण आज की युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है। साथ ही स्कूलों में शिक्षकों व छात्रों के बीच संवाद का भी अभाव है। अभिभावकों को भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है। - डा. चारु चंद्र राम त्रिपाठी, प्रधानाचार्य, भारतीय शिक्षा मंदिर इंटर कालेज

    बच्चों को पारिवारिक मूल्यों, अपनी संस्कृति का ताना बाना, सिविक सेंस, मोरल साइंस, सनातन संस्कृति, जीव दया-मानव दया के बारे में बताना होगा। तभी बच्चों के आचरण सुधार आएगा। - सुदेशना बसु, वरिष्ठ सीए

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    बच्चों से अभिभावक व शिक्षक स्तर पर निरंतर सकारात्मक वार्ता होनी चाहिए। ताकि बच्चों के व्यवहार में बदलाव का समय रहते ही पता चल सके। इससे अपराध रूकेगा। - चांदनी श्रीवस्तव, अध्यक्ष, न्यू जन कल्याण समिति

    हमसे ही बच्चे सीखते हैं। इसलिए शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका हो जाती है। बच्चों को अनुशासन में रखना भी बहुत जरूरी है। बच्चों के साथ अधिक समय बिताना चाहिए। ताकि उसके व्यवहार के बारे में पता चल सके। - अमृता सिंह, जिलाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ

    बच्चे अनुशासनहीनता के कारण हिंसक हो रहे हैं। बच्चों का बच्चों से व शिक्षक से संवाद का अभाव है। इसलिए संवाद को बढ़ाना चाहिए। संगत का भी ध्यान देना चाहिए। - प्रमोद अग्रहरि, अध्यक्ष, वाराणसी व्यापार मंडल-काशी प्रांत

    इस स्थिति के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार शिक्षक के साथ अभिभावक भी है। माता मोबाइल में व्यस्त रहती है और पिता नौकरी में। इसके कारण बच्चों पर केयर कम हो गया है। - घनश्याम जायसवाल, संरक्षक, जरी व्यापार मंडल

    स्कूल को चाहिए कि बच्चों की स्कूल डायरी को प्रतिदिन अपडेट रखे और बच्चों की हर गतिविधियों को अभिभावकों से भी अवगत कराए। इसके लिए सभी को जिम्मेदारी लेनी होगी। - रजनीश कन्नौजिया, अध्यक्ष, लहुराबीर व्यवसायी समिति

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    हमें दिखावे की प्रवृत्ति को छोड़ना होगा। व्यवसायिक शिक्षा को मजबूती के साथ लागू करना होगा। पहले बच्चे पढ़ते थे, आज पढ़ाए जा रहे हैं। समय के साथ हमें भी बदलना होगा। - डा. प्रभास कुमार झा, पूर्व प्रधानाचार्य, पीएम श्री प्रभुनारायण इंटर कालेज

    स्कूलों में मोबाइल पूर्ण प्रतिबंधित कर देना चाहिए। अगर बच्चों को मोबाइल देना भी है तो बटन वाली ही दी जानी चाहिए। शिक्षकों को भी अपने में सुधार लाने की जरूरत है। छात्रों से संवाद बढ़ाएं। - एनपी सिंह, प्रधानाचार्य, जेपी मेहता इंटर कालेज

    अगर हम समय से नहीं जागे तो आगे समस्या और बड़ी होती जाएगी। शिक्षा, स्कूल व परिवार को बेहतर समीकरण बैठाना होगा। बच्चों से मित्रवत व्यवहार रखना होगा। - प्रेम मिश्र, अध्यक्ष, महानगर उद्योग व्यापार समिति

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    यह संचार तकनीक का युग है। ऐसे में बिना इसके जीवन संभव नहीं है। इसके साथ बेहतर सामंजस्य को बनाकर बच्चों में संस्कार भरना होगा। सामाजिक मेलजोल बढ़ाना होगा। - डा. रमेश प्रताप सिंह, प्रधानाचार्य, उदय प्रताप इंटर कालेज

    सभी शिक्षकों को बच्चों की मनोस्थिति को समझने का प्रयास करना चाहिए। शिक्षकाें को बच्चे के घर जाकर भी प्रकृति को समझना चाहिए। साथ ही अभिभावक भी ध्यान दें कि उसे क्या पढ़ाया जा रहा है। - रुद्राणी हीरालाल बिंद, प्रधानाचार्य, केएलएम इंग्लिश स्कूल

    सर्वप्रथम प्रशासन द्वारा शिक्षा को प्रथम वरीयता देनी होगी। शिक्षा की बात केवल भाषणों और आलेखों में होती है। बार-बार स्कूल बंद कर दिए जाते हैं। घर में बच्चे बैठे बैठे हिंसक हो सकते हैं। इस पर ध्यान देना चाहिए। - डा. अभिनव भट्ट, उप प्रबंधक, गोपी राधा बालिका इंटर कालेज

    स्कूलों में नैतिक मूल्यों का अभाव है। इसके कारण वहां के शिक्षक भी अपनी जिम्मेदारियों से बचते हैं। स्कूलों को तो बस भीड़ बढ़ाने व फीस वसूलने की चिंता है। स्कूलों को चाहिए कि वे बच्चों व अभिभावकों के साथ बेहतर संवाद करें। - अभिषेक गोलू श्रीवास्तव, सामाजिक कार्यकर्ता

    शिक्षक के साथ ही अभिभावकों की भी जिम्मेदारी बनती हैं कि बच्चों से निरंतर संवाद स्थापित करें। स्कूल में भी नैतिक शिक्षा पर जोर दिया जाए। ताकि बच्चों में संस्कार बढ़े और घटनाएं रूके।

    - रामाश्रय पटेल, प्रदेश अध्यक्ष, प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन

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    शिक्षा के बाजारीकरण, कंपटीशन के कारण बच्चों को ढाई साल में स्कूल में एडमिशन कराना भी घातक बनते जा रहा है। पांच साल तक पारिवारिक शिक्षा भी जरूरी है। इससे बच्चों में संस्कार की भावना उत्पन्न होगी। - मनोज जायसवाल, अध्यक्ष, हिंदू बुनकर कल्याण समिति

    एकल परिवार होने की वजह से बच्चों में हिंसा बढ़ रही है। साथ ही सम्मान की कमी हो रही है। सामाजिक और आर्थिक असमानता भी महत्वपूर्ण कारण है, जो बच्चों के अंदर हिंसा को बढ़ाने के कारक है। - अजय गुप्ता, अध्यक्ष, वाराणसी फर्निचर फर्निशिंग व्यापार मंडल

    मोबाइल के बढ़ते प्रयोग के कारण बच्चों में हिंसा बढ़ रही है। यह समाज, परिवार और स्कूलों के बीच भावनात्मक जुड़ाव की कमी भी मानी जा सकती है। इस पर सभी को पहल करनी चाहिए। - प्रियंका, प्रधानाचार्य, आदर्श पब्लिक स्कूल पलहीपट्टी। 

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