अंतरिक्ष में पांच दिनों तक होगी उल्कापिंडों की बारिश, पांच ग्रहों की हुई परेड
Varanasi news चार ग्रह शुक्र बृहस्पति शनि और बुध को भारी प्रकाश प्रदूषण वाली नगरीय रोशनी में भी आसानी से देखा जा सकेगा जबकि वरुण (नेपच्यून) को देखने के लिए दूरबीन की आवश्यकता होगी। वायुमंडल में प्रवेश करते ही घर्षण के कारण धधक उठता है। पर्सिड्स अपने अग्नि-गोलों के लिए भी जाने जाते हैं।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। आसमान में एक सप्ताह से उल्कापिंडों की बारिश हो रही है, यह स्थिति 24 अगस्त तक जारी रहेगी। बीते गुरुवार और शुक्रवार को एक साथ 100-150 उल्कापिंडों की बारिश हुई थी। पांच ग्रहों की प्लैनेट परेड भी हुई, इनमें दो ग्रह बृहस्पति (ज्यूपिटर) और शुक्र (वीनस) एक-दूसरे के काफी निकट नजर आए।
पर्सिड्स उल्का वर्षा के नाम से प्रसिद्ध यह खगोलीय घटना प्रति घंटे लगभग 100 से 150 उल्काओं की बरसात लेकर आती है। यह उल्काएं एक साथ आकाश में चमकती दिखेंगी। चार ग्रह शुक्र, बृहस्पति, शनि और बुध को भारी प्रकाश प्रदूषण वाली नगरीय रोशनी में भी आसानी से देखा जा सकेगा, जबकि वरुण (नेपच्यून) को देखने के लिए दूरबीन की आवश्यकता होगी।
बीएचयू स्थित इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फार एस्ट्रोनामी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स के समन्वयक डा. राज प्रिंस ने बताया कि पर्सिड उल्कापात को यह नाम पर्सियस तारामंडल की दिशा में दिखाई देने के कारण मिला है। असल में यह स्विफ्ट टटल नामक धूमकेतु का छोड़ा हुआ मलबा है। 133 साल में सूर्य का एक चक्कर लगाने वाले इस धूमकेतु की कक्षा में पृथ्वी के पहुंचते ही यह मलबा गुरुत्वाकर्षण बल के कारण खिंचा चला आता है।
वायुमंडल में प्रवेश करते ही घर्षण के कारण धधक उठता है। पर्सिड्स अपने अग्नि-गोलों के लिए भी जाने जाते हैं। अग्नि-गोल प्रकाश और रंग के बड़े विस्फोट होते हैं जो औसत उल्कापिंडों की बौछार से अधिक समय तक बने रहते हैं क्योंकि अग्नि-गोल धूमकेतु के पदार्थ के बड़े कणों से उत्पन्न होते हैं। अग्नि-गोल अधिक चमकीले भी होते हैं। उत्तरी गोलार्ध में पर्सिड्स को भोर से पहले के समय सबसे अच्छी तरह देखा जा सकता है, हालांकि कभी-कभी इस उल्कापिंड की बौछार को रात 10 बजे से भी पहले देखा जा सकता है।
धूमकेतु सूर्य का चक्कर लगाते, अपने पीछे छोड़ते धूल का निशान
उल्कापिंड बचे हुए धूमकेतु कणों और टूटे हुए क्षुद्रग्रहों के टुकड़ों से बनते हैं। जब धूमकेतु सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं तो वे अपने पीछे धूल का एक निशान छोड़ जाते हैं। हर साल पृथ्वी इन मलबे के निशानों से गुजरती है, जिससे ये टुकड़े हमारे वायुमंडल से टकराते हैं और विघटित होकर आकाश में आग जैसी और रंगीन धारियां बनाते हैं।
सूर्य की एक परिक्रमा करने में लगते 133 वर्ष
धूमकेतु अंतरिक्ष मलबे के वे टुकड़े होते हैं जो वायुमंडल के साथ मिलकर पर्सिड्स का निर्माण करते हैं, धूमकेतु स्विफ्ट-टटल से उत्पन्न होते हैं। स्विफ्ट-टटल को सूर्य की एक परिक्रमा करने में 133 वर्ष लगते हैं। जियोवानी शिआपरेली ने 1865 में पता लगाया था कि यह धूमकेतु पर्सिड्स का स्रोत है। स्विफ्ट-टटल धूमकेतु ने आखिरी बार 1992 में आंतरिक सौरमंडल का दौरा किया था।
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