दान में ही परमार्थ, मेडिकल शिक्षा के लिए कर रहे देहदान; वाराणसी स्थित अपना घर आश्रम के 90 लोगों का देहदान प्रदेश के मेडिकल कॉलेज को किया गया
वाराणसी में अपना घर आश्रम निराश्रितों को सम्मानजनक जीवन दे रहा है। आश्रम में रहने वाले प्रभुजनों के देहदान से मेडिकल शिक्षा को नया जीवन मिल रहा है। डॉ. कुमार निरंजन द्वारा संचालित इस आश्रम में 600 से अधिक बेसहारा लोग हैं। यहाँ देहदान की अनूठी पहल से मेडिकल छात्रों को मानव शरीर रचना विज्ञान के अध्ययन में मदद मिलती है।

रवि पांडेय, वाराणसी। महर्षि दधीचि ने अपने शरीर का दान कर देवताओं को दानवों से मुक्ति दिलाई थी। काशी की पावन धरती पर बसा अपना घर आश्रम परोपकार और त्याग की इस परंपरा को आज भी साकार कर रहा है। आश्रम में रहने वाले निराश्रित प्रभुजनों के देहदान के माध्यम से मेडिकल शिक्षा को नया जीवन देने का प्रयास किया जा रहा है।
डॉ. कुमार निरंजन और उनकी पत्नी डॉ. कात्यायनी द्वारा संचालित आश्रम में सड़कों पर भटकते बेसहारा, बीमार और निराश्रित लोगों को आश्रम में सम्मानजनक जीवन दिया जा रहा है। वर्तमान में यहां 600 से अधिक निराश्रित लोग रह रहे हैं और डॉ. निरंजन इन्हें प्रभुजी बुलाते हैं।
मेडिकल के छात्रों के लिए मानव शरीर की उपलब्धता हमेशा से बड़ी चुनौती रही है और भावी डाक्टरों को मानव शरीर रचना विज्ञान के अध्ययन में कठिनाई होती है। बीएचयू में एमबीबीएस करते समय स्वयं डा. कुमार निरंजन इन परिस्थितियों से गुजर चुके हैं।
वह बताते हैं कि उस समय प्रदेश के ज्यादातर मेडिकल कॉलेजों में मानव शरीर मिलना बेहद मुश्किल था। इसे देखते हुए उन्होंने एक अनूठी मुहिम शुरू की। अपना घर आश्रम में रहने वाले प्रभुजी की मृत्यु के बाद उनके शरीर को जलाया या दफनाया नहीं जाता, बल्कि उनकी सहमति से उसे मेडिकल कालेजों को दान कर दिया जाता है। यह देहदान न केवल मेडिकल छात्रों के लिए शोध और अध्ययन का आधार बनता है, बल्कि मानवता की सेवा का अनुपम उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
डॉ. निरंजन की इस पहल को अपना घर आश्रम की राजस्थान के भरतपुर स्थित मुख्य शाखा सहित देशभर के 65 आश्रमों ने अपनाया है। वाराणसी में 2018 से संचालित इस आश्रम ने अब तक 90 प्रभुजी लोगों का देहदान विभिन्न मेडिकल कालेजों को किया है। इनमें बीएचयू, वाराणसी स्थित हेरिटेज मेडिकल कालेज, गोरखपुर, प्रयागराज, आजमगढ़, गाजीपुर और जौनपुर के मेडिकल कालेज शामिल हैं। सबसे अधिक देहदान बीएचयू के एनाटामी विभाग को किए गए हैं।
आश्रम में प्रभुजी की मृत्यु के बाद उनके शरीर को डीप फ्रीजर में सुरक्षित रखा जाता है। इसके बाद प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा कर शव को रजिस्टर्ड मेडिकल कालेजों को सौंपा जाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और नियमों के अनुसार होती है। शव को कम से कम तीन महीने तक रखने की शर्त होती है, ताकि कोई स्वजन अंतिम दर्शन के लिए आए या शरीर के किसी अंग की आवश्यकता हो, तो वह पूरी की जा सके।
काशी की परंपरा को निभाते हुए, मृत प्रभुजी के नाम से आश्रम में नियमित गीता पाठ कराया जाता है। हर वर्ष पितृपक्ष में सामूहिक पिंडदान किया जाता है, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले। अपना घर आश्रम की यह पहल न केवल मेडिकल शिक्षा को सशक्त कर रही है, समाज को संदेश भी दे रही है। यह प्रयास हमें सिखाता है कि सेवा का कोई अंत नहीं होता, जीवन के बाद भी जारी रह सकती है।
आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रभुजी कौशल विकास केंद्र
अपना घर आश्रम में आवासित प्रभुजन के हुनर को संवारने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से प्रभुजी कौशल विकास केंद्र बनाया गया है। इसमें हर्बल साबुन, सुगंधित अगरबत्ती, इको फ्रेंडली दीये, रक्षाबंधन पर राखी भी बनती है।

प्लास्टिक मुक्ति अभियान के लिए कागज का ठोंगा बनाकर मुफ्त बांटा जाता है। ये पत्तल-दोना और गिलास भी तैयार करते हैं। प्रभुजन के शौक व हुनर के अनुसार पेंटिंग, बिजली के काम, संगीत, खाना बनाना, सफाई और चिकित्सा जैसे काम भी कराए जाते हैं। इनसे बनने वाले उत्पाद सामाजिक संस्था के अलावा अन्य आगंतुक खरीदते हैं और इससे होने वाली आय को इन्हीं के बीच बांट दिया जाता है। आश्रम की टीम इनके स्वास्थ्य के अलावा मनोरंजन का भी ख्याल रखती है।यहां सुबह-शाम भजन-कीर्तन और त्योहार पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
तीन हजार लोगों का अपना घर में हुआ इलाज, 1300 लोगों को स्वजनों से मिलाया
सड़कों पर भटकने वाले निराश्रित तीन हजार लोगों को रेस्क्यू करके अपना घर आश्रम लाया गया। जिनके रहने खाने और और उनके स्वास्थ्य का इंतजाम आश्रम की तरफ से किया जाता है। 1300 लोगों को उनके स्वजनों से मिलाया गया। संरक्षक डॉ. कुमार निरंजन ने बताया कि हमारी आधार मुहिम देशभर के अपना घर आश्रम में चलने लगी। यहां साढ़े तीन सौ लोगों की आधार से पहचान हुई और 200 लोगों को उनके स्वजनों तक पहुंचाया जा चुका है। आश्रम की सेवा को देखते हुए प्रशासन की तरफ से स्माइल योजना के तहत वाराणसी को भिक्षावृति से मुक्ति की जिम्मेदारी मिली है।
देहदान को लेकर लोगों को बहुत जागरूक करने की आवश्यकता है। देहदान के लिए जितने लोग शपथ लेते है, उसका 25 प्रतिशत शव ही मेडिकल कॉलेज को मिल पाता है। हालांकि बीएचयू में चिकित्सा विज्ञान संस्थान के मेडिकल छात्रों को कठिनाई नहीं होती। अपना घर आश्रम की वजह से उसे पर्याप्त संख्या में शव मिल जाते हैं।- प्रो. आनंद मिश्रा, विभागाध्यक्ष एनाटामी, आईएमएस, बीएचयू

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।