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उत्तराखंड में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में उपचार के बाद अब उनकी लगातार होगी निगरानी, लगाए जाएंगे सेंसर

उत्तराखंड में हर वर्षाकाल में अतिवृष्टि के चलते भूस्खलन से बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति राज्य को झेलनी पड़ रही है। यद्यपि सवेदनशील भूस्खलन क्षेत्रों का उपचार भी हो रहा है लेकिन कुछ समय ठीक रहने के बाद ये फिर से सक्रिय हो जाते हैं। इस सबको देखते हुए सरकार अब भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के उपचार के बाद उनकी निरंतरता में निगरानी पर विशेष जोर दे रही है।

By kedar dutt Edited By: Vinay Saxena Updated: Tue, 24 Sep 2024 09:39 AM (IST)
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उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ने शुरू की कसरत।- सांकेत‍िक तस्‍वीर

राज्य ब्यूरो, देहरादून। भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में उपचार के बाद अब उनकी निरंतर निगरानी भी की जाएगी। इसके लिए उपचारित क्षेत्र में सेंसर लगाए जाएंगे, जिससे वहां भूमि में होने वाली हलचल की पहले ही जानकारी मिल सकेगी। नैनीताल की नैना पीक से यह शुरुआत होने जा रही है। इसके लिए उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ने कसरत प्रारंभ कर दी है।

यह किसी से छिपा नहीं है कि संपूर्ण उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से संवेदनशील है। हर वर्षाकाल में अतिवृष्टि के चलते भूस्खलन से बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति राज्य को झेलनी पड़ रही है। यद्यपि, सवेदनशील भूस्खलन क्षेत्रों का उपचार भी हो रहा है, लेकिन कुछ समय ठीक रहने के बाद ये फिर से सक्रिय हो जाते हैं। इस सबको देखते हुए सरकार अब भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के उपचार के बाद उनकी निरंतरता में निगरानी पर विशेष जोर दे रही है। इसमें आधुनिक तकनीकी का समावेश किया जाएगा।

उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक डॉ. शांतनु सरकार के अनुसार अब जहां भी भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में दीर्घकालिक उपचारात्मक कार्य होंगे, उन पर बराबर नजर रखी जाएगी। जो भी एजेंसी चाहे वह लोनिवि हो, सिंचाई विभाग या फिर अन्य विभाग, उनके लिए भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में उपचार के बाद सेंसर लगाना अनिवार्य किया जा रहा है।

डॉ. सरकार ने बताया कि उपचारित क्षेत्र में सेंसर लगने पर वहां जमीन के भीतर होने वाली किसी भी प्रकार की गतिविधि की जानकारी मिल सकेगी। सेंसर से तत्काल इसका डेटा मिलेगा, जिसके आधार पर संबंधित क्षेत्र में आपदा प्रबंधन में भी मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि नैना पीक के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में उपचारात्मक कार्य पूर्ण होने पर वहां से सेंसर लगाने की शुरुआत की जाएगी। इसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह के सेंसर लगाए जाएंगे।

पुराने भूस्खलन भी बढ़ा रहे चुनौती

राज्य में इसी वर्ष 500 से अधिक स्थानों पर भूस्खलन की घटनाएं हुई। इनमें कुछेक पुराने क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां पहले भूस्खलन हो चुका है। फिर चाहे वह सोनप्रयाग से लेकर गौरीकुंड तक का क्षेत्र हो या फिर पातालगंगा अथवा अन्य क्षेत्र, इन सबने भी चुनौती बढ़ा दी है। यद्यपि, अब इनके दीर्घकालिक उपचार के दृष्टिगत शीघ्र ही कदम उठाए जाएंगे।

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