आवारा कुत्तों पर उत्तराखंड की नीति, इरादा बड़ा... लेकिन पालन कराना चुनौती
उत्तराखंड में आवारा कुत्तों के प्रबंधन हेतु नीति बनाई गई है, जिसके क्रियान्वयन में कई बाधाएं हैं। राजस्थान और ओडिशा के सफल मॉडलों से सीख लेकर, राज्य को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार नीति को व्यवहारिक बनाना होगा। कुत्तों की बढ़ती संख्या, नसबंदी, टीकाकरण, फीडिंग जोन और पुनर्वास के लिए स्पष्ट मानकों की आवश्यकता है।

उत्तराखंड को जरूरतों के अनुसार नीति को व्यवहारिक रूप देना होगा। प्रतीकात्मक
राज्य ब्यूरो, जागरण, देहरादून। उत्तराखंड में आवारा कुत्तों के प्रबंधन को लेकर नीति तो बन गई है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में अभी कई पेच हैं। सीमित संख्या में आश्रय घर-पशु चिकित्सा संसाधन इस नीति के सफल क्रियान्वयन में बड़ी चुनौती हैं। राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों ने सराहनीय माडल पेश किया है, जो न सिर्फ आवारा कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण में मददगार बना, बल्कि रेबीज जैसी बीमारियों पर रोकथाम का असर भी दिखा। उत्तराखंड को जरूरतों के अनुसार नीति को व्यवहारिक रूप देना होगा, ताकि पशु-संवेदना, सार्वजनिक स्वास्थ्य व पारिस्थितिक संतुलन बना रहे।
उत्तराखंड के विभिन्न शहरों में भी आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या अब चुनौती बन चुकी है। उत्तराखंड में नगर निगमों व नगर पालिका परिषदों के स्तर पर कुत्तों की नसबंदी व टीकाकरण कार्य चल रहा है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो वर्षों में कुत्तों के काटने के मामलों में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। नई नीति की जरूरतों के अनुसार राज्य में कुत्तों की कोई सटीक गणना, स्थायी शेल्टर या फीडिंग ज़ोन मौजूद नहीं है। ऐसे में राजस्थान के माडल से सीखने वाला है। वहां सह-अस्तित्व आधारित नीति बनाई गई, जबकि ओडिशा ने डेटा-आधारित गणना व नियंत्रण माडल अपनाया।
टीकाकरण ट्रैकिंग, कुत्तों की गणना और कचरा प्रबंधन से तलाशा निदान
राजस्थान ने हर वार्ड में निर्धारित फीडिंग प्वाइंट, नसबंदी–टीकाकरण ट्रैकिंग, टैगिंग सिस्टम और स्थानीय निगरानी समिति का प्रावधान किया है। राज्य ने पशु कल्याण और नागरिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की। उधर ओडिशा ने पूरे राज्य में कुत्तों की गणना के लिए अभियान शुरू किया। इसके प्राप्त आंकड़ों से प्रत्येक जिले में नसबंदी और टीकाकरण की प्राथमिकता तय होती है। साथ ही कचरा प्रबंधन और फीडिंग-ज़ोन निर्धारण को नीति में शामिल किया गया है।
उत्तराखंड की जरूरत
- पूरे राज्य में नसबंदी, टीकाकरण, फीडिंग जोन और पुनर्वास के मानक स्पष्ट हों।
- ओडिशा की तरह कुत्तों की सटीक गणना कर एक केंद्रीकृत डिजिटल डेटाबेस तैयार किया जाए।
- पर्यटन क्षेत्रों में सफाई और फीडिंग को लेकर विशेष नीति हो, ताकि तीर्थयात्रियों की सुरक्षा तय हो।
- मोबाइल ऐप या पोर्टल के ज़रिए टैगिंग, टीकाकरण रिकार्ड और नागरिक शिकायतें दर्ज की जाएं।
- स्कूलों, एनजीओ और धार्मिक संगठनों के सहयोग से फीडिंग जोन व आवारा कुत्तों को गोद लेने के लिए अभियान चलें।
अन्य देशों से भी सीखने की जरूरत
भूटान ने सड़कों पर घूमने वाले सौ प्रतिशत कुत्तों की जनसंख्या की नसबंदी और टीकाकरण किया है। वहीं नीदरलैंड कुत्तों का पंजीकरण व गोद लेने को बढ़ावा देकर समस्या से छुटकारा पाया गया।

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