Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मुख्य आरोपित बरी, ...तो पिथौरागढ़ की नन्ही कली की दुष्कर्म के बाद हत्या किसने की?

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 02:54 PM (IST)

    हल्द्वानी के काठगोदाम में 2014 में पिथौरागढ़ की नन्ही कली से दुष्कर्म और हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य अभियुक्त को बरी कर दिया है। अदालत ने पुलिस की जांच पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अब सवाल यह है कि अगर मुख्य अभियुक्त बरी हो गया तो नन्ही कली की हत्या किसने की? पुलिस ने करीबी रिश्तेदार से पूछताछ क्यों नहीं की?

    Hero Image
    रिश्तेदारी में काठगोदाम आई नन्ही कली की नवंबर 2014 में दुष्कर्म के बाद कर दी गई थी हत्या. Concept

    किशोर जोशी, जागरण. नैनीताल । दस साल पहले हल्द्वानी के काठगोदाम में पिथौरागढ़ की नन्ही कली की दुष्कर्म व हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की थ्योरी पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए मुख्य अभियुक्त अख्तर अली को बरी कर दिया है। इसके बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि आखिर नन्ही कली की हत्या किसने की?

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नवंबर 2014 में हुई इस घटना से कुमाऊं ही नहीं पूरे प्रदेश में जनाक्रोश फूट पड़ा था। सरकार ने पिथौरागढ़ नर्सिंग कालेज का नामकरण भी नन्ही कली के नाम पर किया है। पुलिस ने इस मामले में डंपर चालक अख्तर अली, उसके साथी प्रेम पाल वर्मा व एक अन्य को गिरफ्तार किया था। पोक्सो कोर्ट हल्द्वानी ने अख्तर अली को मौत की सजा जबकि प्रेमपाल को पांच साल की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने भी इसी सजा पर मुहर लगाई थी।

    सुप्रीम कोर्ट में मिली जांच में खामियां

    सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की जांच में कई खामियां मिलीं और अभियोजन पक्ष मामले को साबित नहीं कर सका, जो केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था। आरोपित बिहार मूल का डंपर चालक अख्तर अली तब लुधियाना (पंजाब) से पकड़ा गया था। अभियोजन पक्ष ने कहा कि आरोपितों का मकसद मासूम बच्ची के साथ अपनी वासना पूरी करना था, यह घिनौना मकसद ही क्रूर हमले का आधार था, जिससे उसकी मौत हो गई।

    डंपर मालिक के बयानों ने उलझाया मामला

    सुप्रीम कोर्ट को यह बात हजम नहीं हुई कि डंपर मालिक शंकर दत्त ने उसी दिन उसे काम पर रखा और उसे तीन हजार रुपये दिए। फिर उसके बाद उसने अख्तर अली को कभी नहीं देखा।

    शंकर दत्त के अनुसार 21 नवंबर को वह लापता बच्ची की तलाश में भी शामिल हुआ था। अगर उसके बयान में जरा भी सच्चाई होती, तो यह मानना मुश्किल है कि वह इस बात पर चुप रहता कि उसने 20 नवंबर को जिस ड्राइवर को काम पर रखा था, वह अचानक गायब हो गया। यह बात इतनी महत्वपूर्ण थी कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

    सुप्रीम कोर्ट में सामने आया कि दो दुकानदारों ने पुलिस को बच्ची के लापता होने के पांच दिन बाद बयान दिया। जिसमें कहा कि उन्होंने आरोपितों को नशे में देखा था। दुकानदार बलराम कृष्ण की विश्वसनीयता और कम हो जाती है, क्योंकि उसने स्वीकार किया कि वह निश्चित रूप से यह नहीं कह सकता कि आरोपित उस समय लड़की के साथ थे या नहीं।

    करीबी रिश्तेदार से पूछताछ या बयान दर्ज क्यों नहीं किया

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि 25 नवंबर को पीड़ित बच्ची के चचेरे भाई ने थानाध्यक्ष राजेश यादव को मोबाइल फोन पर बताया कि पीड़िता का शव शीशमहल, रामलीला ग्राउंड के पास गौला नदी के जंगल में पड़ा है। तब पुलिस ने शव के बारे में सबसे पहले सूचना देने वाले करीबी रिश्तेदार से पूछताछ या उनका बयान दर्ज नहीं क्यों नहीं किया। यह चूक बहुत गंभीर है।

    जांच के दौरान उसका बयान दर्ज न करना और ट्रायल में गवाही के लिए पेश न करना, कोर्ट को परिस्थितियों की कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी से वंचित कर देता है। यह जानबूझकर की गई चूक न केवल ‘लास्ट सीन थ्योरी’ को कमजोर करती है, बल्कि गंभीर नुकसान भी पहुंचाती है।

    इन परिस्थितियों में डीएनए जांच के लिए आरोपितों के सैंपल लेने की प्रक्रिया को न तो स्वेच्छा से और न ही भरोसेमंद माना जा सकता है। अभियोजन ने यह स्पष्ट किया कि पीड़ित बच्ची के साथ आरोपित अख्तर अली, प्रेम पाल वर्मा और जूनियर मसीह उर्फ फाक्सी ने दुराचार किया लेकिन फोरेंसिक जांच में केवल अख्तर अली का डीएनए ही सर्वाइकल स्वैब से मेल खाता पाया गया।