Navratri 2024: देवभूमि की इस देवी की यात्रा बेहद खास, केवल पुरुष ही लेते हैं भाग
Navratri 2024 नवरात्रि 2024 में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित मां हरियाली देवी मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाएगा। हरियाली देवी मंदिर के कपाट पूरे वर्ष श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं। यह मंदिर ढाई सौ गांवों की आस्था का प्रतीक है और यहां प्रतिवर्ष जन्माष्टमी पर तीन दिन और दीपावली के एक दिन पहले धनतेरस पर मेला लगता है।
जागरण संवाददाता, रुद्रप्रयाग। Navratri 2024: देवभूमि उत्तराखंड में देवों के साथ ही देवियों के सैकड़ों मंदिर स्थित हैं। जहां वर्षभर लाखों भक्तों की भीड़ जुटती है। नवरात्रों में तो यहां विशेष पूजा का आयोजन होता है। इसी क्रम में आज दैनिक जागरण आपको उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित मां हरियाली देवी का मंदिर के बारे में बताने जा रहा है।
रानीगढ़ क्षेत्र के जसोली में स्थित हरियाली देवी मंदिर सिद्धपीठ मंदिरों में शामिल है। मंदिर का निर्माण आदिगुरु शंकराचार्य के समय का माना जाता है।
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जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से लगभग 39 किलोमीटर दूर जसोली में सिद्धपीठ हरियाली देवी का मंदिर स्थित है। यह ढाई सौ गांवों की आस्था का प्रतीक है। नवरात्रों पर यहां विशेष पूजा होती है। हरियाली देवी मंदिर के कपाट पूरे वर्ष श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं।
इतिहास
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब देवकी माता और वासुदेव की सातवीं संतान के रूप में महामाया देवी पैदा हुई, तो कंस ने महामाया देवी को जमीन पर पटककर मारना चाहा।
- कंस ने जैसे ही महामाया देवी को जमीन पर पटका, उनके शरीर के टुकड़े पूरी पृथ्वी पर बिखर गए।
- मान्यता है कि महामाया देवी का हाथ जसोली नामक गांव में गिर गया।
- तब से ही यहां हरियाली देवी के रूप में मां का पूजन शुरू हुआ।
महात्म्य
- यह मंदिर ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग नगरासू तक-147 किलोमीटर, नगरासू-डाडाखाल मोटरमार्ग पर जसोली तक 22 किमी और यहां से दो सौ मीटर पैदल दूरी पर स्थित है।
- मां हरियाली देवी के मंदिर में प्रतिवर्ष जन्माष्टमी पर तीन दिन और दीपावली के एक दिन पहले धनतेरस पर मेला लगता है।
- मां का जसोली में ससुराल एवं जंगल में स्थित कांठा मंदिर में मायका माना जाता है।
- धनतेरस पर मां हरियाली की डोली को जसोली से सात किलोमीटर दूर मायके हरियाली कांठा ले जाया जाता है।
- इस यात्रा में भाग लेने वाले सभी श्रद्धालु एक हफ्ते पहले से ही तामसिक भोजन मीट-मांस, शराब, अंडा, प्याज और लहसुन का सेवन करना बंद कर देते हैं।
- यात्रा में सिर्फ पुरुष श्रद्धालु ही भाग लेते हैं।
- मां के दर्शन कर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
- चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है।
- कालीरात्रि को पूरी रात जागरण होता है।
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