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    अदाकारी से मधुमेह का मिथक तोड़ रहे मरीज, नाटक के जरिए फैला रहे जागरुकता

    कोलकाता में टी1डी वारियर्स नामक एक समूह टाइप 1 डायबिटीज (टी1डी) से जुड़े मिथकों को तोड़ रहा है। नाटक के माध्यम से वे टी1डी रोगियों के सामने आने वाली चुनौतियों और उनकी सफलता की कहानियों को दर्शाते हैं। समूह के सदस्य जिनमें बच्चे भी शामिल हैं अपने अनुभवों को साझा करते हैं और जागरूकता बढ़ाते हैं।

    By Jagran News Edited By: Prince Gourh Updated: Sun, 17 Aug 2025 10:49 PM (IST)
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    अदाकारी से मधुमेह का मिथक तोड़ रहे मरीज (फोटो सोर्स- जेएनएन)

    विशाल श्रेष्ठ, जागरण, कोलकाता। डॉक्टर साहब, मेरे बेटे को क्या हुआ है? उसे इतनी उल्टियां क्यों हो रही हैं? घबराए माता-पिता अस्पताल में डॉक्टर से पूछते हैं। डॉक्टर-आपके बेटे को टाइप-1 डायबिटीज (टी1डी) है। यह मधुमेह का एक प्रकार है, जिसमें अग्न्याशय की बीटा कोशिका अचानक इंसुलिन हार्मोन का उत्पादन करना बंद कर देती है। इससे रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन सामान्यत: बचपन में देखा जाता है। मां-मेरा प्रबाल ठीक तो हो जाएगा ना? डाक्टर-घबराइए मत, संतुलित जीवनशैली अपनाकर टी1डी को आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है।

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    स्कूल में प्रबाल को विशाल नामक सहपाठी 'सुगर ब्वाय' कहकर चिढ़ाता है। तभी शिक्षक आकर प्रबाल से कहते हैं-घबराओ मत, मेरे बेटे को भी टी1डी है। यह बीमारी तुम्हें डाक्टर बनने से नहीं रोक सकती।

    युवा प्रबाल नामी डाक्टर बन चुका है। दूसरी तरफ विशाल को नशे की लत लग चुकी है। उसकी बहन तूलिका उसे इलाज कराने प्रबाल के पास लेकर आती है। प्रबाल विशाल को पहचान लेता है और तूलिका से कहता है-घबराओ नहीं, मैं इसका इलाज करूंगा। वह बिल्कुल ठीक हो जाएगा। दृश्य-4 : तूलिका, जो खुद भी टी1डी है, की शादी होने जा रही है। तभी पड़ोस की एक महिला आकर दूल्हे की मां से कहती है-अरे, किसे अपनी बहू बनाने जा रही हो? इस लड़की को टी1डी है। इंसुलिन के सहारे जिंदा है। ज्यादा दिन बचेगी नहीं। बच गई तो कभी मां नहीं बन पाएगी और मां बन भी गई तो उसकी संतान भी टी1डी पैदा होगी।

    तभी प्रबाल वहां आकर कहता है-आपलोग ये क्या भ्रम फैला रहे हैं! मैं भी टी1डी हूं। मेरी शादी हो चुकी है और एक स्वस्थ बेटा भी है। अंत में तूलिका कहती है-मैं अब शादी नहीं करूंगी। डाक्टर साहब के साथ मिलकर टी1डी के बारे में जागरुकता फैलाऊंगी।

    यह सिर्फ एक नाटक की पटकथा नहीं, बल्कि समाज की क्रूर सच्चाई है, जिसे खुद टी1डी अपने सशक्त अभिनय से दर्शा रहे हैं। 'टी1डी वारियर्स' का यह समूह इससे जुड़े मिथकों को तोडऩे में जुट गया है और अपने जैसे मरीजों को जीने की राह दिखा रहा है। इस अभिनव नाटक मंडली में कुल 11 मरीज हैं, जिनमें पांच बच्चे हैं। कोई दो साल तो कोई 14 साल से इससे पीडि़त है। नाटक की निर्देशक पामेला सूर साधुखां भी टी1डी हैं।

    नाटक मंडली का गठन इंद्रजीत मजुमदार ने किया है, जो पिछले दो दशक से भारत में मधुमेह को नियंत्रित करने की दिशा में काम कर रहे गैरसरकारी संगठन 'डायबिटीज केयर एंड यू' के संस्थापक सचिव हैं। मजुमदार कहते हैं-तुम स्कूल नहीं जा पाओगे, खेल नहीं पाओगे, तुम्हारी शादी नहीं होगी, तुम कभी मां नहीं बन पाओगी...टी1डी को अक्सर ऐसे तंज सुनने को मिलते हैं, लेकिन ये बातें सच नहीं हैं। टी1डी को लेकर व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने के उद्देश्य से मैंने पिछले साल यह नाटक मंडली तैयार की।

    मरीजों से बेहतर अपनी बात कौन रख सकता है इसलिए मैंने उन्हें इसका हिस्सा बनाया। हमने 'टिपिकल जर्नी आफ ए टी1डी' नामक 20 मिनट के इस नाटक का पहली बार गत दिसंबर में कोलकाता में मंचन किया। अब तक इसके छह शो हो चुके हैं।

    अंतरराष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेला परिसर में भी इसका मंचन हो चुका है। सारे शो बेहद सफल रहे हैं। दर्शकों ने इसे खूब सराहा है। अगला शो दिसंबर में कानपुर में होगा। आगे अन्य जगहों पर भी इसका मंचन किया जाएगा। नाटक में दिखाया गया है कि टी1डी को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक टी1डी की सफलता की कहानी भी बयां की गई है।

    निर्देशक पामेला ने कहा-सारे कलाकारों ने कहीं अभिनय नहीं सीखा है। मैंने उनसे बस इतना कहा था कि आपको सबके सामने अपनी बात खुद रखनी पड़ेगी।' कोलकाता के मानिकतल्ला इलाके की रहने वाली 30 वर्षीया पामेला जब महज 14 साल की थी, तब उसे अपने टी1डी होने का पता चला था।

    उन्होंने कहा-'मेरा वजन दो महीने में करीब 25 किलो घट गया था। बाल तेजी से झडऩे लगे थे। हाथ-पैर में काफी दर्द रहता था। रोग निदान कराने पर पता चला कि मुझे टी1डी है। इससे ग्रसित होने पर भी मैं नहीं चाहती थी कि कोई मुझे दया दृष्टि से देखे। मुश्किल वक्त में परिवार मेरे साथ खड़ा रहा और आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं। पामेला आज एक सफल रंगमंच कलाकार हैं।

    उन्होंने कहा-'टी1डी को लेकर एक बड़ा मिथक यह है कि इसके मरीज मां-बाप नहीं बन सकते अथवा संतान होने पर वह इसी रोग से पीडि़त पैदा होगी। यह बिल्कुल गलत है। मेरा एक सात साल का बेटा है और बिल्कुल स्वस्थ है। कोलकाता के टालीगंज इलाके की रहने वाली नाटक मंडली की सदस्या 13 वर्षीया सुकन्या सरकार को दो साल पहले टी1डी होने का पता चला था।

    उसकी मां संचिता सरकार ने बताया-शुरू में हम काफी घबरा गए थे क्योंकि हमें इस बीमारी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इलाज के क्रम में हमने बहुत कुछ जाना। अब मेरी बेटी नाटक के जरिए इसके बारे में जागरुकता फैला रही है। जीडी बिरला सेंटर फार एजुकेशन में सातवीं की छात्रा सुकन्या कहती है-टी1डी के बारे में जागरुकता बहुत जरुरी है। मैं चाहती हूं कि स्कूल-कालेजों में भी इस तरह के नाटकों का मंचन हो।

    कोलकाता के बांसद्रोणी इलाके के रहने वाले 17 साल के अमित नस्कर को 2021 में टी1डी से ग्रसित होने का पता चला था। नाकतल्ला हाई स्कूल में 12वीं के छात्र अमित ने कहा-'शुरू में मैं बहुत डर गया था। सबने कहा कि बहुत भयानक बीमारी है। कुछ ने यह तक कह दिया था कि इसके मरीज ज्यादा दिन नहीं बचते लेकिन इलाज शुरू होने पर मैंने जाना कि संतुलित जीवनशैली अपनाकर इसे आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है। नाटक के जरिए मैं यही संदेश बिखेर रहा हूं।

    टी1डी की स्थिति : मधुमेह मरीजों की वैश्विक आबादी का 5-10 प्रतिशत टी1डी के साथ जी रहा है। भारत में टी1डी मरीजों की कुल आबादी लगभग 10 लाख है। भारत को विश्व में टी1डी की राजधानी माना जाता है, जहां 2.5 लाख बच्चे इससे प्रभावित हैं।