भारत के लिए चिंता का सबब बन सकता है चीन का नया आर्टिफीशियल आईलैंड, क्यों हो रही इसकी चर्चा?
China's First Artificial Island: चीन अपनी समुद्री शक्ति बढ़ाने के लिए एक विशाल तैरता कृत्रिम द्वीप बना रहा है, जो परमाणु हमले को भी झेल सकता है। 78,000 टन वजनी यह द्वीप दक्षिण चीन सागर जैसे रणनीतिक स्थानों पर तैनात किया जा सकता है। इसे संचार, रसद या निगरानी केंद्र के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।

चीन का पहला आर्टिफीशियल द्वीप। फोटो- X
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। समुद्र में अपनी रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाने के प्रयासों के तहत चीन एक विशाल तैरता कृत्रिम द्वीप (China's First Artificial Island) बना रहा है। यह द्वीप परमाणु हमले को भी झेल सकता है। इस परियोजना को समुद्री शक्ति की वैश्विक दौड़ में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है। इससे समुद्र में चीन की शक्ति काफी अधिक बढ़ सकती है। चीनी सरकार से जुड़े शोधकर्ताओं के अनुसार, यह संरचना एक नया विशाल वैज्ञानिक बुनियादी ढांचा है। इसका वजन 78,000 टन है और इसे दुनिया का पहला तैरता हुआ कृत्रिम द्वीप कहा जा रहा है।
परमाणु विस्फोट प्रतिरोधक डिजाइन
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस द्वीप में भविष्य के 'मेटामटेरियल' सैंडविच पैनल का इस्तेमाल किया गया है जो परमाणु शाकवेव के प्रचंड बल को एक झटके में बदलने में सक्षम हैं। यह संरचना, जो धातु की नलियों की एक जाली है, एक अति-मजबूत स्पंज की तरह व्यवहार करती है। कुचलने पर, यह फटने के बजाय और भी सख्त हो जाती है। विस्फोट में, एक ही विनाशकारी प्रहार से चकनाचूर होने के बजाय, पैनल बल को धीरे-धीरे अवशोषित करता है, उसे फैलाता है और क्षति को कम करता है।
दक्षिण चीन सागर में होगी तैनाती
इस द्वीप की संभावित तैनाती दक्षिण चीन सागर जैसे रणनीतिक स्थानों में की जा सकती है, जो पहले से ही क्षेत्रीय संघर्षों का सामना कर रहा है। चीन ने इसे एक नागरिक पहल बताया गया है, लेकिन इसमें जीजेबी 1060.1-1991 का उल्लेख किया गया है, जो परमाणु विस्फोट से सुरक्षा के लिए एक चीनी सैन्य मानक है। यह चीन के दोहरे उपयोग के इरादे का स्पष्ट संकेत है।
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भारत के लिए चिंता
भारत के लिए यह परियोजना चिंता का विषय बन सकती है। सैन्य पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह गतिशील द्वीप विवादित जलक्षेत्र में चुपचाप स्थापित हो सकता है और फिर तेजी से गायब भी हो सकता है। यह एक संचार केंद्र, रसद अड्डा या निगरानी केंद्र के रूप में कार्य कर सकता है। इसकी क्षमता बिना आपूर्ति के 120 दिन तक कार्य करने की है, जो
द्वीप की खासियत
यह एक गतिशील, अर्ध-जलमग्न, दो पतवार वाला प्लेटफार्म है। इसका आकार चीन के फुजियान विमानवाहक पोत के बराबर है। 2028 में इसे लांच करने की योजना है। द्वीप की लंबाई 138 मीटर और चौड़ाई 85 मीटर होगी, जबकि इसका मुख्य डेक जलरेखा से 45 मीटर ऊपर स्थित होगा। यह प्लेटफार्म 6-9 मीटर ऊंची लहरों और श्रेणी 17 के सबसे शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का सामना करने में सक्षम है।
यह बिना किसी आपूर्ति के चार महीने तक 238 कर्मियों को समायोजित कर सकता है। इसकी अधिरचना में महत्वपूर्ण कंपार्टमेंट हैं, जो आपातकालीन बिजली, संचार और नेविगेशन नियंत्रण सुनिश्चित करते हैं। स्थिर स्टेशनों या जहाजों की तुलना में, यह प्लेटफार्म 15 समुद्री मील की गति से यात्रा कर सकता है और 100 से अधिक शोधकर्ताओं को गहरे समुद्र के अवलोकन, उपकरण परीक्षण और समुद्र तल संसाधन अध्ययन में सहायता कर सकता है।
कुछ परमाणु ऊर्जा चालित वाहकों से भी अधिक है। इससे चीन को सुदूर महासागरों तक असाधारण पहुंच प्राप्त होती है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह प्लेटफार्म अपतटीय ऊर्जा से लेकर गहरे समुद्र के खनिजों तक 'नीली अर्थव्यवस्था' पर हावी होने के चीन के दृढ़ संकल्प का संकेत है। 2028 में परिचालन में आने पर, यह विवादित जलक्षेत्रों में लंबी अवधि तक पहुंच प्रदान करेगा।

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