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    Israel Iran Ceasefire: इजरायल-ईरान जंग में ट्रंप को कैसे हुआ सबसे बड़ा फायदा? जानिए किसका हुआ अधिक नुकसान

    Updated: Tue, 24 Jun 2025 06:30 PM (IST)

    Israel Iran Ceasefire: इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों के सैन्य संघर्ष के बाद युद्धविराम की घोषणा हुई, जिसकी घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने की। इस युद्ध में इज़रायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बाधित किया और अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया। वहीं, ईरान को जनता का समर्थन मिला और उसने अमेरिका पर हमला करने की क्षमता दिखाई। दोनों देशों ने कुछ हासिल किया, जबकि ट्रंप ने शांति बहाली का श्रेय लिया।

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    12 दिनों तक चले सैन्य संघर्ष के बाद ईरान-इजरायल के बीच युद्धविराम का एलान।(फोटो सोर्स: जागरण ग्राफिक्स)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इजरायल-ईरान के बीच युद्धविराम (Israel-Iran Ceasefire) की घोषणा हो चुकी है। 12 दिनों तक चले भीषण सैन्य  संघर्ष के बाद अब तेहरान और तेल अवीव  बातचीत के जरिए Problems resolve करेंगे।

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल-ईरान युद्ध विराम की घोषणा की और दोनों देशों से इसका उल्लंघन न करने की गुजारिश की है।  हालांकि, यह कहना कि दोनों देशों का गुस्सा शांत हो चुका है यह जल्दबाजी होगी। लेकिन सवाल है कि इस युद्ध में जीत किसकी हुई?

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    इजरायल ईरान के बीच युद्धविराम की घोषणा।(फोटो सोर्स: जागरण ग्राफिक्स)

    सवाल ये भी पूछे जा रहे हैं कि क्या अब ईरान परमाणु हथियार बनाने की जिद छोड़ देगा? क्या अमेरिका बातचीत के जरिए ईरान को परमाणु कार्यक्रम, आगे बढ़ाने की इजाजत देगा?

    इन सवालों का जवाब तो भविष्य के गर्भ में छिपा है लेकिन आइए जानते हैं कि इस युद्ध से ईरान और इजरायल को क्या हासिल हुआ।

    13 जून की सुबह इजरायल ने एक ही उद्देश्य के साथ ईरान पर हमला किया था कि चाहे कुछ भी हो ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना है। इजरायल  ने ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, जिन परमाणु ठिकानों को निशाना बनाना इजरायल के लिए मुश्किल था वहां पर अमेरिका ने बम बरसाए।

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    13 जून की सुबह इजरायल ने ईरान पर हमला किया।(फोटो सोर्स: रॉयटर्स)

    कुल मिलाकर ईरान के परमाणु बम बनाने के सपने को दोनों देशों ने मिलकर चकनाचूर कर दिया है।  माना जा रहा है कि ईरान के परमाणु बनाने की क्षमता पर फिलहाल ब्रेक लग चुका है।

    12 दिनों तक चले इस युद्ध में इजरायल को बार फिर मिडिल ईस्ट में अपनी सैन्य ताकत को दिखाने का मौका मिल गया।   स्टील्थ F-35 I विमानों ने ईरान में तबाही मचाई और आयरन डोम ने अपना कमाल दिखाया।  इससे एक बार फिर साबित हो चुका है कि मिडिल ईस्ट में इजरायल का मुकाबला करना फिलहाल किसी के बस की बात नहीं।

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    इजरायल ने F-35 फाइटर जेट से ईरान पर हमला किया।(फोटो सोर्स: रॉयटर्स)

    इस सैन्य संघर्ष में एक तरफ जहां ईरान के करीब 1000 लोगों की मौत हो गई वहीं, इजरायल में मरने वालों की संख्या महज 30 के आसपास थी। यानी इजरायल न बताया कि न सिर्फ वो अपने दुश्मनों को मारने की काबिलियत रखता है बल्कि उसे अपने देशवासियों के जान की भी उतनी ही परवाह है।  

    अब बात की जाए कि इस संघर्ष में ईरान को क्या फायदा हुआ।

    ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई और उनकी सरकार के लिए यह संघर्ष मानो एक विन-विन सिचुएशन साबित हुई। ईरान में रैली अराउंड द फ्लैग का प्रभाव दिखा।  

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    इजरायल-ईरान संघर्ष के बीच सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई के समर्थन में उतरी जनता। (फोटो सोर्स: रॉयटर्स)

    'रैली अराउंड द फ्लैग' को आप कुछ यूं समझें कि जब युद्ध के दौरान किसी देश की जनता अपनी सरकार और नेता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो जाए और सरकार के हर फैसलों का समर्थन करे तो उसे रैली अराउंड द फ्लैग  कहते हैं।

    ईरान में कुछ ऐसा ही हुआ, रिहाइशी इलाकों में भीषण बमबारी हुई। हजारों निर्दोष लोगों की जान गई, लेकिन फिर भी वहां की जनता ने अयातुल्लाह अली खामेनेई और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) को सपोर्ट किया।

    23 जून की रात ईरान ने कतर में मौजूद अमेरिकी सैन्य हवाई अड्डों पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए। ईरान ने दावा किया कि उसने अमेरिकी हमले का बदला ले लिया। वहीं,  ईरान ने यह हमला कर दुनिया को दिखा दिया कि वक्त आने पर वो दुनिया का सुपर पावर देश यानी अमेरिका से भी लड़ने की काबिलियत रखता है।  

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    इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका का विरोध करते लोग।(फोटो सोर्स: रॉयटर्स)

    अब ये तो हुई ईरान और इजरायल की बात, लेकिन दुनिया में कोई फसाद हो और वहां अमेरिका अपना फायदा न उठाए, ये मुमकिन नहीं है।

    इजरायल-ईरान के बीच चले संघर्ष में अमेरिका या यूं कहें की डोनाल्ड ट्रंप ने किस तरह अपना फायदा उठाया उसे भी समझ लीजिए। ट्रंप ने एक बार फिर दो देशों के बीच सीजफायर कराने का क्रेडिट ले लिया है। यानी ट्रंप डिप्लोमेसी की एक और जीत हुई।

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    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की फाइल फोटो।

    दुनिया माने या न माने लेकिन ट्रंप तो अब यही कहेंगे कि उनकी वजह से मिडिल ईस्ट में दोबारा शांति बहाल हुई है। ट्रंप के समर्थक कहेंगे कि चलो इसी बात ट्रंप को एक नोबेल पीस प्राइज तो बनता ही है।

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