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    शेख, टैगोर और अब रे... विरासत मिटाने की नाकाम कोशिश, हसीना के जाते ही क्यों बदल गया बांग्लादेश?

    शेख हसीना के पतन के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं। नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस सत्ता में हैं लेकिन अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है जिसपर यूनुस चुप हैं। भारत के विरोध पर अंतरिम सरकार नसीहत देती है। बांग्लादेश में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को नकारा जा रहा है। शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा गिराई गई सत्यजीत रे का पैतृक आवास ध्वस्त किया गया।

    By Swaraj Srivastava Edited By: Swaraj Srivastava Updated: Wed, 16 Jul 2025 05:56 PM (IST)
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    सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत पर बांग्लादेश में उपद्रवियों की 'बुरी नजर' (फोटो: जागरण)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से ही बांग्लादेश बड़े राजनीतिक बदलाव से गुजर रहा है। देश की सत्ता नोबेल विजेता अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस के हाथों में है। लेकिन बांग्लादेश इस समय जिस दौर से गुजर रहा है, ऐसा लगता है कि मोहम्मद यूनुस ने अपने लिए अशांति और कुप्रबंधन के नोबेल की व्यवस्था कर ली है।

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    बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन यूनुस चुप हैं। भारत विरोध जताता है, तो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार उसे आंतरिक मामलों से दूर रहने की नसीहत देकर शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करने लगती है। लेकिन बांग्लादेश में बीते कुछ समय में जो भी कुछ हुआ है, वह साफ तौर पर देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को नकारने की कोशिश है।

    आज के एक्सप्लेनर में जानेंगे कि बांग्लादेश में हो रही घटनाएं कैसे उसके ही इतिहास को धूमिल करने की कोशिश है और इसका भारत के साथ संबंधों पर क्या असर पड़ेगा...

    कहानी शुरू से शुरू करते हैं। अगस्त 2024 की वो तारीख याद कीजिए, जब छात्र आंदोलनों के चलते शेख हसीना ने बांग्लादेश छोड़ने का फैसला किया और उन्होंने भारत में शरण ली। इन आंदोलनों के पीछे वजह थी हसीना सरकार का वो फैसला, जिसमें उन्होंने बांग्लादेश की सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल लोगों के वंशजों के लिए 30 फीसदी आरक्षण की बात कही थी।

    ये वही स्वतंत्रता आंदोलन है, जिसके बाद 1971 में बांग्लादेश को भारत के हस्तक्षेप के बाद पाकिस्तान से आजादी मिली थी और शेख मुजीबुर्रहमान ने स्वतंत्र बांग्लादेश की कमान संभाली थी। शायद दुनिया का कोई और देश होता, तो स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार को मिलने वाले आरक्षण का इतना विरोध नहीं होता, लेकिन बांग्लादेश में राजनीतिक परिस्थिति थोड़ी अलग थी।

    हिंसा पर चुप्पी क्यों साधे बैठे हैं यूनुस?

    ये एक अलग विषय हो सकता है कि बांग्लादेश में हसीना सरकार के फैसले के विरोध में जो हिंसक छात्र आंदोलन हुए, उसके पीछे किसका हाथ था। लेकिन कट टू अगस्त 2024, शेख हसीना ने देश छोड़ दिया और भारत में शरण ली। उनके देश छोड़ने के बाद मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का प्रमुख बना दिया गया।

    मोहम्मद यूनुस भले ही खुद को बांग्लादेश सरकार का चीफ एडवाइजर कहते हों, लेकिन सत्ता की कमान उनके ही हाथ में है और बांग्लादेश में हो रही हर हरकत उनकी शह पर की जाती है। यही कारण है कि जब बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा की जाती है, मंदिरों को तोड़ा जाता है, तो मोहम्मद यूनुस की चुप्पी खटकने लगती है।

    शेख मुजीबुर्रहमान को भूले उपद्रवी

    • एक कदम और आगे बढ़कर बांग्लादेश में युनूस सरकार की शह पर उपद्रवी अपनी ही सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को नकारने की कोशिशें करने लगे हैं। पूरी दुनिया ये सच जानती है कि 1971 के पहले जब बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान था, तब वहां पाकिस्तान की सेना किस तरह बांग्लाभाषी लोगों पर अत्याचार करती थी।

    • भारत के समर्थन और शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश में अपनी आजादी की लड़ाई लड़ी और पाकिस्तान की दमनकारी सरकार से आजादी घोषित की। शेख हसीना उन्हीं मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं। शेख मुजीबुर्रहमान उर्फ बंगबंधु, जिन्होंने बांग्लादेश को आजादी दिलाई, उनके योगदान को भुलाकर बांग्लादेश में उन्हीं की प्रतिमा गिराने की घटनाएं सामने आईं।

    (शेख मुजीबुर्रहमान के पैतृक आवास पर उपद्रवियों का आतंक)

    • फरवरी 2025 में ढाका स्थित शेख मुजीबुर्रहमान के पैतृक आवास का एक हिस्सा ढहा दिया गया। यही वो जगह थी, जहां मुजीबुर्रहमान और उनके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। जिस पाकिस्तान ने बांग्लादेश में जुल्म की इंतहा कर दी थी, उसी के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मिलकर मोहम्मद यूनुस ने 1971 के मुद्दों को सुलझाने की बात कह दी थी।

    संस्कृति और विरासत मिटाने की कोशिश

    बांग्लादेश की हालिया घटना महान फिल्ममेकर सत्यजीत रे के पैतृक आवास को ध्वस्त करने की है। अधिकारी भले ही तर्क दे रहे हों कि इस घर को आवश्यक मंजूरी के बाद ध्वस्त किया जा रहा है, लेकिन ढाका के पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने माना है कि इमारत की सुरक्षा के उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया था।

    (रवींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर में तोड़फोड़)

    इसके पहले जून 2025 में बांग्लादेश के सिराजगंज जिले में स्थित रवींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर में भी तोड़फोड़ की घटना हुई थी। भीड़ ने अधिकारियों पर हमला कर दिया था और म्यूजियम के ऑडिटोरियम को ध्वस्त को क्षतिग्रस्त कर दिया था। ये संग्रहालय अब अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है।

    भारत ने जताई चिंता

    भारत ने इन घटनाओं को लेकर चिंता जाहिर की है और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से मामले में दखल देने की मांग की है। सत्यजीत रे के पैतृक निवास को ध्वस्त करने पर पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी आपत्ति जताई है। वहीं भारत ने बांग्लादेश सरकार को इस ऐतिहासिक इमारत की मरम्मत और जीर्णोद्धार में सहयोग की पेशकश की है।

    (सत्यजीत रे के पैतृक घर को ध्वस्त कर दिया गया)

    कोई देश अपने इतिहास से कितना मु्ंह मोड़ लेगा, ये तो चर्चा का विषय हो सकता है। लेकिन बांग्लादेश की संस्कृति और विरासत को नकारने और ध्वस्त करने की राजनीति मोहम्मद यूनुस और उनकी सरकार का असली चेहरा उजागर करती है। जो पाकिस्तान खुद भीख के पैसों पर जी रहा है, युनूस उसी की गोद में बैठकर भारत को नसीहत देने की बचकानी हरकत कर रहे हैं।

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