अवधेश कुमार। इस तस्वीर की हमने शायद ही कल्पना की हो कि देश में कहीं पर फिर से बाबरी मस्जिद की नींव डाली जाएगी और उसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल होंगे। तृणमूल कांग्रेस से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने मुर्शिदाबाद जिले में बेलडांगा इलाके में प्रतीकात्मक तौर पर फीता काटकर मस्जिद की नींव रख दी। हुमायूं कबीर पश्चिम मुर्शिदाबाद जिले के भरतपुर से विधायक हैं। वे लंबे समय से सार्वजनिक वक्तव्य दे रहे थे कि छह दिसंबर को बाबरी मस्जिद के निर्माण की शुरुआत करेंगे। इस कारण बंगाल के अंदर और देश में असहजता का माहौल कायम हो रहा था। अलग-अलग मंचों से इसे रोकने की मांग भी की गई, किंतु मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे रोकने की कोशिश नहीं की। केवल हुमायूं कबीर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता।

कानून-व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्ध कोई भी राज्य सांप्रदायिकता भड़काने और तनाव फैलाने की योजना वाले हुमायूं कबीर जैसे व्यक्ति को गिरफ्तार करता, हिरासत में लेता या कम से कम उसे नजरबंद करता। इसके साथ ऐसे कार्यक्रम पर रोक भी लगाता। मुर्शिदाबाद का दृश्य इसके विपरीत था। ऐसा लग रहा था जैसे पुलिस उस कार्यक्रम की सुरक्षा के लिए वहां तैनात है। जब पुलिस-प्रशासन को राजनीतिक नेतृत्व से रोकने का कोई आदेश नहीं था तो वह ऐसी ही भूमिका निभाएगा।

किसी को भी कानूनी रूप से वैध जमीन पर मंदिर या मस्जिद बनाने का अधिकार है, लेकिन बाबर के नाम से मस्जिद बनाना करोड़ों हिंदुओं-सिखों की भावनाओं को चोट पहुंचाना और उनके जख्मों को कुरेदना है। यह हर दृष्टि से अस्वीकार्य है। 1529 में बाबर के सेनापति मीर बकी द्वारा अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद निर्माण के विरुद्ध वर्षों का संघर्ष अब सबको पता है। अंततः स्वतंत्रता के बाद आंदोलन और फिर आगे न्यायिक संघर्ष से उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद मंदिर निर्माण किया गया। बावजूद इसके देश का एक वर्ग मानता है कि बाबर के साथ उसका जुड़ाव है, उससे प्रेरणा मिलती है और इसलिए उसके नाम की मस्जिद बनानी है। यह भारत की एकता-अखंडता और सांप्रदायिक सद्भाव की दृष्टि से अशुभ संकेत है।

इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जिस बाबर को उसके मूल स्थान के कई इतिहासकार लुटेरा कहते हैं, अनेक भारतीय मुसलमान स्वयं को उससे जोड़ते हैं? हुमायूं कबीर के बाद तहरीक मुस्लिम शब्बन नामक संगठन ने ग्रेटर हैदराबाद में बाबरी मस्जिद मेमोरियल और वेलफेयर इंस्टीट्यूशन बनाने का एलान किया है। पता नहीं आगे कौन कहां बाबर के नाम पर और कुछ निर्माण की घोषणा कर दे। भारत विभाजन के पीछे बंगाल वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप से कट्टरपंथियों के लिए बहुत बड़ी ताकत बना था। 16 अगस्त, 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे यहीं हुआ था, जिसमें कई सौ हिंदुओं को मारा गया था, ताकि गैर मुस्लिम डर जाएं और कांग्रेस दबाव में आए एवं ब्रिटिश सरकार के सामने मुसलमानों को अलग देश देने के अलावा चारा न बचे।

आखिर हुमायूं कबीर के साथ मुस्लिम समुदाय के इतने लोगों के खड़े होने, रुपये देने का विश्लेषण कोई कैसे करेगा? कुछ लोग इसे पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़ कर देख सकते हैं। अगर हुमायूं कबीर को बाबर के नाम पर वोट मिलने की उम्मीद है तो इससे खतरनाक स्थिति कुछ नहीं हो सकती। हुमायूं कबीर की सांप्रदायिक और हिंदू विरोधी मानसिकता लंबे समय से सामने है। मई 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कहा था कि मुर्शिदाबाद में 70 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम है। भाजपा के समर्थकों को भागीरथी नदी में फेंक देंगे। आखिर मुर्शिदाबाद में भाजपा के समर्थक किस समुदाय के हैं?

इसी वर्ष अप्रैल में मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ कानून के बहाने हुई हिंसा को याद करिए और हुमायूं कबीर के इस बयान को देखिए। कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा गठित तथ्य खोजी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यहां की हिंसा पर दिल दहलाने वाले बातें कही थीं। उसमें कहा गया था कि हिंसा केवल हिंदुओं के विरुद्ध थी और सुनियोजित थी तथा स्थानीय तृणमूल के मुस्लिम नेता और पार्षद ने हिंसा का नेतृत्व किया। यह भी कि लोगों ने पुलिस से मदद मांगी, पर पुलिस ने न हिंसा रोकने की कोशिश की और न पीड़ितों को सुरक्षा देने की ही। इस घटना पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले बीएसएफ पर आरोप लगाया और फिर बाद में इसे भाजपा और संघ की साजिश करार देती रहीं।

पहले बंगाल के वामपंथी नेताओं और अब ममता ने ऐसे खतरनाक कट्टर हिंसक शेर की सवारी की है, जो उनके लिए भी संकट बन रहा है और देश के लिए भी। किसी भी समुदाय से उम्मीद की जानी चाहिए कि अगर इतिहास की कुछ बातें स्पष्ट हैं तो उन्हें स्वीकार कर दूसरों की भावनाओं का सम्मान करे। भारत में दृश्य इसके उलट हैं। यहां बाबर का खुलेआम गुणगान हो रहा है। बंगाल में बाबरी मस्जिद की नींव के बाद देश को इस्लामी कट्टरवाद के कटु यथार्थ को समझना चाहिए और सरकार के साथ आम लोगों को भी सोचना चाहिए कि इसका मुकाबला कैसे किया जाए? मुस्लिम समुदाय के अंदर भी ऐसे लोग हैं, जो इस प्रकार के व्यवहार को उचित नहीं मानते। उन्हें भी आगे आकर विरोध करना पड़ेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)