जागरण संपादकीय: आतंक की गहरी जड़ें, चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे
दिल्ली में लाल किले के पास कार विस्फोट के बाद फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल का खुलासा हुआ। साजिश 26/11 जैसी घटना को अंजाम देने की थी, जिसके लिए हथियार और विस्फोटक जमा किए गए थे। अल फलाह यूनिवर्सिटी की भूमिका संदिग्ध है, क्योंकि उसने कई कश्मीरी डॉक्टरों को नियुक्त किया था।
HighLights
लाल किले के पास आतंकी साजिश का पर्दाफाश
फरीदाबाद मॉड्यूल 26/11 जैसा हमला चाहता था
अल फलाह यूनिवर्सिटी की भूमिका संदिग्ध
दिल्ली में लाल किले के निकट कार में विस्फोट के बाद इस आतंकी घटना को लेकर जैसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं, उससे यही सिद्ध होता है कि फरीदाबाद आतंकी माड्यूल ने एक बहुत बड़ी साजिश रची थी। इस माड्यूल में शामिल एक डाक्टर की कार में किसी गफलत में विस्फोट होने से आतंकी साजिश का भंडाफोड़ तो हो गया, पर इसकी अनदेखी न की जाए कि वे 26/ 11 जैसी आतंकी घटना को अंजाम देने की ताक में थे।
उन्होंने एक साथ कई धमाके करने के लिए कारें जुटाने के साथ घातक हथियारों और विस्फोटकों का जखीरा जमा कर लिया था। इस आतंकी साजिश में शामिल होने वालों की संख्या बढ़ने के साथ फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी की भूमिका को लेकर संदेह गहराने से यही स्पष्ट होता है कि कश्मीर से लेकर देश के अन्य हिस्सों में आतंक की जड़ें कहीं अधिक गहराई तक जम चुकी हैं।
अल फलाह यूनिवर्सिटी केवल इसीलिए कठघरे में नहीं कि वह अप्रत्याशित रूप से बड़ी संख्या में कश्मीरी डाक्टरों को नियुक्त कर रही थी, बल्कि इसलिए भी है कि उसने ऐसे डाक्टरों को भी नौकरी दी, जो दूसरी जगहों से बर्खास्त किए गए थे।
इनमें से एक कश्मीरी डाक्टर को तो आतंक और अलगाववाद की खुली तरफदारी करने के लिए बर्खास्त किया गया था। इसका मतलब है कि अल फलाह प्रबंधन किसी की नियुक्ति के पहले उसकी पृष्ठभूमि जांचने का काम या तो करता ही नहीं था या फिर उसकी अनदेखी करना पसंद करता था। इसे देखते हुए इस शिक्षा संस्थान की गहन जांच जरूरी हो जाती है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी और अन्य एजेंसियों को फरीदाबाद आतंकी माड्यूल की जांच करते हुए उन कारणों की भी तह तक जाना होगा, जिनके चलते मजहबी उन्माद से ग्रस्त होकर आतंक की राह पर चलने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब आतंक के रास्ते पर कोई भी चलता मिल सकता है, वह चाहे अनपढ़ हो या उच्च शिक्षित, निर्धन हो या धनवान।
तथ्य यह भी है कि कट्टर मजहबी तत्वों के जहरीले बयान मात्र किसी को आतंकी नहीं बनाते। इसके साथ उनका अपना परिवेश और खासकर ऐसा विषाक्त नैरिटव भी उन्हें आतंक के रास्ते पर ले जाने का काम करता है कि उन्हें हाशिये पर धकेला जा रहा है या उनके लोगों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है।
इसके साथ ही यह दुष्प्रचार भी उन्हें उन्माद और बदले की आग से भरता है कि उनकी मजहबी मान्यताएं या फिर मजहब ही खतरे में है। ऐसा दुष्प्रचार केवल कट्टरपंथी तत्व ही नहीं करते। वोट बैंक की सस्ती राजनीति के चलते दल विशेष के नेता भी ऐसा ही कुछ माहौल बनाते हैं। यह माहौल उन्माद से ग्रस्त हो रहे तत्वों के लिए विक्टिम कार्ड खेलने और कई बार आतंक के रास्ते पर चलने का जरिया बन जाता है।













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