कानपुर में रेलवे ट्रैक पर गैस सिलिंडर पाया जाना और मध्य प्रदेश में खंडवा के निकट सेना के जवानों को ले जा रही ट्रेन के नीचे विस्फोट होना महज दुर्योग नहीं हो सकता। ये घटनाएं किसी बड़े षड्यंत्र की ओर संकेत कर रही हैं। इस तरह की घटनाओं के पीछे षड्यंत्र इसलिए भी नजर आता है, क्योंकि इसके पहले भी इसी प्रकार की कई घटनाएं हो चुकी हैं।

पिछले दिनों ही सूरत में एक रेलवे ट्रैक की फिश प्लेटें हटी पाई गई थीं और उत्तर प्रदेश में रामपुर में रेलवे ट्रैक पर लोहे का एक खंभा रख दिया गया था। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इसके पूर्व भी इसी तरह के कई मामले राजस्थान, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में सामने आ चुके हैं।

कानपुर में तो ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जिनसे यही लगा कि ट्रेनों को पटरी से उतारने की कोशिश की गई थी। एक अनुमान के अनुसार पिछले डेढ़ माह में ऐसी डेढ़ दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें ट्रेनों को पटरी से उतारने की अलग-अलग तरह से कोशिश की गई।

यह ठीक है कि इस तरह की घटनाओं को रेलवे बोर्ड ने गंभीरता से लिया है और कुछ मामलों की जांच तो रेलवे पुलिस के साथ ही स्थानीय पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी अर्थात एनआइए भी कर रही है, लेकिन यह ठीक नहीं कि अभी तक किसी मामले की तह तक नहीं पहुंचा जा सका है।

यदि इन घटनाओं के पीछे के कारणों का शीघ्र पता नहीं लगाया जा सका तो वे तत्व और दुस्साहसी हो सकते हैं जो रेलवे ट्रैक से छेड़छाड़ कर ट्रेनों को पटरी से उतारने की कोशिश करने में लगे हुए हैं।

पटरियों से छेड़छाड़ की घटनाएं नई नहीं हैं, लेकिन आम तौर पर ऐसी घटनाओं को शरारती तत्व अंजाम दिया करते थे, लेकिन अब जिस तरह एक के बाद एक घटनाएं सामने आ रही हैं, उससे इस आशंका को बल मिलता है कि इन घटनाओं के पीछे आतंकी तत्व हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि आतंकी अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए शरारती तत्वों का सहारा ले रहे हों। जो भी हो, वस्तुस्थिति सामने आनी ही चाहिए।

ट्रेनों के सुरक्षित संचालन को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि अतीत में ट्रेनों को नक्सली और आतंकी संगठन निशाना बनाते रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों को अपनी चौकसी बढ़ानी होगी और एक ऐसे माहौल का निर्माण करना होगा जिससे शरारती अथवा आतंकी तत्व ट्रेन को आसान निशाना समझने से बाज आएं।

यह कोई अच्छी बात नहीं कि यात्री ट्रेनों में जब-तब पथराव होता रहता है। वंदे भारत ट्रेन को कई बार निशाना बनाया जा चुका है। अब जब यह स्पष्ट है कि ट्रेनों की सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ रहा है तब फिर रेलवे पुलिस, स्थानीय पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ खुफिया एजेंसियों को भी विशेष सजगता का परिचय देना होगा।